प्रेम की उत्पत्ति के ज्योतिष कारण
प्रथम भाव एवं प्रथम भाव के स्वामी, चतुर्थ भाव एवं चतुर्थ भाव के स्वामी , पंचम भाव एवं पंचम भाव का स्वामी, सप्तम भाव एवं सप्तम भाव का स्वामी और नवम भाव एवं नवम भाव का स्वामी के महादशा , अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा मैं प्रेम के बीज उत्पन्न होते हैं।
चंद्रमा मन का कारक है जो कि निश्छल प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है। जैसे की मां की ममता।
शुक्र प्रेम एवम् वासना का कारक जो कि प्रेम संबंध बनाने के लिए प्रेरित करता है। जैसे कि पति - पत्नी , प्रेमी - प्रेमिका
बुध बुद्धि का कारक हैं जोकि प्रेम संबंध उत्पन्न करने का काम करते हैं।
इन की महादशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में प्रेम संबंध बनने के चांस रहते हैं।
इन ग्रहों , भाव के स्वामी का आपसी संबंध यूती, दृष्टि राशि परिवर्तन या किसी अन्य प्रकार से बने तो तो प्रेम संबंध उत्पन्न होता है।
मंगल , शनि , राहु अन्यत्र (नजायज) प्रेम संबंध बनाने के लिए उकसाते है ।
मंगल , शनि , राहु का चंद्र, शुक्र , बुध के साथ संबंध बने या पंचम , नवम , सप्तम भाव में स्थित हो या पंचमेश सप्तमेश नवमेश के साथ हो तो एक से अधिक प्रेम संबंध की ओर ले जाते हैं। यदि इनका संबंध द्वादशेश के साथ बन जाए तो क्रियात्मक होते हैं ऐसे प्रेम संबंध। नहीं तो ऐसे विचार मन में उत्पन्न तो जरूर होते हैं परंतु क्रियात्मक नहीं होते।
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