रज मुद्रा

मासिक धर्म के समय स्त्री के प्रजनन अंगों से निकलने वाली रक्त को रज कहते हैं।
  रज एक विशेष गुण का नाम है जिसे रजोगुण कहा जाता है।
  रज का अर्थ होता है जल।
 मूलत: रज का संबंध स्त्री से है इसलिए यह मुद्रा विशेष तौर पर स्त्रियों के लिए है। 

विधि
पद्मासन सुखासन या वज्रासन में बैठ जाए। हाथ को फैलाकर घुटने पर रख ले , हथेली को आकाश की ओर रखें , कनिष्ठा उंगली अर्थात छोटी उंगली को मोड़ कर हथेली से मिलाएं शेष तीन उंगलियों को आपस में मिलाकर सीधी रखें। इसे रजमुद्रा कहते हैं। इस मुद्रा को दोनों हाथों में बनाएं।

समय
इस मुद्रा को प्रतिदिन 45 मिनट करना है यदि एक बार में नहीं कर सकते तो 15:15 मिनट दिन में तीन बार करें। 
 लाभ 
 इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से मासिकधर्म से संबंधित परेशानी दूर हो जाताा है जैसे कि समय में मासिक धर्म ना आना , रक्त्त स्राव कम होना , रक्त्त स्राव अधिक होना। अधिक दिनों तक रक्तस्राव होना ।
प्रजनन अंगों से संबंधित सारी परेशानियों का अंत हो जाएगा।
गर्भाशय से संबंधित समस्या भी उससे ठीक होता है।
सिस्ट जैसी समस्याओं में भी लाभ दायक है।
अंडा ना बनने जैसी समस्या में भी लाभ पहुंचता है
  इसके अलावा सिर का भारीपन रहना, छाती में दर्द, पेट, पीठ, कमर का दर्द आदि रोगों मे भी लाभ पहुंचता है।
रजमुद्रा करने से केवल स्त्रियों को ही नहीं लाभ होता बल्कि अगर पुरुष इस मुद्रा को करता है तो उनके वीर्य संबंधी रोग समाप्त हो जाते हैं। 



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