चतुर्थ भाव

चतुर्थ भाव सुख स्थान या मातृ स्थान के नाम से जाना जाता है| इस भाव में व्यक्ति को प्राप्त हो सकने वाले समस्त सुख विद्यमान है इसलिए इसे सुख स्थान कहते हैं| मनुष्य का प्रथम सुख माता के आँचल में होता है| केवल वही है जो व्यक्ति की तब तक रक्षा करती है जब तक वह अपने सुख को अर्जित करने में सक्षम न हो जाए| चतुर्थ भाव व्यक्ति की माता से संबंधित समस्त विषयों की जानकारी भी देता है इसलिए इसे मातृ भाव भी कहा जाता है| तृतीय भाव से दूसरा भाव होने के कारण यह भाई-बहनों के धन को भी सूचित करता है| मानव जीवन में इस भाव का बहुत अधिक महत्व है| किसी भी मनुष्य के पास भौतिक साधन कितनी भी अधिक मात्रा में क्यों न हों यदि उसके जीवन में सुख-शांति ही नही तो क्या लाभ? इसलिए इस भाव से मनुष्य को प्राप्त होने वाले सभी प्रकार के सुखों का विचार किया जाता है| जन्मकुंडली में यह भाव उत्तर दिशा तथा अर्द्धरात्रि को प्रदर्शित करता है| इस भाव से सुख के अतिरिक्त माता, वाहन, शिक्षा, वक्षस्थल, पारिवारिक सुख, भूमि, कृषि, भवन, चल-अचल संपति, मातृ भूमि, भूमिगत वस्तुएं, मानसिक शांति जनता आदि का विचार किया जाता है|  यह स्थान कालपुरुष के वक्षस्थल का कारक है| यही कारण है कि इस जीवन में पर्याप्त सुख व आनंद प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का हृदय निर्मल होना चाहिए|
 चतुर्थ भाव का कारक चंद्रमा और बुध है। 
चंद्रमा से हम माता का भी विचार करते हैं।
चतुर्थ भाव , चतुर्थेश और चतुर्थ भाव का कारक यदि शुभ प्रभाव में हो तो चतुर्थ भाव संबंधी समस्त प्रकार के शुभ फल प्राप्त होते हैं।

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