श्वसनी मुद्रा
इस मुद्रा को करने के लिए पद्मासन सुखासन या वज्रासन में बैठकर हाथ को फैलाते हुए घुटनों पर रखें, हथेली के खुले हुए भाग को आकाश की तरफ रखें । रीड की हड्डी को सीधी रखें। इसके पश्चात दोनों हाथों में कनिष्ठा और अनामिका उंगलियों के शीर्ष को अंगूठे की जड़ से लगाएं। मध्यमा उंगली को अंगूठे के शीर्ष से मिलाएं। तर्जनी को बिल्कुल सीधी रखें।
समय
इस मुद्रा को प्रतिदिन 45 मिनट अथवा 15:15 मिनट के हिसाब से दिन में तीन बार करें।
लाभ
श्वास से जुड़ा कोई भी रोग, जैसे- दमा, सांस लेने में परेशानी आदि सांस की नली में श्लेष्मा के जमने से पैदा होता है। इससे फेफड़े तक साफ हवा पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाता और पीड़ित व्यक्ति सांस के ठीक से अंदर जाने से पहले ही सांस छोड़ देता हैं।
सांस संबंधी इन रोगों में श्वसनी मुद्रा बहुत कारगर है। यह वरुण मुद्रा, सूर्य मुद्रा और आकाश मुद्रा का समन्वय है। इससे श्वास नली में जमा श्लेष्मा बाहर निकल जाता है और सूजन में कमी आती है। इसके नियमित अभ्यास से सांस छोड़ते समय अधिक जोर नहीं लगाना पड़ता और धीरे-धीरे सांस के रोग पूरी तरह खत्म हो जाते हैं। श्वास के रोगियों को बायीं करवट ही लेटना चाहिए ।
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