दोस्ती का संस्कार


माता-पिता जो हमें संस्कार देते हैं। वह संस्कार माहौल से बहुत ज्यादा प्रभावित होता है। पहले माहौल हमें अपने घर परिवार में मिलता है। दूसरा माहौल हमारे आस-पड़ोस के बच्चों से दोस्ती करने के बाद मिलता है। और फिर जब हम स्कूल जाते हैं, कॉलेज जाते हैं, कार्य स्थल पर काम करते हैं, किसी खेल में भाग लेते हैं तो हमारे वहां मित्र बनते हैं।  हम जिस समाज में रहते हैं वहां के लोगों से हमारा उठना बैठना होता है और वहां भी मित्र बनते हैं। यह मित्र हमारे संस्कार को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं। क्योंकि प्रत्येक मित्र के अपने खुद के संस्कार होते हैं, जिसे वह लेकर हमसे मिलता है और जब हम दोस्ती करते हैं। तब हम दोनों के संस्कार एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। जिसका आत्मविश्वास एवं मनोबल कमजोर होता है, वह दूसरे के प्रभाव में आ जाता है। अगर इसे चाइल्ड साइकोलॉजी की दृष्टिकोण से देखें तो,  एक बच्चे के विकास में तीन स्तर होता है एक्टिव बच्चा, मंद गति से विकसित बच्चा और हाइपर एक्टिव बच्चा। जो सामान्य रूप से इक्टिव बच्चा होता है। ऐसे बच्चों के संस्कार स्थिर होते हैं। इनके अंदर दृढ़ आत्मविश्वास होता है । इनका मनोबल ऊंचा होता है। यह दूसरों के सकारात्मक गुणों को तो अपना लेते हैं। परंतु नकारात्मक अवगुण को यह नहीं अपनाते। बाकी दो स्तर के बच्चे हैं। इनके माहौल से संपर्क होने पर बिगड़ने के बहुत ज्यादा चांस होते हैं।
 मित्रता ही एक ऐसा संबंध है जिसे हम खुद चुनाव करते हैं। इसका रिश्तेदारी से कोई संबंध नहीं है, रक्त से कोई संबंध नहीं, समाज से कोई संबंध नहीं, देश से कोई संबंध नहीं , यह भी मैटर नहीं करता कि वह दोस्त लड़की है कि लड़का। भले समाज इसे कुछ नाम दे दे,  इससे उनकी दोस्ती पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। ‌ क्योंकि दिल के साफ होते हैं और यह दोस्ती का संबंध हमारे दिल के तारों से जुड़ा होता है। जिससे हमारे दिल के तार मिल गए उससे हमारी दोस्ती हो जाता है। और यह दोस्ती ऐसा होता है कि हम उससे नियमित मिले या नियमित न मिले फिर भी हमारी दोस्ती सालों साल बना रहता है। दोस्त हमारे व्यक्तित्व को बनाते भी हैं और बिगाड़ते भी हैं।
 इसलिए राजेश्वर आदिले का कथन है कि
"दोस्त एक ऐसा हो जीवन में जो दोस्त हो, जिसके सामने हम अपने दिल की हर बात बोल सके। हमें यह चिंता करने की आवश्यकता ना हो कि वह हमारे बातों का गलत अर्थ निकाल लें। बल्कि वह हमें समझे और यदि हम कभी गलत मार्ग में चल पड़े तो हाथ पकड़ कर उस दलदल से हमें बाहर खींच लाए।"

इसी को दूसरे शब्दों में कहें तो

"दोस्त, दोस्त हो ना कि दोष हो।"

इसी पर स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं।
सच्चा मित्र वह व्यक्ति होता है जो हमें ईश्वर के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है, हमें सभी बुराइयों और प्रलोभनों से बचाता है, हमारी ओर से ईश्वर से प्रार्थना करता है और हमारे आध्यात्मिक कल्याण के लिए प्रार्थना करता है।

दूसरी ओर, जिस मित्र की संगति हमें ईश्वर को भूला देती है और हमारे मध्य सांसारिक प्रवृत्तियों को जागृत कर देती है, उसे कभी भी सच्चा मित्र नहीं कहा जा सकता, चाहे वह कितना भी सुखद या मनभावन क्यों न हो।

