सतनामी समाज की उत्पत्ति भाग 1
🌹🌹 विभिन्न लेखकों द्वारा सतनामी समाज के उत्पत्ति की परिकल्पना 🌹🌹
सतनामी समाज के उत्पत्ति के संबंध में बहुत सी अवधारणा प्रचलित हैं। विभिन्न लेखकों ने अपने मत तथा अनुसंधान अनुसार विभिन्न मत प्रस्तुत किया है। जिसमें अधिकांश आधुनिक समाज में से संबद्ध रखता है। बहुतेरे उद्धरण 15 वी शताब्दी में प्रचलित धर्म एवं पंथ से संबंधित है। जबकि सतनामी समाज के लेखक, चिंतक, विचारक साहित्यकार सहित, कुछ अंग्रेजी लेखक जैसे - हैविट , बैगलर, सी यु विल्स,मैकडावने तथा भारतीय में मिस्टर बैनर्जी, तथा वर्तमान में पद्मश्री प्राप्त ख्याति पुरातत्ववेत्ता श्री अरुण शर्मा ने भी सतनामी समाज का संबंध सिन्धु घाटी के सभ्यता से जोड़ा है। विभिन्न उद्धरणों और तथ्यों का अध्ययन करने से एक निष्कर्ष अवश्य यह निकलता है कि सतनामी समाज श्रमण परम्परा से संबंधित है। जो प्राचीन काल से ही दैववाद और धार्मिक कर्मकांड के अवधारणा से मुक्त हैं।
रायपुर गजेटियर 1869 पृष्ठ 33 में हैविट लिखते हैं कि:-
सतनामी प्राचीन निवासी के रूप में समुचे जिला में बसे हुए हैं।
परन्तु वे अपने अधिकाधिक बसाहट के बावजूद वे यह नहीं बता पाते कि वे छत्तीसगढ़ में कब आये थे।
दुसरा तर्क वे यह भी प्रस्तुत करते हैं कि शायद ये रविदास परंपरा से संबंधित होंगे। जो उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में आये होंगे।
लेकिन अपने इस मत का स्वयं खंडन करते हुए लिखते हैं कि
As there is no trace of Raidas, having ever visited the country(रायपुर गजेटियर पृष्ठ 33)
वे कहते हैं कि इन्हें च*** लिखे जाने के आधार पर मैं इनका संबंध रविदास के जाति से जोड़ता हूं। तथापि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि रविदास कभी छत्तीसगढ़ भी आये हो।
वे आगे पैराग्राफ 113 पृष्ठ 34 में लिखते हैं कि ये वास्तविक रूप से कास्तकार मजदूर और किसान वर्ग है।
रायपुर गजेटियर पृष्ठ 2 में सतनामी के बारे में लिखते हुए कहते हैं कि:-
ये लोग जिन्हें च*** कहा गया वे वास्तव में किसी भी प्रकार से उस जाति से कोई संबंध नहीं रखते हैं।
They do not by any means necessary belong to that caste of that name,
बल्कि इनका सतनामी समाज तो सभी जाति धर्म के लोगों के लिए खुला है।जो भी सतनाम धर्म स्वीकार करते हैं।
But the admission to the Satnami religion, which is open to all caste,
अब यहां पर हम वास्तव में विचार करें :-
1 क्या लोग एक जाति को छोड़कर किसी दुसरे जाति को स्वीकार करेंगे जो वैदिक धर्म अनुसार हीन जाति में सम्मिलित हैं?
2 क्या कोई व्यक्ति कभी नीच कहलाने के लिए छोटी जाति को ग्रहण करेंगे?
3 लोग समाजिक परिस्थितिक बदलाव के लिए धर्म को स्वीकार करते हैं या जाति को?
जबकि सेंट्रल प्रोविंस गजेटियर में लिखा है कि :-
He preached a new religion मतलब गुरु घासीदास ने एक नवीन पंथ ( Satnami religion) का उपदेश दिया था।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि सतनामी जाति नहीं धर्म था।
सेंट्रल प्रोविंस गजेटियर 1867 में पृष्ठ 116 में गुरु घासीदास को religious enthusiast लिखा है। इससे भी स्पष्ट होता है कि गुरु घासीदास ने धर्म का उपदेश दिया था।
अब प्रश्न यह उठता है कि उन्हें सतनाम धर्म के उपदेश कि प्रेरणा कहां से मिली होगी?
