बदलाव का दौर
आज से पांच- 10 साल पीछे के परिवारिक कहानी पढ़ते थे तो माता पिता अपने बच्चों का जुल्म का शिकार होकर भी कुछ नहीं कहते थे। परंतु अब समय बदल रहा है और इस कारण परिवारिक कहानियां भी बदल रहा है , अब माता-पिता अपने बच्चों के मानसिक एवं व्यवहारिक प्रताड़ना से तंग आकर अपना घर नहीं छोड़ रहे हैं बल्कि अपने संतान को ही अपनी संपत्ति से बेदखल कर दे रहे। और अपने जीवन को शांति से जीना चाहते हैं। यह समय सामाजिक बदलाव का है जो धीरे-धीरे आने वाले समय में अपना रंग दिखाएगा। समय रहते वह बच्चे सुधर जाए , जो अपने बुजुर्ग माता-पिता का सम्मान नहीं करते।
✍️राजेश्वर आदिले
बढ़िया समाजिक सोच को दर्शाता लेख है।👍👍🙏
ReplyDelete