संतान एवं स्त्री सुख
शास्त्रों का मत है कि मनुष्य को अपने जीवन में विवाह के पश्चात जब संतान सुख प्राप्त होता है तभी उसका जीवन पूर्ण होता है और वह सुखी दांपत्य जीवन कहलाता है। वैसे तो सुख दुख का निर्धारण लक्ष्य की प्राप्ति , मोहब्बत एवं पैसा जैसे अनेक चीजों को देखा जाता है। प्रत्येक मनुष्य के लिए सुख का कारण अलग-अलग हो सकता है , परंतु हम जन्म कुंडली में संतान और स्त्री सुख के विचार प्रस्तुत कर रहे हैं।
संतान विचार के लिए पुरुष के कुण्डली में सूर्य , शुक्र , गुरु , पंचम भाव , पंचमेश , सप्तम भाव , सप्तमेश , अष्टम भाव , अष्टमेश , नवम भाव , नवमेश और लग्न , लग्नेश पर विचार करे ।
पंचम भाव में पंचमेश हो , सप्तम भाव में सप्तमेश हो । साथ ही पंचम भाव और सप्तम भाव में शुभ ग्रह स्थित हो या शुभ ग्रह की दृष्टि हो । तो संतान और स्त्री सुख की प्राप्ति होता है।
लग्न और चंद्रमा में जो अधिक बलवान हो उसे अधिक महत्व दें।
पंचम स्थान संतान स्थान है , स्त्री सुख या विवाह सुख संतान होने पर ही पूर्ण होता है । यदि पंचम भाव भी स्वामी युक्त , शुभ ग्रह युक्त व शुभ ग्रह दृष्ट तो संतान की प्राप्ति स्पष्ट हो जाता है।
अब संतान बिना स्त्री का तो होगा नहीं। अतः पंचम भाव को भी स्त्री सुख के प्रकरण में अवश्य देखना चाहिए।
शुक्र दांपत्य प्रेम व स्त्री सुख का कारक ग्रह है । जबकि गुरु केवल विवाह कारक हैं । यदि शुक्र , सप्तम व पंचम भाव पाप युक्त हो स्व स्वामी द्वारा युत या दृष्ट ना हो या पाप मध्य में हो तो स्त्री व संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाता है ।
Comments
Post a Comment