दशा -अंतर दशा फल

किसी भी व्यक्ति की ग्रहों के दशा-अंतर्दशा का फल संबंधी व्याख्या करते हुए फलदीपिका कार कहते हैं कि जिस ग्रह की दशा अंतर्दशा चल रहा हो वह ग्रह जिस भाव का स्वामी है उन भावों से संबंधित शुभ फल तभी प्राप्त होंगे जब भाव का स्वामी गोचर में स्वग्रही, उच्च, मित्र राशि और वक्री हो। 
यदि दशा पति नीच राशिगत, शत्रु राशिगत, अस्त या फिर 6 ,8, 12 जैसे दुष्ट स्थानों में  स्थित हो तो ऐसे ग्रह की दशा में जातक को अरिष्ट फल प्राप्त होता है।
यहां एक बात आप अवश्य ध्यान दें की दशा पति ग्रह यदि गोचर में  स्वग्रही, मित्र क्षेत्रीय, उच्च और वक्री होकर भी यदि पाप पीड़ित हो तो अनिष्ट फल देता है।

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