डॉक्टर बी एस जोशी जीवन परिचय
सतनामी समाज के गौरव
#डॉ_बी_एस_जोशी
( 26 सितम्बर, जन्मदिन पर विशेष)
*डॉ बी एस जोशी जी* उर्फ़ *डॉ बिश्वम्भर सिंह जोशी जी* सतनामी समाज के महान समाज सेवक, सुधारक और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक थे।। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी, विद्वान्, शिक्षाविद, लेखक, चिंतक , कर्मठ समाज संगठक थे।।
*डॉ बी एस जोशी जी* का जन्म 26 सितम्बर 1942 को ग्राम सांकरी, गुंडरदेही , जिला बालोद, छ ग में हुआ था।। उनके पिता श्री एम- सिंह जोशी जी और माताजी श्रीमती फुलेश्वरी देवी जोशी जी थीं।। उनके चार भाई और दो बहनें थीं।। उन्हें परिवारिक संस्कार और माहौल ऐसे मिला कि गरीबी, पिछड़ापन , असुविधाओं के बावजूद भी सभी भाई बहन उच्च शिक्षित होकर बड़े पदों पर पदस्थ होकर शासकीय सेवाओं में उच्च प्रतिमान स्थापित किये।। यही कारण है कि आज उनके बाद उनके परिवार में दूसरी और तीसरी पीढ़ी के सदस्य भी उच्च शिक्षित और बड़े शासकीय सेवाओं में सेवारत हैं।।
उनका प्रारम्भिक शिक्षा समीपस्थ ग्राम *पैरी* में हुआ ।। मिडल स्कूल ग्राम *लाटाबोड़* में और हाई स्कूल की शिक्षा रायपुर के *बहुद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला* वर्तमान *जय नारायण पांडेय उच्चतर माध्यमिक शाला* में हुआ।।
ततपश्चात रायपुर के विज्ञान महाविद्यालय से कृषि में बी एस सी की डिग्री लिए।।
फिर उनका चयन नई दिल्ली के *भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद* में कृषि में एम एस सी के लिए हो गया।। वहाँ से *एम एस सी के पश्चात 1974 पी एच डी PhD* भी किये।
वे किसी भी विषय में *पी एच डी PhD करने वाले सतनामी समाज के पहले* व्यक्ति थे।।
वे प्रारम्भ से ही पढ़ाई लिखाई में बहुत ही कुशाग्र थे।। प्रत्येक कक्षाओं में हमेशा वे मेरिट में स्थान प्राप्त करते थे।।
नई दिल्ली के प्रतिष्ठित *भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद* " से *पी एच डी* की डिग्री करने के पश्चात वहीं दिल्ली के एक बड़े फर्टिलाइजर कम्पनी *श्रीराम फर्टिलाइजर्स* में रिसर्च साइंटिस्ट- शोध वैज्ञानिक के रूप में सेवायें दिए।। उनका कार्यक्षेत्र दिल्ली- आगरा और जयपुर रहा।।
इसी बीच उनकी शादी -- मध्यभारत में *सतनाम* के प्रवर्तक *सतगुरु बाबा घासीदास जी* के परिवार अर्थात *गुरु परिवार में गुरु मनमोहन दास जी* की सुपुत्री *हेमा गुरु गोसाई* से हो गया।।
जैसा कि परम्परा है-- गुरु परिवार की कन्या से शादी होने पर वर अर्थात् लड़के को *दीवान* कहा जाता है।। उस समय कई साल तक भंडारपुरी धाम के *गुरु परिवार में गुरु मनमोहन दास साहेब* ही सर्वेसर्वा थे।। समाज में उनका बहुत *मान सम्मान* था।। भंडारपुरी धाम की सम्पूर्ण व्यवस्था वे ही संभालते थे।। भंडारपुरी दशहरे के अवसर पर *संत समाज को दर्शन देने के लिए गुरु मनमोहन दास साहेब ही हाथी पर सवार होकर निकलते थे*।।
*डॉ बी एस जोशी जी, वैसे तो अपने घर - परिवार से ही बहुत ही संस्कारित , सभ्य और सम्मानित , उच्च शिक्षित , उच्च पदस्थ व्यक्ति थे।। गुरु परिवार के *दीवान* बनने के बाद उनके मान- सम्मान और प्रतिष्ठा में और *चार चाँद* लग गया।।
