नाड़ी दोष
नाड़ी मानव शरीर में वात, पित्त और कफ प्रकृतियों का एक निश्चित मात्रा में संतुलन रहता है। इन तीनों का प्रतिनिधित्व तीन नाडिया करता है। आद्य नाड़ी वात प्रधान होता है। मध्य नाड़ी पीत प्रधान होता है। अन्त्य नाड़ी कफ प्रधान होता है। आद्य नाड़ी प्रधान व्यक्ति चंचल होता है। मध्य नाड़ी प्रधान व्यक्ति उष्ण होता है। अंत्य नाड़ी प्रधान व्यक्ति शीतल होता है। वात प्रधान व्यक्ति को वात वर्धक वस्तुओं का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। पीत प्रधान व्यक्ति को पीत वर्धक वस्तुओं का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। कफ प्रधान व्यक्ति को कफ वर्धक वस्तुओं का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। इसी के आधार पर वर वधु यदि दोनों ही समान नाड़ी वाले हो तो उनको विवाह नहीं करना चाहिए। क्योंकि सामान प्रकृति के व्यक्ति एक दूसरे के प्रति आकर्षण के बजाय विकर्षण उत्पन्न करते हैं। जिसके चलते जीवन संचालन करना एवं संतान उत्पत्ति करने मैं समस्या आता है। इसी कारण समान नाड़ी वाले वर वधु का विवाह करना निषेध माना गया है। क्योंकि इससे नाड़ी दोष उत्पन्न होता है। जन्म नक्षत्र के आधार पर हम यह जान सकते हैं कि हम किस नारी के हैं अश्वनी से लेकर...