इस संबंध में रायपुर गजेटियर 1909 और ट्राइब्स एंड कास्ट 1916 पृष्ठ 307 में एक मत प्रस्तुत किया गया है:-
जिसमें रसेल के सहायक हीरालाल लिखते हैं कि- शायद
गुरु घासीदास को सतनाम के बारे में प्राचीन सतनाम धर्म के किसी अनुयाई द्वारा बताई गई होगी। जो एक राजपूत जगजीवन दास के द्वारा उत्तर भारत में उपदेशित है।
He got his inspiration from a follower of the older Satnami sect of northern India, this was inaugurated by a Rajput Jag jivan das of Barabanki district,
यह भी तथ्यात्मक दृष्टि से उचित नहीं ठहरता क्योंकि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि कभी जगजीवन दास के कोई अनुयाई कभी छत्तीसगढ़ में प्रचार करने गुरु घासीदास के समय काल में आये थे। जबकि जगजीवन दास साहेब कि मृत्यु भी सन्1761 में हो चुकी थी।
सेंट्रल प्रोविंस 1861-1922 के अनुसार गुरु घासीदास को चालिस वर्ष के आयु में (सन् 1795 ) में सतनाम की प्राप्ति हुई थी। इसलिए यदि कोई उतरभारत से छत्तीसगढ़ में सतनाम धर्म के उपदेश करने आये होते तो अंग्रेजों के द्वारा उसका वर्णन अवश्य किया जाता । जैसे कि गुरु घासीदास के बारे में किया गया है।
इससे स्पष्ट होता है कि गुरु घासीदास के पुर्व छत्तीसगढ़ में सतनाम धर्म और सतनामी समाज का अस्तित्व था।
इस संबंध में पंजाब के जनसंख्या कार्य करने वाले अंग्रेज अफसर इतजेबत्सन ने एक तथ्य प्रस्तुत किया है कि नारनौल हरियाणा में सतनामी समाज पहले से निवास करते आ रहे हैं। जिसमें से ही कुछ सतनामी सन् 1672 में छत्तीसगढ़ के ओर मुगल सम्राट के विरुद्ध विद्रोह करने के बाद आये। इसका वर्णन मुगल इतिहासकार खफी खान ने मिनताबे इंतेखाब नामक पुस्तक में लिखा है। सतनामी समाज के बहुत से लेखक इस मत को स्वीकार भी करते हैं। और लिखते हैं कि:-
GuruGhasidas ancestor pavitradas was a true patriot and a great Satnami warrior of Narnol in Panjab
( द ग्रेट पैटरियाट वारियर सैंट2015 पृष्ठ 6)
ऐसे ही बहुत से विद्वानों के अनुसार लिखा गया है।
डेंजिल चार्ल्स जेल्फ इत्जेबत्सन जिन्होंने पंजाब के सेंसस कार्य किया था। उन्होंने अपने सेंसस रिपोर्ट आफ पंजाब 1881 में जाति संख्या 105 में साध जाति का उल्लेख किया है जो सतनाम की उपासना करते थे और इसलिए उन्हें सतनामी कहते थे। जो सतनाम धर्म के अनुयाई थे।
सतनामी लेखकों में
राजमहंत नंकेशरदास टंडन लिखते हैं:-
आदिकाल से आजतक सतनामियो का इतिहास।
नारनौल रोहतक हरियाणा में प्रमाणित है वास।
इसका मतलब यह है कि सतनामी समाज का अस्तित्व सिंधु घाटी सभ्यता के समय से है। जो श्रमण परंपरा के है जो छत्तीसगढ़ सहित पंजाब प्रांत तक विस्तृत थे।
पं गिरवर प्रसाद डहरिया लिखते हैं कि:-
सिंधु घाटी से हम आये, नहीं कोई जाति हिन्दू कहाये।
महानदी हमरो पुरवासा, प्राकृत धर्म सतनाम उपासा।।
अर्थात:-
सतनामी समाज का उद्भव सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान हुई है
वे जाति - धर्म से हिन्दू नहीं है।
बल्कि सिंधु नदी के किनारे बसने वाले श्रमण संस्कृति के लोग थे। जो दैववाद को नहीं मानते थे। बल्कि निर्गुण निराकार सत के उपासक थे। सत को मानने के कारण और सतनाम का उपासना करने के कारण सतनामी कहलाते थे।
इस संबंध में सिंधु नदी के अध्ययन करने पर पता चला कि उसका प्राचीन नाम महानदी है।
तथा सिंधु का मतलब होता है। अथाह जलराशि, अथवा जल समुह। इसी सिन्धु से हिन्दू और इंडज शब्द की उत्पत्ति हुई।जो उसका अपभ्रंश है। जो विदेशी द्वारा दिए गए हैं। इंडिया अंग्रेजी तथा हिंन्दु फारसी का शब्द है । छत्तीसगढ़ के समाजिक व्यवस्था में हमेशा से सतनामी समाज का पृथक अस्तित्व मान बसाहट रहा है। यह बात अलग है कि सन् 1860 के सतनाम धर्म के दमनात्मक चक्र के तहत् सतनामी समाज को छोड़कर शेष पिछड़ी जातियों को हिन्दू धर्म में निम्न समाजिक परिस्थितिक स्थान प्राप्त होने के बावजूद सम्मिलित कर लिया गया । इसके दो कारण थे:-
1 सतनाम धर्म के प्रचार और अन्य जाति समाज के लोगों द्वारा सतनाम धर्म के अंगीकार को रोकना।
2 सतनामी समाज को जाति रुप में परिणित करना जिसकी शुरुआत गुरु घासीदास के विरोध स्वरूप सन् 1818 में हो चुका था।
इन सभी तथ्यों के आधार पर सिद्ध होता हैं कि सतनाम धर्म गुरु घासीदास के सतनाम पंथ के स्थापना के पुर्व से छत्तीसगढ़ में था। जिसका पुनरुत्थान और प्रचार प्रसार गुरु घासीदास बाबा के जीवन में सर्वाधिक हुआ।
शेष तथ्यों के आधार पर विश्लेषण आगामी भाग में और किया जायेगा 🙏
धन्यवाद 🙏
🏳️ सतनाम
🖍️ नरेंद्र भारती
सतनामी एवं सतनाम धर्म विकास परिषद
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