वे बहुत ही संघर्षशील व्यक्ति थे।। बहुत विषम परिस्थितियों और विकट हालात से वे ऊपर उठे थे।। उस समय समाज की दयनीय हालात को देखकर वे बहुत चिंतित रहा करते थे।। अशिक्षा, गरीबी, अंध विश्वास, रूढ़िवाद, शोषण, दमन और आपसी फुट जैसी स्थिति देखकर वे बहुत द्रवित हो जाते थे।।वे समाज के लिए कुछ करना चाहते थे।। और यह मौका भी जल्दी ही आ गया, जब रायपुर में नया *कृषि विश्वविद्यालय* की स्थापना हो गई।।
सन 1983 के जोरा, रायपुर में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, जिनका नामकरण बाद में *इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय* हो गया।।
वे फर्टिलाइजर कम्पनी की अपनी नौकरी छोड़कर रायपुर के कृषि विश्विद्यालय में *प्रोफेसर* के रूप में नियुक्त होकर आ गए।।
यहाँ वे कृषि विश्विद्यालय में अपने दायित्वों का कुशल निर्वहन करने के साथ साथ अब अपने समाज के विकास में भी *तन, मन, धन से समर्पित* होकर लग गए।।
कृषि विश्विद्यालय की नई नई स्थापना हुई थी, जिन्हें पूरी तरीके से स्थापित करने, संचालन में लाने, विभिन्न विभागों के गठन, पाठ्यक्रम निर्धारण, शोध कार्य प्रारम्भ कराने, कृषि प्रधान छ ग की परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न किस्म के फसलों, बीजों की नई प्रजाति विकसित करने के अनुसंधान आदि में उन्होंने महती भूमिका निभाए।।
उन्होंने सतनामी समाज सहित, छ ग के सर्व मानव समाज के छात्रों को कृषि क्षेत्र की पढ़ाई के लिए विशेष रूप से प्रेरित- प्रोत्साहित किये।। उनके मार्गदर्शित- पढ़ाये हुए कई छात्र आज देश- विदेश के विभिन्न भागों में कई बड़े और महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।।
रायपुर आने के बाद वे सामाजिक कार्यो में भी सक्रिय भूमिका निभाने लगे।। रायपुर में *सतनाम सेवा संघ* के वे आजीवन संस्थापक - संचालक सदस्य रहे।। *सतनाम सेवा संघ* में डॉ.बी.एस. जोशी के साथ डॉ शंकरलाल टोडर, जगतु राम सारंग, डॉ बिशम्भर बरमा, छन्नूलाल डहरिया, सुंदरलाल लहरे, जगमोहन दास बंजारे, तुलसीराम टंडन, नीलकंठ गायकवाड़, टी आर डहरिया जैसे अन्य बहुत से लोग थे।।
*सतनाम सेवा संघ* उस समय सतनामी समाज का सबसे बड़ा और सक्रिय संगठन था।। उस संगठन का उस समय लगभग 4500 गाँवों तक पहुंच/ विस्तार हो गया था ।। *गिरौदपुरी मेला* को व्यवस्थित करने और बढ़ाने में इस संस्था का बहुमूल्य योगदान रहा।।
इस संस्था के क्रिया कलापों, गतिविधियों और कार्यकर्मो के संचालन में *डॉ बी एस जोशी जी* हमेशा अग्रिम पंक्ति में *तन, मन, धन, समय और श्रम* देते थे।।
सतनामी समाज के लिए डॉ बी एस जोशी जी का योगदान :---
1/ *डॉ बी एस जोशी जी ने देवपुरी के डॉ शंकरलाल टोडर और सेरीखेड़ी श्री अरगचंद भारती जी के साथ मिलकर पहली बार सतनामी समाज के लिए *अ१ का एक LOGO* *लोगो* तैयार किया, जो आज सभी जगह प्रचलन में आ गया है और सर्वस्वीकृत है।।
2/ डॉ बी एस जोशी जी ने डॉ शंकरलाल टोडर जी के साथ मिलकर पहली बार गुरु घासीदास जी के छायाचित्र को व्यवस्थित रूप से छायांकित किये ।।
3/ *सतनाम सेवा संघ* के माध्यम से सतनाम साहित्य के *लेखन प्रकाशन* में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा।।
डॉ शंकरलाल टोडर जी द्वारा लिखित कई किताबों का उन्होंने *संपादन* किया।।
4/ *सतनाम सेवा संघ* नामक संस्था को सही मार्गदर्शन देने, संचालित करने, विस्तारित करने, व्यवस्थित करने में उनका बड़ा योगदान था।।
