सतनामी समाज की उत्पत्ति भाग 2

🌹🌹 विभिन्न लेखकों द्वारा सतनामी समाज के उत्पत्ति के परिकल्पना#भाग02#🌹🌹

आस्करलोर ने सतनामीयों को पंजाब प्रांत से आये हैं।ऐसा माना है । उसने अपने 20नवंबर1880 के रिपोर्ट में ऐसा लिखा है।
Oscar Lohr suggest the Satnami came from the panjab, letter 20 November 1880 quoted in central Provinces,

इसी तरह बेगलर लिखते हैं कि शायद वे बिहार से आये हैं, क्योंकि उतर भारत के कुछ out caste के लोगों ने दक्षिण भारत के ओर प्रवास किया था। उनके ऐसा सोचने का कारण मात्र प्रोविंस में उद्धृत  चमार जाति है। 
The arciologist, Begler, speculated, they were from Bihar , as I heard a story about 36 house's or families of chamars who had migrated south,

जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है।
C.p. Census 1881 पृष्ठ 35 में मिस्टर बैनर्जी  जो रायपुर के निवासी थे और सतनामीयो के बारे में अध्ययन करते थे। वे लिखते हैं कि:-
सतनामी समाज में कुछ भी ऐसा नहीं पाया गया कि जिससे यह सिद्ध हो सके कि यह उत्तर भारत ( बिहार - उत्तर प्रदेश) से  प्रवासित हुए थे। इनके भाषाएं और आदतों में ऐसा कुछ भी समानता नहीं है जो उत्तर भारत के लोगों में मिलती है। जैसे कि लोधी और कुर्मी यह साफ़ तौर पर जानते हैं कि वे उत्तर भारत से यहां आएं हैं।
Mr. Banerjee, a resident of raipur who studied the satnamis, found nothing to favor the theory of immigration, since the Satnami had no " speech or habit to show Gangatic origin," and had no tradition of immigration.( सेंसस 1881 पृष्ठ 35)

इस संबंध में रसेल अपने ट्राइब्स एंड कास्ट में लिखते हैं कि:-
सतनामी समाज कभी भी चमार (मोची, झरिया) जाति के लोगों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं करते हैं। भले उन्हें उसी नाम से पुकारा जाने लगा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सतनामी छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने निवासीयो में से है।
The Satnamis did not entermarry with other chamars , and were called "Jhariya or Jungly ," which implies that they are the oldest residents in Chhattisgarhs, two' other chamars division were the kanaujias and ahirwar.(  ट्राइब्स एंड कास्ट पृष्ठ 406)

मैकडावने सेंट्रल प्रोविंस 1861-1922 पृष्ठ 498 में लिखते हैं कि:- 
 हो सकता है कि सतनामी समाज छत्तीसगढ़ के बौद्ध आबादी में से हों, जिन्हें हिन्दू समाज में सबसे नीचे क्रम में अंत में रखा होगा , जैसे कि बंगाल में हुआ है।
It is further speculated in this study that the Chhattisgarhs Satnami may have been remant Buddhist population of Chhattisgarh who were eventually placed in the lowest position of hindu society in a similar process which occurred in Bengal.

इस उद्धरण ने हमारे जिज्ञासा को और बढ़ाया इसलिए हमने बौद्ध कालीन राजाओं तथा राज वंशों का अध्ययन किया।  तब हमने पाया कि सचमुच में छत्तीसगढ़ में जब इसे महाकोसला के नाम से जाना जाता था तब कलिंग और बौद्ध राजाओं का शासन था। और इसी क्रम में एतिहासिक साक्ष्य के आधार पर हमें सातवाहन राजाओं के बारे में पता चला । जो कि  आर्य संस्कृति को नहीं मानते थे। तथा भारत के मुल निवासी राजवंशों में से एक थे। इन्होंने गुप्त काल के पतन के बाद स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। हालांकि इनका राज्य शासन 232 ईपू से 255 ईपू तक रहा।

In AD 481 speaks SIVAGUPTA of Mahakoshala as the severien lord of the whole country,
ईपू 481 में शिवगुप्त महाकौशल के सम्राट थे।
ह्वेनसांग नामक चीनी यात्री जिसने 639ईपू में चंदा, नागपुर, सिवनी सहित छत्तीसगढ़ का भ्रमण किया था। वे लिखते हैं कि छत्तीसगढ़ महाकौशल के प्रथम राजा का नाम सोतोपोहो या सदवाह था।
Yet he (HwenTsang) gives the name of the first King of the country as SOTOPOHO or SADVAHA, (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया पृष्ठ 73)

जेडी बेगर ने इस सोतोपोहो या सदवाह को सातवाहन  स्वीकार करते हुए उसका संबंध महाभारत काल के चित्रवाहन और बबरूवाहन  से जोड़ा है। वह आगे कहता है कि यदि इनका संबंध बबरुवाहन और चित्रवाहन से है तो यह पांडव,कौरव अथवा कुरूवंशज है। If he was connected with Babharuvahan and Chitravahana, he must have been descendent of KURU, ( पृष्ठ 73)

लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।
ह्वेनसांग के सोतोपोहो या सदवाह नागार्जुन के समकालीन थे। जिसका उदय Chrisctian era के पहले दुसरे शताब्दी में हुआ था।
But the HwenTsang SOTOPOHO was a contemporary of Nagarjuna, who first flowerised in the first and second century of Christian era.(पृष्ठ 73)

