सप्तम भाव में लग्नेश का फल -I
"लग्नेश यदि सप्तम भाव में हो तो वैवाहिक जीवन कष्ट पूर्ण हो जाता है।" जातक तत्व ।।।
यदि हम इस बात पर विचार करें तो पाते हैं कि मेष लग्न की कुंडली में लग्नेश मंगल लग्न एवं अष्टम भाव का स्वामी है। और यदि सप्तम भाव में बैठ जाए तो मंगली योग बनाता है। मंगल उर्जा का कारक है एवं अग्नि प्रधान ग्रह है। जिस वजह से गुस्सा बढ़ जाता है और वैवाहिक जीवन में समस्या आने लगता है।
वृषभ लग्न की जन्म कुंडली में लग्नेश शुक्र लग्न और छठे भाव का स्वामी है। मंगल की राशि में शुक्र बैठ कर काम भावना को बढ़ा देता है। साथ ही शुक्र छठे भाव का स्वामी होने के कारण कोई गुप्त रोग भी दे देता है। पति और पत्नी शत्रु वत् व्यवहार करने लग जाते हैं । जिस वजह से वैवाहिक जीवन कष्ट पूर्ण हो जाता है।
मिथुन लग्न की कुंडली में बुध लग्न और चतुर्थ भाव का स्वामी है। सप्तम भाव में गुरु की राशि में बुध के बैठने से सुखमय रहता है।
कर्क लग्न की कुंडली में लग्नेश चंद्रमा सप्तम भाव में शत्रु शनि की राशि में बैठता है। शनि और चंद्रमा एक साथ हो तो विष योग बनाते हैं। चंद्रमा एक चंचल ग्रह है। सप्तम भाव पति / पत्नी का है । अतः चंद्रमा की चंचलता के कारण वैवाहिक जीवन में कष्ट आने का संभावना रहता है।
सिंह लग्न की कुंडली में लग्नेश सूर्य सप्तम भाव में हो तो अपने प्रबल शत्रु शनि की राशि में होने के कारण साथ ही अपने अग्नि तत्व के प्रभाव को बढ़ाने के कारण वैवाहिक जीवन कष्ट मय होने लगता है।
कन्या लग्न की जन्म कुंडली में बुध लग्न एवं दशम भाव का स्वामी होता है। कन्या लग्न की कुंडली में सप्तम भाव में बुध गुरु की राशि मीन में नीच का हो जाता है। बुध एक नपुंसक गर्ल्स है ।नीच का होने के वजह से पौरूष शक्ति कहीं न कहीं कमजोर हो जाता है। और अपनी पत्नी को सैया सुख नहीं दे पाता। इस वजह से वैवाहिक जीवन धीरे-धीरे नष्ट होने लगता है।
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