आत्मपराजय का भंवर जाल
एक बार प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ मुकेश सकरात्मक विचारों के ऊपर मोटिवेशन स्पीच देकर सभागार से बाहर आया तो एक अत्यधिक सुंदर युवा महिला से मिला । तो उसने कहाँ कि मैं दिर्घ कालिन मानसिक प्रवृति से छुटकारा पाने की प्रयास कर रही हूँ और इसके बारे में अत्यधिक चिंतित हूँ । अपने बचपन से ही मेरी प्रवृति असफलता की ही रही । स्कूल में जब कभी मेरा प्रदर्शन ख़राब होता था तो मैं अच्छा करती थी । लेकिन कुछ सप्ताह बाद मैं दोबारा ख़राब प्रदर्शन करने लग जाती थी । तभी से मैं निरूत्साहित रहने लगी हूँ । अपने कार्यों में असफल होती हूँ । अकसर मैं स्पष्ट रूप से असफल रहती हूँ । उसने निराशाजन डंग से कहाँ ।
अपने स्कूल में अपने साथिया से एक साल बाद उत्तीर्ण होने के पश्चात् एक नौकरी लगी । उसके पास एक अच्छा अवसर था अपनी व्यक्तित्व को पेश करने के लिए , जिसमें वह पहली नज़र में दूसरे व्यक्तियों पर अच्छा प्रभाव डाली थी । लेकिन अततः असफलता की वहीं पुरानी प्रवृति उसे जकड लेती थी ।
डॉ ने पूछा तुम्हारे हिसाब से तुम्हारे मन की गहराई तक में समाई हुई असफलता की इस प्रवृति का कारण क्या है ?
वह हिचकिचाई , मैं किसी पर भी आरोप लगाने से नफ़रत करती हूँ और आशा करती हूँ कि मैं पक्षपाती नहीं हो रही हूँ लेकिन सच्चाई बताने के लिए मुझे कहना पड़ेगा कि यह मेरी मां की गलती है । मैं यह कहना नहीं चाहती , क्योंकि मेरी माँ वास्तव में अच्छी है और उनसे प्रेम करती हूँ । लेकिन जब मे छोटी थी , वह हमेशा अपनी चिंताओं के बारे में बात करती थीं । वह अव्वल दर्जे की नकरात्मक विचार वाली महिला थी । उसके लिए हर वस्तु का निश्चित रूप से ख़राब होना तय था । वह कहती थी कि प्रिय , शायद तुम्हे भी हर वस्तु के लिए सबसे ख़राब कि आशा करनी चाहिए ताकि बाद में तुम्हे निराशा न हो । इसलिए मैं समझती हूँ कि मैं हमेशा अर्द्ध चैतन्य मन से सबसे ख़राब की आशा करती रही हूँ और मैं कभी निराश नहीं हुई हूँ । लेकिन यह निश्चित है कि मैं नाख़ुश हूँ , मैं क्या कर सकती हूँ ?
जैसे जैसे मैं इस युवा महिला के आत्ममंथन को सुन रहा था वैसे वैसे उसके प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात बोध को पसंद करने लगा था । वह जान गयी थी कि वह आत्मपराजय के विचार भवर में फस गई है । जो उसकी चैतन्यता की गहराई तक में जड़ जमा चुका हैं ।
मैने सुझाव दिया कि नकरात्मक विचार के मानसिक जडों को काटना होगा ।
जिस तत्परता से उसने मेरे कथन को समझा , उससे उसकी तेजी के बारे में मेरा प्रथम राय सही साबित हुआ ।
उसने ज़ोर देकर कहाँ मुझे मुक्ति पाने का रास्ता बताओं । मैं जानती हूँ की आप बता सकते हो ।
अपनी सारी नकरात्मकता के बाऊजुद तुम इसके बारे में सकरात्मक हो , चलो कोशिश करते हैं ।
1 , अपनी इच्छा शक्ति को मज़बूत बनाओं लेकिन ध्यान रहे कोई भी दबी हुई इच्छा न रहे ।
2, सकरात्मक एवं सफल विचारों के प्रवृति स्थापित करना होगा ।
3, इस परिवर्तन के लिए समय अवधी निर्धारण करना होगा ।
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