विभिन्न भाव में गुरु का फल
महिला की कुंडली में गुरु की भूमिका-
गुरु महिलाओं का सौभाग्यवर्द्धक तथा संतानकारक ग्रह है।
जन्म कुंडली में गुरु 1,2,4,5,11,12 में शुभ फल तथा 3,6,7,8,10 में पापी ग्रहों से प्रभावित हो तो अशुभ फल देता है।
स्त्रियों की कुंडली में गुरु 7वें तथा 8वें भाव को अधिक प्रभावित करता है।
सप्तम अष्टम मकर-कुंभ का अकेला गुरु पति-पत्नी के सुख में कमी लाता है। कर्क लग्न में मकर राशि का गुरु नीच का होने के कारण एवं 6 ठे भाव का प्रभाव भी रहता है। सिह लग्न में कुंभ राशि का गुरु अष्टमेश का प्रभाव देता है ।
जलतत्वीय या कन्या राशि का सप्तम का गुरु हो साथ ही गुरु पाप प्रभाव में होने पर पति-पत्नी के संबंध मधुर नहीं रहते।
गुरु शनि से प्रभावित होने पर विवाह में विलंब कराता है।
गुरु, राहु के साथ होने पर प्रेम विवाह की संभावना बनती है।
महिला कुंडली में आठवें भाव में बलवान गुरु विवाहोपरांत भाग्योदय के साथ सुखी वैवाहिक जीवन के योग बनाता है।
आठवें भाव में वृश्चिक या कुंभ का गुरु ससुराल पक्ष से मतभेद पैदा कराता है।
गुरु यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो तो वैवाहिक जीवन का नाश कराता है।
1/5/9/11 का गुरु बली होने पर जल्दी विवाह के योग बनाता है, परंतु वक्री, नीच, अस्त, अशुभ, कमजोर होने पर विलंब।
मकर-कुंभ लग्न में सप्तम का गुरु भी वैवाहिक जीवन समाप्त कराता है।
कारक गुरु मिथुन-कन्या का गुरु लग्न या सप्तम में हो तो अति शुभ होता है।
अत्यंत प्रबल गुरु चंद्र-मंगल से उत्तम तालमेल होने पर वैवाहिक जीवन सफल होता है।
मेष लग्न में विवाह में विलंब सप्तम का गुरु कराता है।
कर्क-सिंह लग्न में 7/8 भाव का गुरु शुभ होने से अर्थात शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वैवाहिक जीवन शुभ रहता है।
वृश्चिक-धनु-मीन लग्न का गुरु वैवाहिक जीवन सुखी बनाता है तथा सहायक होता है।
मीन राशि का गुरु सप्तम में होने पर वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है। यदि पापी ग्रहों से अत्यधिक प्रभावित हो ।
यह मात्र गुरु का प्रभाव है साथ में कुंडली के अन्य ग्रहों को भी देखें।
उपाय –
पांच मुखी, छह मुखी और गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करें।
Comments
Post a Comment