बाधक ग्रह

चर लग्न से एकादश स्थान के स्वामी को बाधक ग्रह कहते है ।
स्थिर लग्न से नवम भाव के स्वामी को बाधक ग्रह कहते है ।
द्विस्वभाव लग्न से सप्तम भाव के स्वामी ग्रह को बाधक ग्रह कहते है ।
बाधक अधिपति जिस भाव में हो उस भाव में समस्या देता है ।
बाधक लग्न और बाधकेश मुहूर्त का नियम है इसे कुण्डली में नहीं लगाना चाहिए ।
बाधक अधिपति यदि शुभ भाव का स्वामी है तो शुरूवात में समस्या देगा , परंतु आगे शुभ फल देगा ।
बाधकेश लग्न में बैठने पर ही बाधा देता है , बाकी अन्य भाव पर बैठने पर बाधा नहीं देता ।
बाधक ग्रह और 6, 8,12 के स्वामी युति करे तो अधिक अनिष्ट कारी होते है ।
बाधक ग्रह अपने भाव से केन्द्र त्रिकोण में हो तो अधिक बाधक होते है । 
बाधक भाव में जो ग्रह हो वह भी बाधक ही होते है ।
बाधक ग्रह अपने भाव से 3,6,8 और 12 में हो तो कम अनिष्टकारी होते है ।

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