प्रेम के कारक भाव-III
ग्रहो के पश्चात् हमें कुण्डली के अंतर्गत प्रेम संबंध को प्रदर्शित एवं वर्धित करने वाले भावों पर दृष्टिपात करना चाहिए ।
लग्न
चतुर्थ
पंचम
सप्तम
तृतीय
नवम
एकादश
द्वादश
भाव पर विचार करना पढ़ता है । वैसे तो कुण्डली के बारह भाव में किसी न किसी रूप में आपसी संबंध होता है । जिसके कारण प्रेम के संबंध में अपना अच्छा या बुरा प्रभाव देता है।
लग्न - जन्म कुण्डली के अंतर्गत शरीर को प्रदर्शित करता है । क्योंकि सभी क्रियाएँ शरीर एवं मस्तिष्क से सम्बंधित होता है । साथ ही लग्न व्यक्ति की मानसिकता को भी प्रदर्शित करता है , इसलिए लग्न का बलि होना आवश्यक है । यदि लग्न निर्बल होगा ,तो व्यक्ति की भावनाओं एवं उससे जुडी मानसिकता में सुदृढ़ता नहीं आ पाएगा । जिसके वजह से प्रेमी हृदय को अनेक विघ्न - बाधाओं का सामना भी करना पड़ सकता है ।
चतुर्थ भाव - यह भाव हृदय का माना जाता है ,हृदय से ही हमारे मन की समस्त भावनाएँ जुडा होता है । अतः हृदय की समस्त भावनाओं की प्राप्ति चतुर्थ से द्वितीय अर्थात पंचमंभाव को माना गया है ।
पंचम भाव - इस भाव को मैत्री का भाव भी कहा जाता है । दो दिलों में प्रेमालाप के लिए सर्व प्रथम मैत्री का होना अत्यन्त आवश्यक है । यह मैत्री जातक को प्रेम नौका पर चढ़ने में सहायता प्रदान करता है ।
सप्तम भाव - इस भाव को विपरीत लिंग का सुचक माना जाता है । विपरीत पक्ष के प्रति प्रेम की उद्दाम लहरो को यही भाव अपने अंदर अंतरनिर्हित करता है । अतः सप्तम भाव पंचम भाव के प्रतिफल के रूप में स्वयं को प्रदर्शित करता है ।
तृतीय भाव-- इस भाव को पराक्रम का भाव भी माना जाता है , और प्रेम का इजहार करने में विचारों एवं इच्छाशक्ति की सुदृढ़ता का आवश्यकता होता है । इन विचारों को प्रदर्शित एवं अभिव्यक्त करने के लिए साहस का आवश्यकता होता है । यदि यह भाव बलि न हुआ तो व्यक्ति प्रेम का इजहार नहीं कर सकता । उसका प्रेम मन ही मन दम तोड़ देगा ।
नवम भाव -- जन्म कुंडली के नवम भाव को धर्म त्रिकोण, पिता तथा गुरु के लिए देखा जाता है. अगर लग्न से नवम भाव या नवमेश पर पाप प्रभाव पड़ रहा है अथवा नवमेश नीच राशि में स्थित है अथवा बुरे भाव में स्थित है तब ऎसा जातक अपनी धार्मिक व सामाजिक मान्यताओं को तोड़कर और अपने पिता अथवा गुरु की आज्ञा का उल्लंघन कर प्रेम विवाह कर सकता है. पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह करता है।
एकादश भाव -- इस भाव से अपने मनोकामनाओं की पूर्ति होगा या नहीं होगा इस सबंध में विचार किया जाता है । यदि प्रेम विवाह कि चाहत है तो होगा कि नहीँ इस बाव से विचार करते है । जीवन साथी का किसी दूसरे स्त्री या पुरुष से प्रेम संबंध स्थापित होगा या नहीं यह एकादश भाव से देखा जाता है ।
द्वादश भाव-- द्वादश भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से छठा(शत्रु) होता है इसलिए यह वैवाहिक जीवन में किसी दूसरे व्यक्ति के प्रवेश(Entry) अर्थात घुसपैठ को दर्शाता है| द्वादश भाव शैय्या सुख(Bed Pleasures) का भी है| यदि व्यक्ति की कुंडली में छठे व ग्यारहवें भाव के स्वामी(शत्रु व अन्यत्व) तथा राहु(बाहरी तत्व) का संबंध द्वादश भाव(शय्या सुख व भोग) व उसके स्वामी हो जाए तो मनुष्य का जीवनसाथी बाहरी व्यक्ति (परस्त्री या परपुरुष) से प्रेम संबंध रखता है अर्थात बेवफ़ा होता है|
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