लग्नाधि योग


यदि आपकी जन्मकुंडली में लग्न से 6,7,8 भाव में किसी भी तरह केवल शुभ ग्रह हो एवं पापी ग्रहों से युक्त ना या दृष्टि न हो , सूर्य से अस्त ना हो तो लग्नाधि योग होता है।
इस योग के बारे में वर्णन बृहदपराशर, सरावली फलदीपिका जातक देश मार्ग में वर्णन आया है। 
यहां एक बात विशेष रुप से ध्यान दें की सूर्य से बुध 28 डिग्री दूर रह सकता है एवं सूर्य से शुक्र 47 डिग्री दूर रह सकता है। अतः सूर्य के साथ शुभ ग्रह होने पर भी योग भंग नहीं होगा।
पापी ग्रह शनि और मंगल का हम विचार करें तो सनी को प्राप्त है 3 , 7 और 10 पूर्ण दृष्टि जबकि मंगल को प्राप्त है 4 , 7 और8 पूर्ण दृष्टि। इस स्थिति में यदि पाप ग्रह 1 ,2 और 12 भाव में हो तो भी पापी ग्रह का दृष्टि 6, 7 और 8 भाग में रहेगा ही। यदि 3 , 4 और 5 भाव में हो पापी ग्रह तो भी 6 ,7 और 8 भाव में पापी ग्रह की दृष्टि रहेगा ही। और यदि 9, 10 और 11 भाव में हो पापी ग्रह तब भी 6 , 7और 8 भाव में दृष्टि रहेगा ही ।
 अतः निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है की 6, 7 और 8 भाव में पापी ग्रहों की युति हो तो लग्नाधि योग भंग होता है। जातक परिजातक।
लग्नाधि योग में जन्म लेने वाले जातक बहुत से शास्त्र ग्रंथ लिखने वाला, विद्वान , विनीत , अधिकारी या समर्थ्यशाली , अपने कार्यों में प्रमुख पद प्राप्त करने वाला। यदि राजनीति में हो तो और इस भाव में स्थित ग्रह उच्च के हों , स्व क्षेत्रीय हो या मित्र क्षेत्रीय हो तो मंत्री पदवी प्राप्त कर लेते हैं।  ऐसे जातक निष्कपट, महान उच्च विचारों वाला,  यशस्वी,  धनी व गुणी होते हैं।इस योग में यदि यह तीनों ग्रह बुध, गुरू और शुक्र तीनों ग्रह पूर्ण रुप से बली हों तो अधियोग में उत्पन्न जातक भू-संपदा का स्वामी बनता है ।यदि यह तीनों ग्रह मध्यबली हों तो जातक मंत्री जैसा पद प्राप्त करता है । परंतु यदि शुक्र, गुरू और बुध अल्पबली हों तो व्यक्ति में नेता बनने जितना ही सामर्थ्य होता है। इस योग में जातक लक्ष्मीवान दीर्घायु और मनस्वी बन सकता है। जातक के अधिनस्थ अनेक लोग काम करते हैं तथा जातक अनेक लोगों का भरण करने में समर्थ भी होता है ।

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