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Showing posts from April, 2024

वायव्य कोण

वायुव्य कोण का स्वामी ग्रह चंद्रमा होता है जबकि इस दिशा का देव वायु देव है। इस दिशा से हम सहयोग यात्रा अन्न का भडारण कुछ सुधार के सात रसोई घर बना सकते हैं। 1- यदि आपके घर का वायव्य कटा हुआ है, तो यह वायु तत्व की कमी का कारण बनता है। इसके फलस्वरूप सिरदर्द, चक्कर आना व एनर्जी की कमी जैसी समस्याओं से आपको दो-चार होना पड़ सकता है। 2- वायव्य का दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व दिशा से ऊंचा होना भी वायु तत्व में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न कर देता है। इससे व्यक्ति अपना अधिकांश वक्त व्यर्थ की और अनावश्यक बातों को सोचने में खर्च कर देता है। 3- विदेश जाने के इच्छुक लोगों के लिए वायव्य दिशा बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिशा का वास्तु सम्मत होना और इस स्थान पर स्थित बेडरूम में सोना व्यक्ति को अपने पैतृक स्थान से दूर जाने में सहायक होता है। 4, वायव्य कोण में पति-पत्नी का बेडरूम नहीं होना चाहिए। 5, वायु को में पैसा से संबंधित अलमारी या फिर तिजोरी नहीं होना चाहिए। 6, वायव्य कोण में बैठक रूम अच्छा रहता है। 7, वायव्य कोण में अंडर ग्राउंड पानी की टंकी नहीं बनना चाहिए यदि बनाते हैं तो आप मुकदमे या कोर्ट कचहरी के मा...

भावों से रोग विचार

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बच्चों को संस्कारित कब करें

बच्चों को कुछ सीखना हो, पढ़ाना हो, संस्कारित करना हो यह सब कार्य जब मा गर्भधारण करती है तब से ही प्रारंभ हो जाता है। बल्कि भारतीय धर्म ग्रंथो की बात करें तो संस्कारी और प्रतिभावान बच्चों को जन्म देना है तो बच्चे के गर्भधारण करने से 6 महीने पहले ही इसकी तैयारी करना होता है। गर्भावस्था के समय माता को हमेशा खुश रखने का प्रयास करना चाहिए और उसे अच्छे-अच्छे साहित्यों को अध्ययन करना चाहिए। साथ ही परिवार में हंसी-खुशी का माहौल होना चाहिए। क्योंकि यह वह समय होता है, जब बच्चा माता के गर्भ में ही माता के व्यवहारों , उसके मन में पढ़ने वाले विचारों के माध्यम से शिक्षा एवं संस्कार को ग्रहण करते रहता है।   प्रत्येक माता-पिता चाहता है कि उसका बच्चा बुढ़ापे का सहारा बने। उसका नाम रोशन करें। समाज और देश में ख्याति अर्जित करें। लेकिन यह सब कुछ तभी होगा , जब हम बच्चों को बचपन से ही संस्कारवान बनाएंगे। संस्कारवान बनाना माता और पिता के हाथों में होता है। क्योंकि माता-पिता बच्चों के आइडियल होते हैं। माता को तो प्रथम गुरु भी कहा गया है। इस कारण से माता के व्यवहार का बच्चों के व्यक्तित्व पर बहुत गहरा...

आकर्षण

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काल पुरुष की कुंडली में शनि के प्रभाव

काल पुरुष की कुंडली में शनि छठे भाव, अष्टम भाव, दशम भाव एवं द्वादश भाव का कारक होता है। काल पुरुष के कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में पुष्य नक्षत्र का स्वामी होता है। शनि अष्टम भाव में अनुराधा नक्षत्र का स्वामी होता है। शनि द्वादश भाव में शतभिषा नक्षत्र का स्वामी होता है। शनि को कर्म का कारक ग्रह माना जाता है। शनि देव जातक को कर्मठ एवं न्यायप्रिय बनाते हैं। शनि देव वैराग्य भी देता है। शनि देव धैर्यवान बनता है। शनि देव केंद्र में स्वग्रही उच्च के हो तो शश योग नामक राजयोग भी बनता है। जब शनि देव काल पुरुष की कुंडली में अपने ही नक्षत्र में हो तो 4,8, 12 भाव के फल देते हैं। साथ ही अपने कारक भाव 6 , 8,  10, 12 भाव के भी फल देते हैं। चतुर्थ भाव से हम समस्त सुख को देखते हैं। जब शनि देव चतुर्थ भाव में स्थित हो और शुभ ग्रह से प्रभावित हो तो भूमि, भवन, वाहन के सुख प्रदान करते हैं। यदि हम छठे भाव के सकारात्मक पक्ष को देख तो छठा भाव प्रतियोगिता का है। छठा भाव नौकरी का भी है ।और प्रतियोगिता में वही सफल होता है जो धैर्य पूर्वक अपने कर्म में लगा हो।  अष्टम भाव के हम सकारात्मक पक्ष को देखें तो आय...