दशमांश कुंडली का महत्व
महर्षि पराशर जी ने राशि को 10 भागों में बांटा जिसके आधार पर राशि के दसवें हिस्से को दशमांश कुंडली का नाम दिया। इस प्रकार 1 अंश का मान 3 हुआ । विषम राशि में उसी राशि से तथा सम राशि में नववी राशि से दशमांश गणना करने का विधान बनाया। पूर्वादि दस दिशाओं-विदिशाओं के 10 देवता क्रम से होते हैं, जिनके नाम पर प्रत्येक अंश का नामकरण किया गया। जिनके नाम निम्न है इंद्र, अग्नि, यम, राक्षस, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान , ब्रह्मा, अनंत। विषम राशियों में क्रम से तथा सम राशियों में विपरीत क्रम अनुसार अधिपति होते हैं। दशमांश कुण्डली को D - 10 कुण्डली भी कहा जाता है। दशमांश कुण्डली का उपयोग व्यवसाय मे उन्नति , प्रतिष्ठा, सम्मान और आजीविका में बढोत्तरी, समाज में सफलता प्राप्त करने इत्यादि को देखने के लिए किया जाता है। दशमांश कुण्डली की विवेचना भी उतनी ही आवश्यक हो जाती है, जैसे लग्न या नवांश कुण्डली का महत्त्व है । इस कुण्डलि में दशम भाव दशमेश का सर्वाधिक महत्व है। पहला दशमांश (इंद्र दश्मांश) पहला दशमांश 0 से 3 डिग्री का होता है यह इंद्र दशमांश कहलाता है। यह धन संपन्नता, मान सम्मान का सूचक होता है। ज...
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