द्वादशांश कुंडली से फल विचार

द्वादशांश कुंडली से माता-पिता का सुख का विचार किया जाता है । साथ ही उनकी आयु का भी विचार किया जाता है
  यदि द्वादशांश कुंडली का स्वामी (द्वादशांशेश) जन्म लग्न मे हो, तो जातक माता-पिता के बराबर धनी-गुणी, मान-प्रतिष्ठा और द्रव्य वाला होता है। यदि द्वादशांशेश धन स्थान अर्थात द्वितीय स्थान मे हो, तो जातक पिता से अधिक धनी और गुणी होता है। यदि द्वादशांशेश तृतीय अर्थात पराक्रम स्थान मे हो, तो जातक पिता से अधिक यशस्वी होता है।
यदि द्वादशांशेश चतुर्थ अर्थात सुख स्थान मे हो, तो जातक भाग्यशाली, सुखी होता है। यदि द्वादशांशेश पंचम अर्थात विद्या संतान स्थान मे हो, तो जातक बुद्धिमान, पिता को सुख देने वाला होता है।  यदि द्वादशांशेश षष्ठ अर्थात रोग-ऋण-रिपु स्थान मे हो, जातक अधिक शत्रु वाला, अल्प लाभी होता है।
यदि द्वादशांशेश सप्तम अर्थात कलत्र स्थान मे हो, तो सुख, लाभ मिलता है। यदि द्वादशांशेश अष्टम अर्थात मारक स्थान मे हो, तो शस्त्र या शत्रु या विषैले जीव से या आत्महत्या से अपमृत्य होती है। यदि द्वादशांशेश नवम अर्थात भाग्य स्थान मे हो, तो जातक का पिता धार्मिक वृत्ति वाला, तीर्थसेवी होता है।
यदि द्वादशांशेश दशम अर्थात धर्म स्थान मे हो, तो जातक पिता से अधिक सुख-समृद्धी युक्त होता है। यदि द्वादशांशेश एकादश अर्थात लाभ स्थान मे हो, तो जातक को पिता से गुप्त धन (अघोषित) तथा आकस्मिक सट्टा लाटरी आदि से भी धन प्राप्त होता है।  यदि द्वादशांशेश (द्वादशांश का स्वामी) द्वादश अर्थात व्यय स्थान मे हो, तो वृथा धननाश, माता-पिता से सुख और लाभ हीन, दुष्टो का संग, निंदनीय होता है।

● द्वादशांश लग्नेश जन्म कुंडली मे लग्नस्थ हो, तो पिता के सरीखा धन, वैभव, मान व प्रतिष्ठा पाता है। यदि द्वादशांशेश जन्म कुंडली मे त्रिक  6, 8, 12 भाव मे हो, तो माता-पिता से सामान्य धन और सुख, जीवन सामान्य संघर्षपूर्ण होता है।    
● द्वादशांश लग्नेश जन्म कुंडली मे स्वगृही या उच्च का हो, तो जातक तथा जातक के माता-पिता भाग्यशाली होते है। द्वादशांशेश नीचस्थ या पापदृष्ट या पापयुक्त या अस्त हो, तो जातक रोगी, शत्रु, अनेक प्रकार की चिंताओ से परेशान होता है।
● द्वादशांशपति पुरुष ग्रह मित्रराशि या उच्चराशि मे होकर केंद्र या त्रिकोण मे हो, तो पिता का पूर्ण सुख मिलता है। यदि वही नीच या पापग्रह की राशि मे होकर त्रिक 6, 8, 12 भाव मे हो, तो पिता का सुख अल्प ही मिलता है या पिता कष्ट मे रहता है।
● द्वादशांशेश स्त्री ग्रह उच्चराशि या स्वराशि या मित्रराशि या शुभ ग्रह होकर केंद्र या त्रिकोण में बैठा हो, तो जातक को माता का पूर्ण सुख मिलता है। यदि वही स्त्री ग्रह पापयुक्त या पापदृष्ट होकर त्रिक स्थान मे स्थित हो, तो माता का सुख कम या नही मिलता है और माता अस्वस्थ रहती है।
● द्वादशांश मे सप्तम भाव का स्वामी या द्वादशांश लग्नेश शुभ ग्रह हो या शुभयुक्त या शुभदृष्ट या उच्चस्थ या स्वगृही हो, तो जातक की पत्नी सुशील, सुन्दर पुत्र युक्त होती है। जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी श्रेष्ठ होता है तथा पारवारिक सुख रहता है।
● द्वादशांश मे सप्तम भाव का स्वामी (सप्तमेश) या द्वादशांश लग्नेश पापग्रह हो या पापदृष्ट या पापयुक्त या नीचस्थ या अस्तगत हो, तो स्त्री से दुःख, समान्य दाम्पत्य, विचार विषमता, वैमनस्य, क्लेश होता है। (यह विचार  द्वादशांश की अपेक्षा जन्म कुंडली से करना चाहिये) 
● यदि द्वादशांश लग्न का स्वामी शुभ ग्रह हो, तो माता पिता का आचरण शुभ होता है और यदि अशुभ ग्रह हो, तो माता पिता का आचरण व्यभिचार पूर्ण होता है।

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