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नशा छन करिहा संतो

गुरु घासीदास बाबा जी की अमर वाणी  "नशा छन  करिहा  संतो।"   वैसे तो मैं कभी भी आलोचनात्मक लेख लिखने के पक्ष में नहीं होता हूं।  लेकिन आज बाबा गुरु घासीदास जी के अमर वाणी में से एक वाणी के ऊपर लिख रहा हूं। बाबाजी ने भी आलोचनात्मक वाणी का प्रयोग नहीं किया। बल्कि वे समाज को एक संदेश दिए की संत समाज को किन-किन चीजों से बचकर रहना चाहिए।   वर्तमान स्थिति में देख तो समाज में नशा का चलन बहुत ज्यादा बढ़ गया है। कुछ लोग तो ऐसे हैं कि जिनके सुबह ही मूंह धोने के स्थान पर शराब से कुल्ला करना पसंद करते हैं। ऐसे लोग बहुत ज्यादा शराब के नशे में डूब गए होते हैं।  एक बहुत बड़ी आबादी समाज में ऐसे लोगों की है। जो कम से कम प्रति दिन एक पव्वा तो शराब जरूर पीते हैं। ऐसे लोगों से पूछो कि यार तुम रोज पीते हो रोज इतने पैसे कहां से ले आते हो। तब वे कहते हैं की सब जुगाड़ हो जाता है।   और पूछो यार तब तो तुम्हारी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होगी। तब जवाब यही मिलता है , कहां यार पैसे की बहुत तंगी है। तब उनसे कहो कि भाई इतना शराब क्यों पीते हो कुछ पैसे बच जाते यदि नहीं पीत...

manifestation परा मनोविज्ञान से प्रमाणित

Manifestation' यह शब्द आज के समय में इंटरनेट पर काफी प्रचलित है। इस शब्द से संबंधित इंटरनेट पर आपको हजारों वीडियो, म्यूजिक, फोटो और यहां तक की पॉडकास्ट भी मौजूद मिल जाएंगे। Manifestation का मतलब है अपने सपनों की कल्पना करना और जो आप चाहते हैं उसे बार-बार दोहराना। साथ ही अच्छे और पॉजिटिव वाक्य बोलना। Optimism: क्योंकि विज़ुअलाइज़ेशन अभिव्यक्ति पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करती है कि आप कहां होना चाहते हैं, वे भविष्य के बारे में अधिक आशावादी बनने का एक शानदार तरीका हैं। Confidence: अभिव्यक्ति करते समय आप affirmations का इस्तेमाल करते हैं यानि आप खुद के बारे में पॉजिटिव बोलते व सोचते हैं जिसके कारण आपके अंदर विश्वास जागता है। Less Stress: Manifesting और  Law of Attraction आपका आत्मविश्वास बढ़ाती है जिससे आपको स्ट्रेस कम होता है। Increased Gratitude: हार्वर्ड हेल्थ के एक लेख के अनुसार, कृतज्ञता लोगों को अधिक सकारात्मक भावनाओं को महसूस करने, अच्छे अनुभवों का आनंद लेने, उनके स्वास्थ्य में सुधार करने और मजबूत भावनाओं का निर्माण करने में मदद कर सकती है।  प्राचीन काल से ही भारत में मंत्...

