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Showing posts from January, 2021

नाड़ी दोष

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नाड़ी मानव शरीर में वात, पित्त और कफ प्रकृतियों का एक निश्चित मात्रा में संतुलन रहता है। इन तीनों का प्रतिनिधित्व तीन नाडिया करता है।  आद्य नाड़ी वात प्रधान होता है। मध्य नाड़ी पीत प्रधान होता है। अन्त्य नाड़ी कफ प्रधान होता है। आद्य नाड़ी प्रधान व्यक्ति चंचल होता है। मध्य नाड़ी प्रधान व्यक्ति उष्ण होता है। अंत्य नाड़ी प्रधान व्यक्ति शीतल होता है। वात प्रधान व्यक्ति को वात वर्धक वस्तुओं का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। पीत प्रधान व्यक्ति को पीत वर्धक वस्तुओं का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। कफ प्रधान व्यक्ति को कफ वर्धक वस्तुओं का अधिक  सेवन नहीं करना चाहिए। इसी के आधार पर वर वधु यदि दोनों ही समान नाड़ी वाले हो तो उनको विवाह नहीं करना चाहिए। क्योंकि सामान प्रकृति के व्यक्ति एक दूसरे के प्रति आकर्षण के बजाय विकर्षण उत्पन्न करते हैं। जिसके चलते जीवन संचालन करना एवं संतान उत्पत्ति करने मैं समस्या आता है। इसी कारण समान नाड़ी वाले वर वधु का विवाह करना निषेध माना गया है। क्योंकि इससे नाड़ी दोष उत्पन्न होता है। जन्म नक्षत्र के आधार पर हम यह जान सकते हैं कि हम किस नारी के हैं अश्वनी से लेकर...

कर्ज कब ले और कब ना लें

हम में से प्रत्येक व्यक्ति जीवन के किसी न किसी मोड़ पर अपने आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कर्ज लेता ही है। किसी को व्यापार करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है। तो किसी को घर बनाने के लिए, तो किसी को विवाह करने के लिए, तो कोई बीमारी की वजह से कर्ज लेता है । कर्ज लेने के बाद कर्ज को सुगमता पूर्वक चुका लेना अति महत्वपूर्ण रहता है। यदि हम किसी कारणवश कर्ज नहीं चुका पाते तो भारी मानसिक एवं आर्थिक क्षति हमें होता है। कभी-कभी तो घर द्वार फैक्ट्री व्यवसाय भी बिक जाते हैं। साथ ही जेल जाने के भी नौबत आ जाते हैं । अतः ज्योतिषशास्त्र में माना गया है कि कर्ज लेने के लिये व्यक्ति को मुहूर्त जरुर देखना चाहिये। क्योंकि माना जाता है कि कुछ मुहूर्तों में लिया गया कर्ज कभी चुकता नहीं होता और दिया गया कर्ज कभी वापस नहीं मिलता है। ज्योतिष में  वार,  तिथि , नक्षत्र और योग कार्यों के अनुकूल प्रतिकूल माने जाते हैं।  1, कभी भी मंगलवार, शनिवार और रविवार के दिन कर्ज नहीं लेना चाहिये। इस दिन लिया गया कर्ज जल्दी से चुका नहीं पाते। किस वार के दिन कर्ज ना देने की बात करें तो बुधवार के दिन कभ...

रीढ़ के हड्डी संबंधित रोग में लाभदायक योगा

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1, सुख आसन पद्मासन या वज्रासन में बैठ जाए रीढ़ की हड्डी को सीधी रखें। यदि रोग के वजह से इन आसनों में बैठना संभव ना हो तो खड़े-खड़े या लेट कर भी कर सकते हैं। दाएं हाथ को फैलाकर घुटने पर रख लें और हथेली के खुले हुए भाग को आकाश की तरफ रखें। अब कनिष्ठा उंगली एवं मध्यमा उंगली के अग्रभाग को अंगूठा के अग्रभाग से मिला दे शेष उंगलियों को सीधी रखें।  दूसरे हाथ अर्थात बाएं हाथ को फैला कर घुटने पर रखें एवं हथेली के खुले हुए भाग को आकाश की ओर रखें। अब तर्जनी उंगली को मोड़ कर अंगूठा के मध्य भाग अर्थात अंगूठा जहां से मुड़ता है उस भाग से तर्जनी उंगली को मिला दे।  2, पद्मासन सुखासन या वज्रासन में बैठ जाए,  रीढ़ की हड्डी को सीधी रखें। दोनों हाथ को फैलाकर घुटने पर रख लें । हाथ के खुले हुए हिस्से को आसमान की ओर रखें। अब दोनों हाथों में तर्जनी उंगली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिला दे शेष उंगलियों को आपस में मिलाकर सीधी रखें। 3, पद्मासन सुखासन या वज्रासन में बैठ जाएं। दोनों हाथ को फैलाकर सीने के सामने ले आए और हाथ को सीधी रखें।  मुट्ठी बांध ले, अंगूठे को खु...