इस संबंध में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सतनामी समाज के सर्वाधिक लेखकों ,कडिहारो, पंडितों तथा विद्वत जनों ने छत्तीसगढ़ के सतनाम पंथ के प्रथम उपदेशक सतगुरु सतखोजनदास जी को स्वीकार किया है। जिसका पुर्व नाम संबोधन सदवाह ही है। जिसे संतदास या सतखोजन दास कहते हैं। इसके संबंध में आगामी लेख में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत किया जायेगा।

बहरहाल  सातवाहन वंश के अभ्युदय तथा मुलनिवास के संबंध में विभिन्न विद्वानों में मतभेद हैं। रैमपसन, स्मिथ, तथा भंडारकर के अनुसार सातवाहनो को आंध्रप्रदेश के माने जाते हैं। लेकिन नानाघाट तथा सांची के आरंभिक शिलालेख तथा सिक्कों के आधार पर पश्चिमी भारत इनका मुल निवास स्थान माना जाता है। वी . वी. मिराशी ने इनका मुल स्थान बरार प्रदेश को स्वीकार किया है। इस प्रकार सातवाहन आंध्र प्रदेश के नहीं थे।
सातवाहन आर्य संस्कृति को नहीं मानते थे। तथा श्रमण संस्कृति के वाहक थे। ऐतरेय ब्राम्हण में इसका उल्लेख ऐसी जाति के रूप में हुआ है जो आर्यों के प्रभाव से मुक्त थे। उसमें सत्यवंत प्रजाति का उल्लेख है।

वरिष्ठ साहित्यकार, संपादक सतनाम संदेश पत्रिका, सहायक संचालक उच्च शिक्षा संचालनालय रायपुर (छत्तीसगढ़) प्राध्यापक शा. बृजलाल महाविद्यालय पलारी  आदरणीय डा अनिल भतपहरी जी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि:-
सतनामी समाज अति प्राचीन सभ्यता से संबंध रखने वाले श्रमण संस्कृति के वाहक है। वे तो सतनाम धर्म और सनातन धर्म को समानांतर स्वीकार करते हैं। तथा सैधव घाटी सभ्यता के साथ सतनामी समाज के उद्भव को स्वीकार करते हैं। जिसका वर्णन उन्होंने अपने पुस्तक गुरु घासीदास और उनका सतनाम पंथ में भी किया है।
इस संबंध में  उनके आशिर्वाद से आदरणीय द्वारा हमें एक साक्ष्य भी प्राप्त हुआ जो पद्मश्री अरुण शर्माजी (Director of Excavation Rajim and Archaeological advisor, Government of Chhattisgarh) के हैं।

सतनामी समाज के प्राचीनतम अस्तित्व को बताते हुए पद्मश्री अरुण शर्माजी लिखते हैं कि:- 
हमें कुछ दिन पूर्व  गरियाबंद जिला राजिम में  पुरातत्व के खोदाई के दौरान  मां देवी के  टेराकोटा फिगर प्राप्त हुआ है। जिसके आधार पर हमने यह निष्कर्ष निकाला है कि
छत्तीसगढ़ में मातृका पुजन के संस्कृति सतनामी समाज के द्वारा आया है। क्योंकि वही मातृका पुजन के संस्कृति के जन्मदाता है।
The art of the mother goddess came to from Chhattisgarh through Satnami caste and matrika poojan started,

पद्मश्री अरुण शर्माजी आगे लिखते हैं कि यह फिगर सिंधु घाटी सभ्यता के प्राप्त मदर गाडेस के बिल्कुल सादृश्य है।जो मोहनजोदड़ो लोथल कालीबंगा और हड़प्पा में मिलें हैं।
Serprisingly the figer is exactly similar to the figer of mother goddess found in excavation of Indus valley.
सतनामी समाज के सिंधु घाटी सभ्यता के लोगो के साथ सादृश्यता बताते हुए कहते हैं कि। छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज काफी प्रभावी और प्रबल समाज रहा है। इनके शारिरिक बनावट बिल्कुल वैसे ही है जैसे कि सिन्धु घाटी के सभ्यता के लोगों के होते थे।
After comparison with other aspects it was known that Satnamis are a dominant caste in Chhattisgarh,they are tall ,fair in complexion and blue eyes like the Indus valley people.
 ऐसा माना जाता है कि हजारों वर्षों पूर्व जब सरस्वती नदी में बाढ़ आयी थी तब वे बहकर विभिन्न भागों में पहुंचे । उनमें से ही एक समुह छत्तीसगढ़ में  आ बसे जिन्हे सतनामी कहा गया है।
A group came to Chhattisgarh settled here and people of this group are called Satnamis.

उपर्युक्त सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं कि सतनामी समाज का अस्तित्व प्राचीन काल से ही रहा है। और उनके संस्कृति भी सनातन धर्म के समानांतर श्रमण संस्कृति रहीं हैं । तथा निर्गुण निराकार सत के उपासक थे। जिसके कारण वे सतनाम की ध्यान साधना और उपासना करते थे। इसलिए वे सतनामी कहलाते थे।🙏🏳️ सतनाम
🖍️ नरेंद्र भारती
साहित्य प्रकोष्ठ
सतनामी एवं सतनाम धर्म विकास परिषद

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