दोस्ती का संस्कार

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माता-पिता जो हमें संस्कार देते हैं। वह संस्कार माहौल से बहुत ज्यादा प्रभावित होता है। पहले माहौल हमें अपने घर परिवार में मिलता है। दूसरा माहौल हमारे आस-पड़ोस के बच्चों से दोस्ती करने के बाद मिलता है। और फिर जब हम स्कूल जाते हैं, कॉलेज जाते हैं, कार्य स्थल पर काम करते हैं, किसी खेल में भाग लेते हैं तो हमारे वहां मित्र बनते हैं।  हम जिस समाज में रहते हैं वहां के लोगों से हमारा उठना बैठना होता है और वहां भी मित्र बनते हैं। यह मित्र हमारे संस्कार को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं। क्योंकि प्रत्येक मित्र के अपने खुद के संस्कार होते हैं, जिसे वह लेकर हमसे मिलता है और जब हम दोस्ती करते हैं। तब हम दोनों के संस्कार एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। जिसका आत्मविश्वास एवं मनोबल कमजोर होता है, वह दूसरे के प्रभाव में आ जाता है। अगर इसे चाइल्ड साइकोलॉजी की दृष्टिकोण से देखें तो,  एक बच्चे के विकास में तीन स्तर होता है एक्टिव बच्चा, मंद गति से विकसित बच्चा और हाइपर एक्टिव बच्चा। जो सामान्य रूप से इक्टिव बच्चा होता है। ऐसे बच्चों के संस्कार स्थिर होते हैं। इनके अंदर दृढ़ आत्मविश्वास ह...

वायव्य कोण

वायुव्य कोण का स्वामी ग्रह चंद्रमा होता है जबकि इस दिशा का देव वायु देव है। इस दिशा से हम सहयोग यात्रा अन्न का भडारण कुछ सुधार के सात रसोई घर बना सकते हैं। 1- यदि आपके घर का वायव्य कटा हुआ है, तो यह वायु तत्व की कमी का कारण बनता है। इसके फलस्वरूप सिरदर्द, चक्कर आना व एनर्जी की कमी जैसी समस्याओं से आपको दो-चार होना पड़ सकता है। 2- वायव्य का दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व दिशा से ऊंचा होना भी वायु तत्व में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न कर देता है। इससे व्यक्ति अपना अधिकांश वक्त व्यर्थ की और अनावश्यक बातों को सोचने में खर्च कर देता है। 3- विदेश जाने के इच्छुक लोगों के लिए वायव्य दिशा बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिशा का वास्तु सम्मत होना और इस स्थान पर स्थित बेडरूम में सोना व्यक्ति को अपने पैतृक स्थान से दूर जाने में सहायक होता है। 4, वायव्य कोण में पति-पत्नी का बेडरूम नहीं होना चाहिए। 5, वायु को में पैसा से संबंधित अलमारी या फिर तिजोरी नहीं होना चाहिए। 6, वायव्य कोण में बैठक रूम अच्छा रहता है। 7, वायव्य कोण में अंडर ग्राउंड पानी की टंकी नहीं बनना चाहिए यदि बनाते हैं तो आप मुकदमे या कोर्ट कचहरी के मा...

भावों से रोग विचार

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बच्चों को संस्कारित कब करें

बच्चों को कुछ सीखना हो, पढ़ाना हो, संस्कारित करना हो यह सब कार्य जब मा गर्भधारण करती है तब से ही प्रारंभ हो जाता है। बल्कि भारतीय धर्म ग्रंथो की बात करें तो संस्कारी और प्रतिभावान बच्चों को जन्म देना है तो बच्चे के गर्भधारण करने से 6 महीने पहले ही इसकी तैयारी करना होता है। गर्भावस्था के समय माता को हमेशा खुश रखने का प्रयास करना चाहिए और उसे अच्छे-अच्छे साहित्यों को अध्ययन करना चाहिए। साथ ही परिवार में हंसी-खुशी का माहौल होना चाहिए। क्योंकि यह वह समय होता है, जब बच्चा माता के गर्भ में ही माता के व्यवहारों , उसके मन में पढ़ने वाले विचारों के माध्यम से शिक्षा एवं संस्कार को ग्रहण करते रहता है।   प्रत्येक माता-पिता चाहता है कि उसका बच्चा बुढ़ापे का सहारा बने। उसका नाम रोशन करें। समाज और देश में ख्याति अर्जित करें। लेकिन यह सब कुछ तभी होगा , जब हम बच्चों को बचपन से ही संस्कारवान बनाएंगे। संस्कारवान बनाना माता और पिता के हाथों में होता है। क्योंकि माता-पिता बच्चों के आइडियल होते हैं। माता को तो प्रथम गुरु भी कहा गया है। इस कारण से माता के व्यवहार का बच्चों के व्यक्तित्व पर बहुत गहरा...

आकर्षण

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