वर्गोत्तम
यदि हम वैदिक ज्योतिष में किसी भी विषय का विचार कर रहे हैं तो इसके लिए हम लग्न कुंडली को देखते हैं। लग्न कुंडली जो कह रहा है वही बातें यदि नवमांश कुंडली से भी फलित हो रहा हो तो वह घटना होने के पूर्ण संभावना होता है। किसी भी कुंडली में कितने भी अच्छे राजयोग क्यों ना हो यदि लग्न बली नहीं है तो उसके फल हमें प्राप्त नहीं हो पाते हैं । या फिर मिलते भी है तो उसे मात्रा में नहीं मिलते जितना अच्छा मिलना चाहिए।
इसी कारण से लग्न के बलाबल को भी देखने के लिए वर्गोत्तम नवमांश है कि नहीं इसका विचार जरूर करना चाहिए। वैसे तो इसके लिए और भी कई चीजों को देखा जाता है लेकिन आज हम वर्गोत्तम लग्न पर विचार कर रहे हैं।
लग्न कुंडली में प्रत्येक भाव का विस्तार क्षेत्र 30 डिग्री का होता है। और इस 30 डिग्री को हम 9 हिस्से में बांटते हैं। तो 3 डिग्री 20 कला प्राप्त है। ज्योतिष शास्त्र में लग्न से जहां हम स्वयं का विचार करते हैं वहीं पर नवम भाव से हम अपने भाग्य का भी विचार करते हैं। जब हम किसी भी भाव को 9 भाग में डिवाइड करते हैं तो हम उस भाव के भाग्य का ही विचार करते हैं।
इसी को कुछ इस तरीके से हम और भी समझ सकते हैं। जैसे की मान ले कोई ग्रह लग्न कुंडली में उच्च राशि में है परंतु नवमांश कुंडली में वही नीच का है। तो वह ग्रह सामान्य फल देता है या फिर सामान्य से भी कम शुभ फल देता है।
इसी प्रकार से मान लीजिए कोई ग्रह लग्न कुंडली में नीच का है लेकिन नवमांश कुंडली में उच्च का है तो बहुत ही अच्छा शुभ फल देता है।
जब हमारा भाग्य साथ देता है तब हम 75% मेहनत करके भी 100% रिजल्ट प्राप्त कर लेते हैं।
लेकिन हमारा भाग्य साथ ना दे तो हंड्रेड परसेंट मेहनत करके भी हम 50% रिजल्ट प्राप्त कर पाने में समर्थ नहीं हो पाते हैं।
अतः नवमांश कुंडली में वर्गोत्तम लग्न होने पर हमारे भाग्य के शुभ फलों में वृद्धि कर देते हैं।
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