वाणी


मधुर वाणी एक प्रकार का वशीकरण है। जिसकी वाणी मीठी होती है, वह सबका प्रिय बन जाता है। प्रिय वचन हितकारी और सबको संतुष्ट करने वाले होते हैं। फिर मधुर वचन बोलने में दरिद्रता कैसी? वाणी के द्वारा कहे गए कठोर वचन दीर्घकाल के लिए भय और दुश्मनी का कारण बन जाते हैं।इसीलिए साधारण भाषा में भी एक कहावत है कि गुड़ न दो, पर गुड़ जैसा मीठा अवश्य बोलिए, क्योंकि अधिकांश समस्याओं की शुरुआत वाणी की अशिष्टता और अभद्रता से ही होती है।
1- जन्म कुंडली का दूसरा भाव वाणी का होता हैं, दूसरे भाव पर ग्रहों का जैसा प्रभाव होगा, वैसी ही वाणी होगी। बुध, गुरु, शुक्र में से किसी की दूसरे स्थान पर प्रभाव स्थिति व्यक्ति की वाणी को सौम्य, ज्ञान युक्त व प्रभाव शाली बनाती हैं, और यदि यें ग्रह नीचगत हो या अशुभ ग्रहों के प्रभाव में फल देने वाले हो तो विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
2- वाणी स्थान में राहु-मंगल या राहु-शनि का प्रभाव हो तो मुहं के कई रोग उत्पन्न करते हैं, राहु व वक्री बुध हो तो हकलाने जैसी समस्या आती हैं।
3- सूर्य का दूसरे स्थान पर प्रभाव व्यक्ति को या तो मुहं के रोग देता हैं, या वाणी को कठोर व अहंकार युक्त बनाता हैं।
4- मंगल शुभ ग्रहों के साथ स्थित हो तथा दूसरे भाव व भावेश पर पूर्ण प्रभाव रखता हो तो व्यक्ति की प्रभाव शाली वाणी होती हैं। ऐसे व्यक्ति के मुहं खोलते ही उसके आदेशों का पालन होता हैं। लेकिन अकेला मंगल शुभ नही होता।
5- धनु, मकर, वृषभ और सिंह लग्न के दूसरे स्थान पर शनि या बुध स्थित हो तथा मंगल के साथ अन्य कोई पापी ग्रह का प्रभाव इन पर पडे तो जातक बोलने में असमर्थ होता हैं।
6- किसी भी पापी (क्रूर) ग्रह का प्रभाव वाणी में कठोरता उत्पन्न करता हैं। राहु या षष्ठेश ग्रह का प्राभव व्यक्ति को झूठा बनाता हैं। शनि के प्रभाव से बच्चा देर से बोलना सीखता हैं।
7, द्वितीय भाव वाणी के साथ ही संचित धन का भी है । साथ ही कुटुंब का भी है । इसलिए धन संचित करना चाहते है तो वाणी में मीठास लाये एवं कुटुंब में सब के साथ मधुर संबंध भी रखे ।

Comments

Popular posts from this blog

दशमांश कुंडली का महत्व

ब्रांड

अमर टापू धाम