5/ *गिरौदपुरीधाम मेला* के संचालन को व्यवस्थित करने, उनका बाउंड्री वाल यानि घेरा करवाकर मेला के लिए स्थान आरक्षित कराने, वहाँ बिजली- पानी, सड़क, बांध, पहुंच मार्ग आदि के कार्य करवाने के लिए शासन - प्रशासन के पास भागदौड़ करके कार्य करवाने में उनका बड़ा योगदान था।।
6/ चूँकि वे पढ़े लिखे उच्च शिक्षित विद्वान् थे और अकादमिक व्यक्ति थे, अतः उनका अकादमिक जगत में व्यापक सम्पर्क था , जिसका उपयोग उन्होंने *सतनाम धर्म, सतनामी समाज और गुरु घासीदास बाबा के सम्बन्ध में शोध- रिसर्च के लिए करने/ करवाने में किया*।।
चूँकि वे गुरु परिवार के *दामाद/ दीवान* थे, इसलिए उन्हें इस कार्य में थोड़ी सहूलियत थी।।
7/ 1986-87 में शासकीय रिकार्डो में और कुछ गैर- सतनामी लेखकों द्वारा सतनामी समाज के बारे में आपत्तिजनक लेखों पर हमेशा के लिए सुधार के लिए तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गठित *सुर्यवंशी* *कमिटी* के समक्ष समाज का पक्ष मजबूती से रखने के लिए उनके ही नेतृत्व में कई बार *मय साक्ष्य दलीलें और तर्क दिया गया, जिसे शासकीय पक्ष- कमिटी ने स्वीकार किया और माना कि सतनामी सिर्फ सतनामी है, अन्य और कुछ भी नही* ।।
बाद में अंतिम रूप से राजपत्र में प्रकाशन के समय फिर चालबाजियां करके उन्हें पेंडिंग में डाल दिया गया, जो आज भी उसी स्थिति में ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है।।
8/ समाज के कई छात्रों को उन्होंने कृषि क्षेत्र की पढ़ाई को कैरियर के रूप में लेने के लिए प्रेरित- प्रोत्साहित किया।। जिनमे से *कई आज महत्वपूर्ण पदों* पर पदस्थ हैं।।
9/ वे गरीब छात्रों को पढ़ाई के लिए हर सम्भव हमेशा मदद करते / करवाते रहते थे।।
10/ हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में उनका समान अधिकार था।। अतः उन्होंने *सतनाम धर्म, सतनामी समाज के बारे में और सतगुरु बाबा घासीदास जी के सन्देश, उपदेश, सिद्धांत और जीवन दर्शन* को देश- विदेश में व्यापक रूप से प्रचारित- प्रसारित करने के लिए उन्होंने *अंग्रेजी में लेख लिखकर राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में कई बार प्रकाशित करवाया*।।
11/ कई मौके पर राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने छ ग के तरफ से SC/ST वर्ग का कई बड़े कार्यक्रमों में दिल्ली और भोपाल में प्रतिनिधित्व किया।।
12/ *रायपुर दूरदर्शन और आकाशवाणी केंद्रों में वे नियमित रूप से *कृषि पर होने वाले परिचर्चा और संवाद* कार्यकर्मो में जाते रहते थे।।
13/ वे अपने अंतिम समय तक समाज विकास की चिंता में यथासम्भव प्रयासरत रहे।।
वे सन 2004- 05 में इंदिरा गांधी कृषि विश्वद्यालय , रायपुर से *Director Extension- Agriculture, Raipur* के पद से सेवा निवृत्त हुए।।
सेवा निवृत्ति के बाद भी अपने निवास में उनका अध्ययन, लेखन, चिंतन मनन , सामाजिक सम्पर्क चलता रहा।। धीरे धीरे उनका स्वास्थ्य गिरता गया और 6 जुलाई 2008 को वे सतलोकी हो गए।।
*इस प्रकार समाज के प्रति किये गए कार्यो की वजह से वे हमेशा याद किये जाते रहेंगे और नई पीढ़ी को प्रेरणा देते रहेंगे*।।
सतनाम।।
अश्वनी कुमार रात्रे
सम्पादक
सतनाम सार- मासिक
गिरौदपुरी धाम
मोब 81205- 83111
बढ़िया नवीन जानकारी स्वतंत्र भारत के बाद सतनामी समाज के संघर्षों को पहचान दिलाता हुआ 🙏🌹🌹
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर जानकारी
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