बच्चों को संस्कारित कब करें
बच्चों को कुछ सीखना हो, पढ़ाना हो, संस्कारित करना हो यह सब कार्य जब मा गर्भधारण करती है तब से ही प्रारंभ हो जाता है। बल्कि भारतीय धर्म ग्रंथो की बात करें तो संस्कारी और प्रतिभावान बच्चों को जन्म देना है तो बच्चे के गर्भधारण करने से 6 महीने पहले ही इसकी तैयारी करना होता है। गर्भावस्था के समय माता को हमेशा खुश रखने का प्रयास करना चाहिए और उसे अच्छे-अच्छे साहित्यों को अध्ययन करना चाहिए। साथ ही परिवार में हंसी-खुशी का माहौल होना चाहिए। क्योंकि यह वह समय होता है, जब बच्चा माता के गर्भ में ही माता के व्यवहारों , उसके मन में पढ़ने वाले विचारों के माध्यम से शिक्षा एवं संस्कार को ग्रहण करते रहता है।
प्रत्येक माता-पिता चाहता है कि उसका बच्चा बुढ़ापे का सहारा बने। उसका नाम रोशन करें। समाज और देश में ख्याति अर्जित करें। लेकिन यह सब कुछ तभी होगा , जब हम बच्चों को बचपन से ही संस्कारवान बनाएंगे। संस्कारवान बनाना माता और पिता के हाथों में होता है। क्योंकि माता-पिता बच्चों के आइडियल होते हैं। माता को तो प्रथम गुरु भी कहा गया है। इस कारण से माता के व्यवहार का बच्चों के व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जिस संतान का माता धार्मिक , संस्कारित होती है उसका बच्चा उतना ही ज्यादा प्रतिभावान होता है। जैसे की माता अमरौतिन संस्कारित महिला थी। एक धार्मिक महिला थी। साधु संतों की सेवा करती थी। वैसे ही माता सफूरा ने भी गुरु अमरदास और गुरु बालक दास को बचपन से ही संस्कारित किया जिसके कारण उनके बच्चे अपने जीवन में विशिष्ट कार्य कर पाए।
यदि आप भी अपने बच्चों को संस्कारवान बनाना चाहते हैं। ताकि अपने जीवन में हर किसी से प्रेम और मोहब्बत प्राप्त कर सके अपने जीवन में दिन प्रतिदिन सफलता की सीढ़ी चढ़ सके ।
तो बच्चों को निम्न संस्कार बाल्यकाल से ही से ही देना प्रारंभ कर दें।
1,अपने बच्चे की योग्यता, प्रतिभा और क्षमता में विश्वास व्यक्त करें। उसे अपने स्तर पर सोचने, समझने और काम करने का अवसर दें।
2, उसके अच्छे कार्यों, व्यवहारों, उपलब्धियां , प्रयासों की प्रशंसा करें, ताकि उसमें काम करने की ललक, इच्छा और उत्साह हमेशा बना रहे।
3, उसके किसी अज्ञानता का मजाक ना उड़ाएं, बल्कि उससे संबंधित अन्य बातों की जानकारी दें, ताकि उसके चिंतन को सफलता का खुला आकाश मिले।
4, बच्चों को जोर-जोर से पढ़ने और बोल बोलकर सुंदर लिखने के लिए प्रेरित करें।
5, तनाव से घिरे बच्चों के साथ सहानुभूति से पेश आए और उन्हें सांत्वना दें।
6, बच्चों के साथ कभी भी संवाद हीनता की स्थिति न उत्पन्न होने दें। जिस प्रकार सड़ा हुआ पानी सड़ जाता है, ठीक उसी प्रकार बच्चों और अभिभावकों के बीच संवाद हीनता का व्यवहार बच्चों के मानसिकता और सोच को पंगु कर देता है। मां-बाप और बच्चों में सरसता जुड़ाव के सारे स्रोत को बंद कर देता है।
7, बच्चों पर अनुशासन थोपने के बजाय उन्हें स्वयं अनुशासन स्वीकारने के लिए प्रेरित करें।
8, बच्चों को भूलकर कभी भी
"कान खोल कर सुन ले"
" चुल्लू भर पानी में डूब मर"
" दफा हो जा नजरों के सामने से"
" दूसरों बच्चों के साथ तुलना करना"
जैसी चेतावनी और कर्कश बातें बच्चों से भूलकर भी ना करें।
इससे उनके कोमल मन में विपरीत प्रभाव पड़ता है। लगातार जब वह ऐसी ही बातें सुनते हैं, तो उनके अवचेतन मन ऐसे ही रूप में रिएक्ट करने लग जाता है। जिस बात के लिए मना करेंगे इस बात को करने के लिए प्रेरित हो जाता है। क्योंकि बच्चा बचपन में माता-पिता का अधिक सामिप्य पाना चाहता है, इस कारण से कुछ नटखट क्रियाकलाप भी करता है , ताकि माता-पिता का ध्यान उसकी और चला जाए और वह अपने माता-पिता के सानिध्य और उसका प्रेम प्राप्त सके।
अतः उसके नटखट अंदाज को नजर अंदाज करें और उसे प्रेम से समझाएं। लेकिन यदि उसका नटखट पन कम होने के बजाय बढ़ता ही चला जाए तो थोड़ा सख्त होकर अनुशासन भी सिखाए। प्यार और अनुशासन के मेल से ही बच्चों का मस्तिष्क सही रूप से विकसित हो पाता है। जिससे कि बच्चा संस्कारवान बनता है और अपने जीवन में प्रगति करता है।
✍️ Raajeshwar Adiley
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