मिनीमाता पुण्यतिथि पर विशेष इतिहासिक जानकारी
तारीख 11 अगस्त को सारे देश के और विशेष रूप से छत्तीसगढ के सतनामियों में से प्रथम महिला सांसद “ ममतामयी मिनी माता ” की पुण्यतिथि मनाई जाती है । “ ममतामयी मिनी माता ” वैसे तो गुरू माता थीं, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र सतनामियों के आध्यात्मिक गुरूओं के बनिस्बत राजनीतिक कार्य के रूप में कम नहीं आंका जा सकता है । जहां धर्मगुरूओं ने आध्यात्मिक कार्य किये हैं वहीं “ ममतामयी मिनी माता ” ने सतनामी समाज के लिए संवैधानिक धाराओं को कार्यान्वित करा कर सतनामियों को लाभ पहुँचाया है जो कि एक महान सामाजिक कार्य हुआ है । जिसका लाभ वर्तमान में मौजूद पीढी को भी मिलता है । उनके जीवन काल में जिन लोगों का उनसे सीधा संपर्क रहा वे बताते हैं कि “ ममतामयी मिनी माता ” का दिल्ली का सरकारी बंगला हमेशा एक धर्मशाला की तरह से छत्तीसगढ के सतनामियों तथा अन्य धर्म के लोगों से भरा रहता था । वे किसी के भी साथ धर्म, जाति, वर्ग या अन्य किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करती थीं । आज भी लोगों को एक आशा रहती है कि कदाचित हमारे सतनामी समाज में फिर से कोई “ ममतामयी मिनी माता ” जैसा अवतरित हो और उसी प्रकार से समाज का उत्थान करे जिस प्रकार से “ ममतामयी मिनी माता ” जी ने अपने जीवन काल में किया था । सतनामियों का सीना गर्व से तब फूल जाता है जब उनके बारे में संसद के गलियारे में भी उनके कार्यों की चर्चा निकलती है । जब जब देश के दबे, कुचले, पिछडे तथा आदिवासियों के लिए किये गये कार्यों का जिकर आता है तो छत्तीसगढ में से सबसे पहले “ ममतामयी मिनी माता ” का नाम याद किया जाता है । वास्तव में उनका नाम इसलिए भी अमर हो गया है कि बाबा साहेब आंबेडकर जी ने संविधान में एससी. ओबीसी, एसटी, माइनारिटी वर्ग के लिए जो धाराएं बनाई थीं, संसद के पटल पर रख कर उसे कार्यान्वित कराने में “ ममतामयी मिनी माता ” की महत्वपूर्ण भूमिका रही है जो वर्तमान पीढी को पता चलना चाहिए । आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके किये गये कार्यों के रूप में वे हरेक सतनामी के दिल में अपना स्थान बना चुकी हैं ।
इसी प्रकार से एक संयोग की बात यह भी है कि जब सन 1672 में नारनौल में सतनामियों से मुगल बादशाह औरंगजेब का युद्ध शुरू होने वाला था तब सतनामियों का नेतृत्व करने के लिये अगुवाकार के रूप में बीरभान साध सतनामी और उनके भाई जोगीदास साध सतनामी तो थे ही लेकिन उस काल में सतनाम की साधना करके आध्यात्मिकता की बहुत ऊँचाइयों तक की सिद्धी प्राप्त कर चुकी एक वृद्ध महिला भी रहीं, जिनके बारे में समकालीन इटालियन इतिहासकार निकोलियम मनूची द्वारा लिखित इटालियन भाषा के इतिहास में तथा प्रसिद्ध इतिहासकार मुन्नीलाल द्वारा इंग्लिश में लिखित इतिहास “ दि औरंगजेब ” में विस्तार से लिखा है कि सारे सतनामी उनके पास गये और युद्ध में मदद की गुहार लगाई तो वे नारनौल के आसपास के सभी नगरों और गांवों में एक घोडे