क्या भगत सिंह नास्तिक थे
भगत सिंह जी को बहुत से लेखक नास्तिक बतलाते हैं। यदि वे नास्तिक थे तो निम्न वाक्य क्यों लिखें । कहीं भगत सिंह जी को समझने में गलती तो नहीं हुआ है। भगत सिंह जी गरीबों का शोषण करना पूंजीपतियों द्वारा पसंद नहीं करते थे। भगत सिंह यह जरूर लिखते हैं कि अंतिम समय में मैं यदि ईश्वर को याद किया तो तुम लोग यह समझोगे कि जिसकी खिलाफ मैंने सारा जीवन लिखा आज अंतिम समय में उनके डर से उनको याद कर रहा हूं । परंतु भगतसिंह द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल में लिखी गई 404 पृष्ठ की डायरी के कुछ पन्नों पर लिखी उर्दू पंक्तियों से भी यह अहसास होता है कि वे नास्तिक नहीं थे।
डायरी के पेज नंबर 124 पर भगतसिंह ने लिखा है- दिल दे तो इस मिजाज का परवरदिगार दे, जो गम की घड़ी को भी खुशी से गुलजार कर दे। इसी पेज पर उन्होंने यह भी लिखा है- छेड़ ना फरिश्ते तू जिक्र-ए-गम, क्यों याद दिलाते हो भूला हुआ अफसाना।
परिवार के पास रखी इस डायरी का अब प्रकाशन हो चुका है, जिसे दिवंगत बाबरसिंह और इतिहासकार केसी यादव ने संपादित किया है। डायरी के एक तरफ भगतसिंह की मूल लिखावट है और दूसरी तरफ अँगरेजी में उसकी सरल व्याख्या।
इस व्याख्या में परवरदिगार और फरिश्ते जैसे शब्दों को क्रमश: भगवान और देवदूत के रूप में अनुवादित किया गया है।
इस मूल डायरी की प्रति और माइक्रो फिल्म दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी है। डायरी के पेज नंबर 124 पर भगतसिंह ने 'स्प्रिच्युअल डेमोक्रेसी' शब्द का भी इस्तेमाल किया है।
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