दांत के रोग


ज्योतिष से भी दांत सम्बन्धी कष्ट को जाना जा सकता है। जन्म कुंडली के प्रथम भाव, द्वितीय भाव, सप्तम भाव मेष राशि, वृषभ राशि और तुला राशि दांत को प्रभावित करते हैं। यदि यह भाव राशि और भावेश पाप प्रभाव में हो 6 8 12 में हो और पापी ग्रह से पीड़ित हो तो दांत के रोग होते हैं। यहां दांत सम्बन्धी कुछ योग दे रहे हैं जिससे आप यह ज्ञात कर सकते हैं कि जातक को दंत रोग होगा या नहीं होगा तो कब। 
1. शनि-राहु दांतों में दर्द और रोग उत्पन्न करते हैं। दांतों की तीन मुख्य परतों में पहली और दूसरी परत, अर्थात दंत वल्क और दंत धातु पर सूर्य का प्रभाव रहता है। तीसरी परत पर चंद्र और मंगल का प्रभाव रहता है। 
 2. जब सूर्य, चंद्र, मंगल शनि-राहु से पीड़ित होते हैं तो दंत रोग  होता है। 
3. द्वितीय भाव मुख का है और यदि द्वितीय भाव भी शनि-राहु से युत या  दृष्ट है तो दंत रोग या दांतों की सुंदरता पर प्रभाव पड़ता है। 
4. लग्न और लग्नेश यदि शनि-राहु से युत या दृष्ट है तो दंत रोग हो सकते हैं। 
5. द्वितीयेश षष्ठेश के साथ युत होकर अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो दंत रोग होते हैं।          
 6. केतु द्वितीय स्थान पर हो, तो दांत ऊंचे होते हैं, अर्थात्‌ दांत लंबे तथा बाहर की ओर होते हैं। 
7. सप्तम भाव में अशुभ ग्रह हों और शुभ ग्रह की दृष्टि न पड़े तो जातक दांतों के किसी न किसी रोग से पीड़ित होता है। 
8. राहु लग्न में, या पंचम में हो, तो दंत रोग होते हैं। 
9. मेष या वृष राशि लग्न या द्वितीय भाव से संबंध बनाए और अशुभ ग्रह से युत या दृष्ट हो तो दंत संबंधी रोग होते हैं। 
द्वादश लग्न और दांतों के रोग  
द्वादश लग्नानुसार दंत विचार इस प्रकार है। मेष लग्न हो और राहु और बुध द्वितीय भाव में, सूर्य-शनि लग्न में हों और लग्नेश त्रिाक भावों में हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। वृष लग्न हो और चन्द्र और केतु द्वितीय भाव में, गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में, शनि आठवें, लग्नेश एकादश या द्वादश भाव में हों दांत संबंधी रोग होते हैं। मिथुन लग्न हो और सूर्य-राहु की युति पंचम भाव में, मंगल एकादश, लग्नेश षष्ठ भाव में हो तो दंत विकार जातक को होते हैं। कर्क लग्न हो और राहु षष्ठ भाव में, लग्नेश एकादश भाव में, सूर्य-शनि की युति पंचम भाव में हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं।  सिंह लग्न हो और राहु या केतु लग्न में हों, सूर्य त्रिाक भाव में शनि से युत या दृष्ट हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। कन्या लग्न हो और द्वितीयेश मीन राशि में शनि से युत हो, लग्न पर मंगल की दृष्टि हो, लग्नेश केतु से युत या दृष्ट हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। तुला लग्न हो और लग्नेश आठवें हो, शनि द्वितीय हो, सूर्य केतु से युत सा दृष्ट हो, गुरु लग्न व लग्नेश पर दृष्टि डाले तो दंत रोग होते हैं। वृश्चिक लग्न हो और मंगल व शनि षष्ठ भाव में, बुध लग्न में और सूर्य द्वादश भाव में हो, राहु अष्टम भाव में हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। धनु लग्न हो और लग्नेश षष्ठेश के साथ द्वितीय भाव में शनि से दृष्ट हो, राहु लग्न में हो तो जातक दंत रोग से पीड़ित होता है। मकर लग्न हो और शनि पंचम भाव में, सूर्य-केतु की युति द्वितीय भाव में, चन्द्र सप्तम भाव में हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। कुम्भ लग्न हो और शानि अष्टम भाव में, गुरु षष्ठ भाव में, द्वितीय भाव व द्वितीयेश राहु या केतु से दृष्ट हो तो जातक दांत संबंधी रोग होते हैं। मीन लग्न हो और शुक्र द्वितीय भाव में, सूर्य-चन्द्र लग्न में राहु से दृष्ट या युत हों, शनि पंचम या अष्टम भाव में हो तो जातक को दांत संबंधी रोग होते हैं।
दांतों के रोग कब होते हैं ?  
पूर्व चर्चा से यह ज्ञात हो गया होगा कि दंत रोग क्यों और किस कारण होते हैं। दंत रोग के पार्श्व में ग्रहों की अपनी भूमिका होती है।  दंत रोग उत्पन्न करने वाले कारक ग्रहों को चयन करे लें, जब-जब ये इन ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर दशा आएगी दांतों में पीड़ा होगी। दंत का रोग देने वाले योग कारक ग्रह जब-जब गोचर में निर्बल होते हैं दंत संबंधी पीड़ा या कष्ट झेलना पड़ता है।
 उपाय
1, दांतों मैंं सनसनाहट, दर्द, की केवीटी पायरिया जैसे रोग से आप पीड़िित हो तो आधा गिलास गर्मम पानी ले ले और उसमें आधा चम्ममच सेंधा नमक मिला दे। अब रात को सोते समय इस सेंधा नमक मिले हुए गर्म पानी से कुल्ला करें। इससे आपको सुबह फर्क दो-चार दिन में दिखाई देने लग जाएगा।

2, पद्मासन में बैठकर हथेली को फैलाने हाथ के खुले हुए भाग को आसमान की ओर रखें, मध्यमा और अनामिका उंगली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिला दे और रीड की हड्डी सीधी रखें । इस आसन में आपको 15 मिनट रहना है।
3, पद्मासन सुखासन या वज्रासन में बैठ जाए हाथ को फैलाकर घुटने में रखने हथेली को आकाश की ओर रखें तर्जनी और मध्यमा उंगली के अग्रभाग को अंगूठे की जड़ से मिला दे शेष उंगली को आपस में मिलाकर सीधी रखें। इस आसन को प्रतिदिन 15 मिनट करें।
 4, लग्न को मजबूत रखें एवं पापी ग्रहों के वस्तुओं का दान करें। या पापी ग्रह के मंत्रों का जाप करें ।

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