पंचम भाव
पंचम भाव
जन्म कुंडली का यह भाव महत्वपूर्ण है इस भाव को त्रिकोण भी कहा जाता है। त्रिकोण से आशय है - लग्न भाव, पंचम भाव और नवम भाव। लग्न जहां हम स्वयं हैं हमारा शरीर है। जन्म कुंडली में चाहे लाखों अच्छे योग हो लेकिन हमारा लग्न और लग्नेश कमजोर हो तो हम उस अच्छे योगों का लाभ नहीं ले पाते। इसे कुछ इस तरीके से भी समझ सकते हैं मान लीजिए कोई मनुष्य स्वास्थ्य रूप से कमजोर है या यूं कहिए कि वह 60 किलो का वजन उठा सकता है परंतु यदि उस मनुष्य को 120 किलो का वजन उठाने को मिले तो वह उस भार के नीचे दब जाएगा। और अपना अहित कर लेगा। अतः लग्न और लग्नेश का मजबूत होना अत्यंत आवश्यक है। दूसरा त्रिकोण है पंचम भाव, पंचम भाव विद्या का है, हममे शारीरिक बल तो है सभी प्रकार की शारीरिक क्षमता है परंतु यदि विद्या ज्ञान के मामले में हम कमजोर हैं तो भी हम अपने कुंडली में बनने वाले अच्छे योगों का फल प्राप्त नहीं कर पाते। इसी प्रकार से नवम भाव धर्म त्रिकोण है। हमारा मान सम्मान , हमारे जीवन में बुलंदियां , हमारे द्वारा किए गए धर्मगत् आचरण पर ही निर्भर करते हैं। क्योंकि हमारा चरित्र सही नहीं है तो हमारे अंदर अहंकार की भावना जन्म ले लेगा। हम कुमार्ग का चयन कर लेंगे और अपने जीवन में जो भी नाम सम्मान प्राप्त किए हैं उसको एक दिन मिटा देंगे। इतिहास हमारे चरित्र के कारण हमें कभी माफ नहीं करेगा। तो चलिए अब लौट कर आते हैं पंचम भाव पर।
पंचम भाव से संतान का विचार किया जाता है। पंचम भाव पर पड़ने वाले शुभ अशुभ ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर होता है कि हमारा संतान कैसा होगा। हमारे संतान अपने जीवन में यश या नाम ख्याति प्राप्त करेगा हमें बुढ़ापे में सुख प्रदान करेगा। या कुमार्ग का चयन कर लेगा। इसकी प्रारंभिक जानकारी हमें पंचम भाव से प्राप्त हो जाता है। साथ ही पंचमेश और गुरु का भी देखना चाहिए।कुंडली में इन दोनों ग्रह की स्थिति कैसा है। क्योंकि पंचमेश पंचम भाव का स्वामी है और गुरु पंचम भाव का कारक। इसी कड़ी में काल पुरुष की कुंडली को देखा जाए तो पंचम भाव में सिंह राशि पड़ता है जिसका स्वामी सूर्य है। एक बार सूर्य पर भी ध्यान देना चाहिए, सूर्य हमारी आत्मा है।
पंचम भाव से हम मित्रता का भी विचार करते हैं। साथ ही मित्रता के लिए उत्तरदायि ग्रह बुध है। इन दोनों कि स्थिति जन्म कुंडली में अच्छा हो तो हमें अच्छे मित्र मिलते हैं। पंचम भाव से हम प्रेमी प्रेमिका का भी विचार करते हैं। हृदय में कोमल विचारों का जन्म चंद्रमा के कारण होता है, शुक्र प्रेम के लिए उत्तरदायी ग्रह है। अतः पंचम भाव पंचमेश चंद्रमा शुक्र शुभ ग्रह के प्रभाव में हो तो हमें अच्छे प्रेमी और प्रेमिका मिलते हैं। लेकिन यह ग्रह और भाव दूषित हो तो हमें प्रेम में धोखा मिलता है। पंचम भाव से हम ताश लॉटरी जुआ जैसे कुछ कुमार्ग का भी विचार करते हैं। साथ ही इसके लिए राहु पर भी विचार किया जाता है। राहु छल कपट धोखा षड्यंत्र का प्रतिनिधित्व करता है। अतः पंचम भाव और पंचमेश पर राहु का प्रभाव हो साथ ही और भी दूसरे पापी ग्रहों से पीड़ित हो तो जातक एक बार कुमार्ग में जरूर जाता है। पंचम भाव ही मंत्र तंत्र, अध्यात्म, मंत्र शक्ति, रहस्य जैसे गूढ़ ज्ञान की ओर ले जाता है। इसके लिए आवश्यक है कि गुरु का संबंध पंचम भाव से हो, साथ ही जन्म कुंडली का अष्टम भाव जो कि गुप्त विद्या का भाव है , इसके साथ पंचमेश और गुरु का भी संबंध हो तब जातक सात्विक गुप्त विद्याओं में जीवन में सफलता प्राप्त करता है। पंचम भाव से उच्च पद का विचार किया जाता है।
इसी भाव से मंत्री पद को भी देखा जाता है। यह तभी संभव है जब पंचम भाव का स्वामी बली हो साथ ही राजकिय ग्रह सूर्य एवं चंद्रमा जन्म कुंडली में बलि हो। अतुल धन का विचार भी हम पंचम भाव से ही करते हैं। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि धनेश के साथ पंचमेश का संबंध हो। पैतृक संपत्ति का भी विचार पंचम भाव से किया जाता है। लेकिन साथ ही इसके लिए आवश्यक है कि धनेश और अष्टमेश का संबंध पंचम और पंचमेश से हो। लेखन का भाव भी पंचम भाव ही होता है। साथ ही तृतीय भाव हमारे हाथ का है जहां हम पेन पकड़ते हैं । अतः तृतीय और तृतीयेश का संबंध जिस भाव से होता है उस भाव से संबंधित हम लेख लिखते हैं।
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