पर बैठ कर गईं थीं और सतनामियों और मुगलों के युद्ध में शामिल होने के लिए अन्य समाज के लोगों का भी आव्हान किया था । इस बात से आसपास के जमींदार और छोटे मोटे राजाओं ने भी उनके आव्हान पर सतनामियों के युद्ध में सहयोग किया था । वे कहीं भी जाकर किसी भी गांव या नगर में युद्ध में चलने के लिए विनती नहीं करती थीं बल्कि मुगलों से लडने के लिए ललकारते हुए कहती थीं कि हम इस मातृभूमि के सपूत हैं, हमें अपना जीवन जीने का और आध्यात्मिक साधना करने की पूरी आजादी है । हम सतनामी हैं और किसी भी तरह से किसी के भी आगे झुकेंगे नहीं । समकालीन इतिहासकारों के अनुसार उनकी वाणी का ऐसा प्रभाव पडता था कि गांव के गांव और नगर के नगर अपने परिजनों को छोड कर नारनौल के युद्ध के मैदान में आ डटे थे । उन सतनामी वृद्ध महिला को भी संयोग से अपनी “ ममतामयी मिनी माता ” की तरह ही “ सतनामी मिनाक्षी माता ” के नाम से संबोधित किया जाता था । आज जब छत्तीसगढ में “ ममतामयी मिनी माता ” की पुण्यतिथि मनाई जाएगी तो यह बात छत्तीसगढ के सतनामियों को पता चलना चाहिये कि हमारे सतनामियों की महिलाएं भी आध्य़ात्मिकता में पुरूषों से बहुत आगे रही हैं, जैसे कि “ सतनामी मिनाक्षी माता ” का इतिहास जानने को मिलता है । इन दोनों महान महिलाओं की समानता इस रूप में भी की जा सकती है कि सन 1672 में “ सतनामी मिनाक्षी माता ” आध्यात्मिक तौर पर और एक वीरांगना के रूप में युद्ध के मैदान में सतनामी फौज के आगे घोडे पर बैठ कर चलती थीं । उनके बारे में इतिहासकारों ने लिखा है कि युद्ध के मैदान में अगर एक सतनामी गिरता था तो “ सतनामी मिनाक्षी माता ” अपनी आध्यात्मिक शक्ति से उस कमी को तुरंत पूरा कर देती थीं । वहीं “ ममतामयी मिनी माता ” ने बीसवीं शताब्दी में भारत के सतनामियों का राजनीतिक तौर पर उसी तरह से आगे बढ कर उद्धार किया है ।
हमारे छत्तीसगढ के सतनामियों का यह कर्तव्य है कि वे सब सतनामी भाई और बहन “ ममतामयी मिनी माता ” जी का वह कर्ज समाजिक कार्य करके उतारें तथा अपने से कमजोर सतनामियों का ध्यान रखें । देखने में आता है कि अब तो अनेक सामाजिक संगठन दिन रात समाज के लिए कार्य कर रहे हैं जो कि अति सराहनीय हैं । लेकिन हमारे सतनामी समाज को आध्यात्मिकता में अभी और भी ऊँचाइयों पर पहुंचना चाहिये । घर में बालक बालिकाओं को अभी से ध्यान साधना का अभ्यास कराने की जिम्मेदारी घर की महिलाओं के अधीन होनी चाहिये । सतनामियों में से ही कोई ना कोई “ ममतामयी मिनी माता ” या “ सतनामी मिनाक्षी माता ” जैसी माता का अवतरण हो तो यह सतनामी समाज के लिए एक बडी उपलब्धि मानी जा सकती है । इस रास्ते पर हम सबको अनिवार्यतः चलना चाहिये ।
दिनेशकुमार साध सतनामी
10-08-2020
नोट – ममतामयी मिनी माता जी के बारे में इस महत्वपूर्ण जानकारी को व्हट्स एप के उन सभी ग्रुपों में पहुंचाने का काम आप सबका है जिससे वर्तमान पीढी को सतनामी समाज की गौरवमयी माताओं का इतिहास जानने को मिल सके ।
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