शुक्र मंगल की युति

काल पुरुष की कुंडली में मंगल जहां लग्न और अष्टम भाव का स्वामी है, तो शुक्र वही द्वितीय और सप्तम भाव का स्वामी है। मंगल जहां पुरुष है तो शुक्र स्त्री है। मंगल जहां भाई है, देवर है, पति है, तो शुक्र पत्नी है, प्रेमिका है ,भाभी है । मंगल जहां भूमि है तो शुक्र सजावट है । मंगल जहां शक्ति है, तो शुक्र वही प्रेम है। मंगल जहां यौवन है तो शुक्र प्रेम रस है। मंगल जहां देह हैं तो शुक्र रूप है। मंगल जहां गर्मी है तो शुक्र वही कामुकता है। मंगल जहां आवेग है तो शुक्र वही सुगंध है। मंगल जहां जुनून है तो शुक्र प्रभाव है। दंगल जहां यौवन है तो शुक्र आकर्षण है। मंगल जहां रक्षक है तो शुक्र वही प्रेम है। मंगल जहां त्याग है तो शुक्र प्रेम है। मंगल जहां हिम्मत है तो शुक्र कला है। मंगल जहां आग है तो शुक्र घी है। मंगल जहां खून है तो शुक्र वीर्य है।
शुक्र और मंगल की युति से कृष्ण योग (कृष्ण=काला) का निर्माण होता है। कुछ ज्योतिषी इसे व्यभिचारी योग भी कहते है। मंगल रक्त, क्रोध और उत्तेजना का कारक ग्रह होता है। यह जिस ग्रह के साथ युति करता है उस ग्रह से संबंधित गुणो को भड़का देता है। चूँकि शुक्र प्रेम और वासना का कारक माना जाता है अत: शुक्र की मंगल के साथ उपस्थिति शुक्र के गुणों को अनियंत्रित कर देती है। परिणामस्वरूप इस युति में जन्म लेने वाला जातक अपने जीवन मे एक से अधिक या अनेक संबंध बनाता है। वह एक जीवनसाथी से संतुष्ट नहीं रहता है और नये नये संबंध तलाशता रहता है। इस युति पर गुरु की पूर्ण दृष्टि या युति हो जाये तो सब कुछ ठीक रहता है, किन्तु गुरु की पूर्ण दृष्टि या युति न हो तो यह योग अशुभ फल देता है। चूँकि शुक्र प्रेम का कारक ग्रह है और मंगल प्रेम भंग करने वाला ग्रह माना जाता है अत: इन दोनो के एक साथ होने से प्रेम भंग हो जाता है। वैवाहिक जीवन पर इस युति का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पुन: मंगल और शुक्र नैसर्गिक सम और तात्कालिक शत्रु मिलकर पूर्ण शत्रु बन जाते है। इसमें भी यह देख लेना आवश्यक है कि यह युति किस ग्रह के घर में बन रही है। यदि यह युति गुरु के घर(धनु,मीन) में बन रही है तो अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ता है। इसी तरह बुध के घर(मिथुन,कन्या) में भी इसका प्रभाव न्यून रहता है कारण कि बुध को नपुंसकता का ग्रह माना जाता है। किन्तु यदि यह युति स्वयं शुक्र के घर(वृष,तुला) या शनि के घर(मकर,कुम्भ) में बन रही हो तो जातक के चरित्र बिगड़ने की अधिक संभावना रहती है। परिणामस्वरूप ऐसा जातक अपने अवैध संबंधों के लिये अपनी प्रतिष्ठा का कोई ध्यान नहीं रखता और शर्म और लज्जा भी उसमें कम होती है, विशेषकर तब जब गुरु और सूर्य भी निर्बल हो। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यदि गुरु की युति या दृष्टि हो तो गुरु एक बड़ा ग्रह होने के कारण यह सब ढ़क लेता है जिससे जातक का चारित्रिक दोष ढ़क जाता है क्योंकि कई बार ऐसे संबंध प्राय: दूर के न होकर परिवार के नजदीकी रिश्तों के होते है। कृष्ण योग या व्यभिचारी योग के हीं कुछ फल आंशिक रूप से तब भी मिलते है जब मंगल और शुक्र का दृष्टि संबंध हो अर्थात दोनो एक दूसरे से सातवे घर मे हो या मंगल और शुक्र का गृह परिवर्तन योग हो अर्थात मंगल शुक्र के घर(वृष,तुला) और शुक्र मंगल के घर(मेष,वृश्चिक) मे हो। यदि मंगल या शुक्र दोनो मे कोई वक्री हो तो इसका प्रभाव कम हो जाता है। शुक्र के अस्त होने से या सूर्य के साथ होने से भी इसका प्रभाव कम हो जाता है। इस योग का प्रभाव पहले, सातवें और ग्यारहवें घर में अधिकतम होता है। छठे घर में न्युनतम प्रभाव होता है। यदि आठवें या बारहवें घर में हो तो ऐसा जातक अपने अवैध संबंधों के कारण अपयश प्राप्त करता है। ग्यारहवें घर में हो तो अवैध संबंध व्यवसायिक और आर्थिक कारणो से या व्यवसायिक और आर्थिक हितों के लिये होते है। मंगल की शुक्र के साथ युति स्वयं मंगल के गुणों के लिये भी अनुकूल नहीं होती है। कारण कि मंगल युद्ध, साहस और वीरता का कारक ग्रह है और इसकी युति स्त्री कारक ग्रह शुक्र के साथ होने पर यह जातक को कायर, भीरु और डरपोक बना सकता है। निष्कर्ष्त: शुक्र और मंगल की युति जन्म कुण्डली मे प्रेम और वैवाहिक जीवन के लिये अशुभ होती है। प्रत्येक घर तीस अंश का होता है। एक हीं घर में मंगल और शुक्र जितने कम अंश तक पास-पास होते है उतना हीं अशुभ फल मिलता है।

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