बहस के दुष्परिणाम

जय सतनाम मित्रों 
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                   आज कुछ अपनी यादों के झरोखो से कुछ बाते , आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूँ  । आज से करीब सात साल पूर्व मैंने फेसबुक ज्वाईन किया । दो चार लेख पोस्ट करने के बाद मुझे किसी फेसबुक मित्र ने समाजिक ग्रुपों में जोड दिया । वहाँ अकसर बहस होते थे , पता हि नहीं चला मैं भी उन बहसों में कब सामिल हो गया । मैंने लोगों को समझाने के लिए हर प्रकार से तर्क किया । इस प्रकृया में कुछ लोग समझे भी और कुछ लोग नहीं भी समझे । 
 मैं जब तर्क करता था , तो सोचता था । मैं तो नार्मल रह कर बहस करता हुँ । मेरे शब्द चयन कोमल होते है , इस कारण इन बहस से मुझ पर शारीरिक या मानसिक किसी भी प्रकार का कोई दुश्प्रभाव नहीं पडेगा । लेकिन मेरा सोचना गलत था । बहस मुझ पर अपना प्रभाव डाल रहे थे । जिसे मैं महशुश करने लगा था । किसी बहस या तर्क मे पडते समय शुरूवात मे मुझे सीने में दिल के धडकन बडने का अनुभव होने लगा था । जिसके फलस्वरूप मेरा यह धारण टुटा की कोमल तरिके से प्रतिक्रिया देने से शारीरिक या मानसीक प्रभाव नहीं पडता । बल्कि यह भी इसपष्ट हुआ कि मैं अपना अधिकांश समय पढने में लगाता हूँ , इस कारण मेरे पास शब्द कोश अधिक है । मेरा नेचर अंतर्मुखी एवं शांत प्रकृति का है । इस कारण मेरा भाषा शैली सौम्य प्रकृति का होता हैं ।
 अतः मित्रो किसी भी प्रकार के बहस  , तर्क में हो जिससे तनाव उत्पन्न होता है तो उस से बाहर निकल जाओ । यह आपको धीरे धीरे खोखला कर देगा ।

 क्या आपको पता है कि तनाव न सिर्फ आपके मस्तिष्क बल्कि शरीर की आंतरिक प्रणाली को भी नुकसान पहुंचाता है। 'द अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन' ने मानव शरीर की आंतरिक प्रणाली पर तनाव के प्रभावों के बारे में बताया है।

नर्वस सिस्टम 

जब हम शारीरिक या मानसिक रूप से बहुत अधिक तनाव लेते हैं तो शरीर अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल इससे निपटने में करता है जिसे फाइट या फ्लाइट रिस्पांस कहते हैं। इसमें नर्वस सिस्टम एडरनल ग्लैंड को एड्रेनालिन और कॉर्टिसोल छोड़ने के निर्देश देते हैं। इन हार्मोन्स की वजह से दिल की धड़कन बढ़ जाती है, बीपी बढ़ जाता है, पाचन क्रिया प्रभावित होती है और रक्त के प्रवाह में ग्लूकोज का स्तर तेजी से बढ़ता है। 

मांसपेशियां
तनाव के दौरान मांसपेशियों में खिंचाव होता है। कई बार इसकी वजह से सिरदर्द, माइग्रेन या मांसपेशियों व हड्डियों से जुड़े परिवर्तन होते हैं।

श्वास संबंधी
तनाव की स्थिति में सांस लेने में दिक्कत भी हो सकती है। कुछ लोगों को इस वजह से कई बार पैनिक अटैक आते हैं।

हृदय पर प्रभाव
कई बार थोड़ा सा भी तनाव हार्ट रेट को बढ़ा देता है और हृदय की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं। ऐसे में हृदय द्वारा पंप किए गए रक्त को शरीर के दूसरे हिस्से में ले जाने वाली रक्त वाहिकाओं में अवरोध होता है। ऐसी स्थिति में दिल के दौरे की भी आशंका बढ़ जाती है। 

इंटोक्राइन सिस्टम
जब शरीर तनाव में होता है तो दिमाग हाइपोथैलॉमस से सिग्नल भेजता है जिससे एडरनल ग्लैंड कॉर्टिसोल बनाता है और एडरनल मॉड्यूला इपाइनरफाइन नामक तनाव के हार्मोन बनाता है। 

लिवर 
जब कॉर्टिसोल और इपाइनरफाइन निकलते हैं तो लिवर तेजी से बहुत अधिक मात्रा में ग्लूकोज बनाता है जिससे शरीर को ऊर्जा मिल सके। 

गैस्ट्रियोइंटेस्टाइनल सिस्टम 
तनाव की अवस्था का कई बार सीधा प्रभाव हमारी भूख पर भी पड़ता है। ऐसी स्थिति में हम बहुत अधिक या बहुत कम खाते हैं। कई बार अल्कोहल या तंबाकू का सेवन भी बहुत अधिक करते हैं।

पेट 
कई बार तनाव के दौरान पेट में हल्का दर्द, उमड़न आदि महसूस होता है। कई बार बहुत अधिक तनाव होने पर उल्टियां भी शुरू हो जाती हैं।

रिप्रोडक्टिव सिस्टम
पुरुषों में तनाव से टेस्टोस्टीरोन व वपीर्य का उत्पादन प्रभावित होता है। कई बार तो इससे नपुंसकता जैसी स्थिति भी आ जाती है। वहीं महिलाओं में तनाव से मेन्सुरेशन साइकिल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसमें उन्हें बहुत अधिक दर्द या अनियमितता की समस्या होती है। 

इम्यून सिस्टम 
तनाव की स्थिति में हम शरीर की ऊर्जा का एक बहुत बड़ा भाग उससे निपटने में गंवा देते हैं। ऐसे में शरीर का इन्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है।

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