ऐसे मित्र की संगति से बढ़कर आत्मा के लिए विनाशकारी शायद ही कुछ हो।

ऐसे बुरे मित्रों की संगति से ही सभी देशों और सभी युगों में मनुष्य का पतन होता है।
 अतः जब माता-पिता अपने बच्चों को संस्कार दे रहे हो तो अपने बच्चों में इतनी काबिलियत अवश्य पैदा करें कि वह सही और गलत इंसान चुनने की शक्ति उसमें जागृत हो जाए। और बच्चा जब माहौल के संपर्क में आए तो अपने लिए एक सच्चे मित्र का चुनाव कर सके।
यह सिर्फ संस्कार से ही संभव है।
जब आप अपने बच्चों को सही मित्र चयन करने की कला सिखाते हैं तो आपको कुछ कार्य करना पड़ता है जैसे की
1, अपने बच्चों के मददगार के रूप में काम करें।
2, सही नजरिया उपलब्ध कराएं।
3, भूल कर भी अपने बच्चों पर खुद को थोपे नहीं।
4, बच्चों को ट्रेड स्थापित करने वाला नहीं, तो ट्रेड पर चलने वाला ही बने दे।
5, अपने बच्चों का योग्यता बढ़ाएं ताकि वह नए नए दोस्त बन सके।
6, अपने पारिवारिक परंपराएं की संस्कार बच्चों को अवश्य दें। यह संस्कार बच्चों को अपने जड़ से जोड़कर रखता है।
7, बच्चों के सामने दोस्ती के अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करें। उन्हें ऐसी कहानी सुनाएं जिसमें दोस्ती की मिसाल हो।
8, बच्चों के साथ कभी भी जोर जबरदस्ती ना करें।
9, समय के साथ हर माता-पिता को अपने बच्चों के साथ दोस्ती का रिश्ता बनाएं।
 निम्न सुझावों पर भी कार्य करें।
1, अपने बच्चों और उनके दोस्तों पर अनावश्यक और गैर लाजमी पाबंदी ना थोपें।
2, अपने बच्चों के दोस्तों की पसंद और नापसंद को जानने की कोशिश करें उनकी पसंद इच्छाओं और उत्कंठाओं में आपकी दिलचस्पी और उनसे आपका मेल जो आपको उनका विश्वास और सम्मान जीतने देगी।
3, अपने बच्चे और उसके दोस्तों के उपलब्धियां पर उनकी तारीफ करना याद रखें।
4, बच्चों को यह सिखाया जाता है कि वह जब भी बाहर जाए तो अभिभावकों को यह सूचित करके जाए कि वह कहां जा रहे हैं और कब तक वापस लौटेंगे। एक बात यह आदत पड़ जाए तो ढेर सारे भ्रमों, चिताओं और विवादों से बचा जा सकता है।
5, अगर आपका किशोर बेटा या बेटी रात को देर से घर लौटने लगे,  सुबह देर से जागे, ठीक से खाना ना खाए, और ज्यादा बहस करने लगे तो इस व्यवहार को गंभीरता से लें क्योंकि यह अपराधी प्रवृत्ति के बच्चों की संगत या मादक पदार्थों की लत का संकेत है। स्थिति का विश्लेषण करने और निर्णय लेने के लिए बच्चों के शिक्षकों और दोस्तों की सहायता लें।
6, बच्चों को कभी भी उनके दोस्तों के सामने भला बुरा ना कहें। इससे बच्चों के आत्म सम्मान को ठेस पहुंचता है। जिसके कारण विद्रोही हो जाते हैं।
7, अपने बच्चों के साथ खुले दिल से बात करें , अगर आप सही जानकारी नहीं देंगे तो वह गलत जानकारी पा लेंगे।

यदि आपको यह लेख अच्छा लगता है तो इसे प्रचारित करें। ताकि प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को सही तरीके से परवरिश कर सके। जब प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों का सही तरीका से परवरिश करेंगे। तो माहौल स्वतः ही सुधारने लग जाएगा। यह याद रखें कि सिर्फ किसी एक व्यक्ति के अपने बच्चों को सही संस्कार दे देने से बच्चों के सर्वांगीण जीवन में अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन हमारे आसपास के माहौल भी संस्कार युक्त होंगे तो निश्चित ही बच्चा अपने जीवन में कभी भी असंस्कारीत व्यवहार नहीं करेगा।
 जिसके कारण किसी भी माता-पिता को बच्चे के कुमार्ग में जाने की गलत लोगों से दोस्ती होने की डर नहीं सताएगा।
☎️9111963992
ज्योतिष एवं महावास्तु सलाहकार
विचारक, मोटीवेटर, शायर, लेखक
✍️ Raajeshwar Adiley
7:49am
6/5/24

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