ग्रहों के आत्मादि कारकत्व
सूर्य
आत्मा का कारक है। सूर्य के बली होने पर जातक ऐसा कोई भी कार्य नहीं करता जिससे कि उसके आत्मसम्मान को क्षति पहुंचे।
चंद्रमा
मन का कारक है। मन हमारा चंचल होता है मन में हजारों प्रकार के विचार पैदा होते हैं। चंद्रमा ही निश्छल प्रेम का कारक है लोगों के साथ नजदीकियां बढ़ना टूटना बिगड़ ना बिछड़ना यह सब मनुष्य के लव रिलेशनशिप के परिणाम है चंद्रमा स्वयं प्रेम का स्वरूप और प्रतिरूप है। प्रेम की शीतल छाया चंद्रमा के मजबूत होने से ही मिलता है। माता-पिता , भाई-बहन, गुरु-शिष्य और मित्रों का प्रेम सात्विक , स्वभाविक और पवित्र प्रेम है।
मंगल
मंगल बली हो तो सत्व गुण अधिक होता है। यहां सत्व से तात्पर्य सतोगुण से ना होकर दबंगता, धीरता , निड़रता ,स्पष्टवादीता , अन्याय के समक्ष ना झुकने की प्रवृत्ति तथा स्वाभिमान से है।
बुध
बुध वाणी एवं बुद्धि का कारक है। जिस जातक की कुंडली में बुध कमजोर होता है। वह संकोची स्वभाव का होता है । अपनी बात रखने में परेशानी होता है। इसके साथ ही जातक अपनी वाणी पर कंट्रोल नहीं रख पाता। वाणी के कारण उसके कार्य बिगड़ते हैं। और यदि बुध बली हो तो अपने वाक् चातुर्य और बुद्धि से सबका मन मोह लेता है।
गुरु
गुरु ज्ञान , स्वाभिमान और धर्म का कारक है। गुरु के बलि होने से जातक ज्ञानवान धर्म के कार्य में रुचि रखने वाला धार्मिक प्रवृत्ति का और अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं करता। गुरु शुभ होने पर सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होता है।
शुक्र
शुक्र बली होने पर भौतिक सुखों, विषय वासना भोग विलास की आकांक्षा अधिक होता है।
शनि
शनि दुख और विपत्तियों का कारक है शनि निर्बल होने पर दुख अधिक देता है। बली होने पर दुख में कभी आता है।
राहु
राहु छल कपट, मायावीय , स्वार्थ का कारक होता है। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए चलाकि कूट कूट कर भरा रहता है।
केतु
केतु मोक्ष का कारक ग्रह है। यदि केतु शुभ हो तो जातक को जीवन के आवागमन से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करता है।
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