नमस्कार मुद्रा
विधि
पद्मासन, सुखासन, खड़े होकर, वज्रासन या सूर्य नमस्कार के रूप में दोनों हाथ को आपस में मिलाकर नमस्कार की मुद्रा बनाने लें।
समय
नमस्कार मुद्रा को 1 घंटे सुबह और 1 घंटे शाम को करना चाहिए और धीरे-धीरे इसका समय बढ़ाते रहना चाहिए।
लाभ
इस मुद्रा के सिद्ध होने पर साधक दूसरे के दिल की बात भी जान जाता है। इस मुद्रा को सिद्ध योगियों की मुद्रा भी कहते है।
इस मुद्रा को प्रतिदिन करने से आंखों के समस्त रोग दूर होते हैं एवं नेत्र ज्योति भी बढ़ता है।
इस मुद्रा से नींद और सुस्ती के रोग ठीक होते हैं
नमस्कार मुद्रा का निरंतर अभ्यास करने से मन शांत होता है। यह मुद्रा शरीर को हल्का, मन का साफ, खुश और कोमल बनाता है। इस मुद्रा के द्वारा शारीरिक और दिमागी दोनों शक्तियां बढ़ जाता है।
हमारे हाथ के तंतु मष्तिष्क के तंतुओं से जुड़े हैं। हथेलियों को दबाने से या जोड़े रखने से हृदयचक्र और आज्ञाचक्र में सक्रियता आता है जिससे जागरण बढ़ता है। उक्त जागरण से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होता है। हृदय में पुष्टता आता है तथा निर्भिकता बढ़ता है।
इस मुद्रा का प्रभाव हमारे समूचे भावनात्मक और वैचारिक मनोभावों पर पड़ता है, जिससे सकारात्मकता बढ़ता है। यह सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से भी लाभदायक है।
धार्मिक कार्यों में जब हम अपने इष्ट या गुरु के समीप प्रार्थना करते हैं तो हमें नमस्कार मुद्रा में ही रहना चाहिए।
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