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Showing posts from December, 2020

विवाह के उम्र का गणना

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अक्सर यह प्रश्न माता-पिता , लड़के एवं लड़कियां , एवं उनके रिश्तेदार एक ज्योतिष से पूछते है। विवाह कब होगा यह जानने के लिए  1, विंशोत्तरी महादशा पद्धति, 2, गोचर पद्धति द्वारा, 3, ग्रहों द्वारा संकेतित आयु के आधार पर।  इन तीन पद्धति के माध्यम से विवाह की आयु की गणना किया जाता है। यदि जन्म कुंडली में सप्तम भाव सप्तमेश शुक्र आदि दूषित न हों तो उसका विवाह सामान्य वैवाहिक आयु में होगा। ऐसा मानना चाहिए। सामान्य आयु में विवाह के योग अथवा विलम से विवाह के योग तो जन्म कुंडली में नहीं है इसका विचार कर ले। इसके पश्चात उपरोक्त पद्धति से विवाह की आयु का गणना करें।  1, विंशोत्तरी महादशा पद्धति के आधार पर-- निम्न ग्रहों की दशा अंतर्दशा में विवाह होता है। i, सप्तमस्थ ग्रह की दशा अंतर्दशा में, ii, सप्तम को देखने वाले ग्रह की दशा अंतर्दशा में, iii, सप्तमेश की दशा अंतर्दशा में, iv, सप्तमेश द्वारा अधिष्ठित राशि के स्वामी की दशा में, v, सप्तमेश द्वारा अधिष्ठित नवांश राशि के स्वामी की दशा में, vi, शुक्र चंद्र एवं गुरु की दशा में। उपरोक्त ग्रहों के अतिरिक्त निम्न ग्रहों की दशा अंतर्द...

किडनी रोग

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शरीर में सभी अंगों का अपना विशेष काम होता है। जिसे वे सुचारू रूप से करते हुए शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। इनमें किडनी यानि गुर्दा अहम है, जो शरीर को अंदर से साफ करते हैं और खून को फिल्टर करने का काम करता है। किडनी का शरीर के सभी फंक्शन करने वाले हिस्सों में अहम रोल है, क्योंकि अगर किडनी ठीक नहीं वर्क कर रहा है, तो समझिये की शरीर कई बीमारियों को बुला रहा है। किडनी की रचना और कार्य किडनी (गुर्दा) मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। किडनी की खराबी, किसी गंभीर बीमारी या मौत का कारण भी बन सकता है। इसकी तुलना सुपर कंप्यूटर के साथ करना उचित है क्योंकि किडनी की रचना बड़ी अटपटी है और उसके कार्य अत्यंत जटिल हैं उनके दो प्रमुख कार्य हैं - हानिकारक अपशिष्ट उत्पादों और विषैले कचरे को शरीर से बाहर निकालना और शरीर में पानी, तरल पदार्थ, खनिजों (इलेक्ट्रोलाइट्स के रूप में सोडियम, पोटेशियम आदि) नियमन करना है। किडनी की संरचना किडनी शरीर का खून साफ कर पेशाब बनाती है। शरीर से पेशाब निकालने का कार्य मूत्रवाहिनी, मूत्राशय और मूत्रनलिका द्वारा होता है। स्त्री और पुरुष दोनों के शरीर में सामा...

शनि केतु युति

शनि आदेश, कानून, अनुशासन, न्याय और रूढ़िवाद का प्रतीक है। वैदिक ज्योतिष में, शनि न्याय के देवता हैं। दूसरी ओर, केतु बिना सिर वाला छाया ग्रह है। केतु एकान्त, अलगाव, कारावास प्रतिबंध का प्रतीक है। ज्योतिष में, यह एक दाता ग्रह है। शनि और केतु दोनों ही धीमे चलने वाले ग्रह हैं। एक साथ, कुंडली में शनि और केतु साथ आजाये तो इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में सांसारिक इच्छाओं और आध्यात्मिक जीवन के बीच चयन की उथल-पुथल होती है। ग्रह शनि मेहनत, करियर, वृद्धि और इच्छाशक्ति का कारक है। जबकि, केतु जातक को एकांत स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है। जब ये दो पूरी तरह से विपरीत ग्रह एक साथ आते हैं, तो जातक को एक निरंतर भ्रम होता है। वे खुद को भौतिकवादी और आध्यात्मिक जीवन के बीच चयन करने में असमर्थ पता है। हालांकि, शनि और केतु की युति जातक में कुछ गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिए, वे शनि की गुणवत्ता जैसे विवेकपूर्ण, जिम्मेदार, परिश्रमी आचरण को अपनाते हैं। शनि और केतु दोनों ही निराशा, पराक्रम, असंतोष, इनकार, विलंब के दाता हैं। जब वे कुंडली में युति बनाते हैं, तो वे जातक को जीवन में दर्दनाक अनुभव सक...

प्रव्रज्या(संन्यास) योग

यदि निम्न योग हो जन्म कुंडली में तो जातक संसारिक सुखों का त्याग कर सन्यास धारण कर लेता है।  1, यदि एक ही राशि में 4 या अधिक ग्रह स्थित हो तो सन्यास अर्थात सात्विक प्रवृत्ति व अलौकिक चारित्र्य से युक्त होता है।   2, एक ही राशि में स्थित 4 से अधिक ग्रह हो और ग्रह समुह में जितने ग्रह बली हो वह सन्यास योग कारक होते हैं तथा सन्यास का स्वरूप अपने अपने गुणों के अनुरूप निर्धारित करते हैं।    यदि सूर्य सर्वाधिक बलवान हो तो मनुष्य तापस अर्थात तपस्वी होता है। यदि चंद्रमा बलवान हो तो जातक कापालिक अर्थात काम मार्ग तांत्रिक होता है। मंगल बली होने पर लाल रंग के कपड़े पहने वाला साधु होता है। यदि बुध बलवान हो तो मनुष्य सन्यास को अपनी आजीविका का साधन बना लेता है। यदि बृहस्पति बलवान हो तो त्रि दंड धारण करने वाला सन्यासी होता है। अथवा भिक्षु अर्थात बौद्ध या जैन सन्यासी होता है। यदि शुक्र बलवान हो तो चक्रधारी साधु होता है। यदि शनि बलवान हो तो नग्न रहने वाला दिगंबर साधु होता है।  यदि सन्यास योग बनाने वाले ग्रह अस्त हो तो मनुष्य सन्यासी ना होकर केवल उनकी भक्ति करने वाला ही होता है। ...

लग्नेश का सप्तम भाव में फल -II

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तुला लग्न की कुंडली में शुक्र लग्न एवं अष्टम भाव का स्वामी होता है। लग्नेश शुक्र अष्टम भाव में शत्रु बगल की राशि में बैठकर एक से अधिक स्त्री और पुरुष के प्रति आकर्षण पैदा करता है। यदि जातक इस ओर अधिक सक्रिय हो जाए। किसी तीसरे की वजह से वैवाहिक जीवन कष्ट पूर्ण हो जाता है। अष्टमी शुक्र के वजह से यौवन जनित रोग भी हो सकते हैं। जो कि वैवाहिक जीवन को कष्टमय में बनाते हैं।  वृश्चिक लग्न की कुंडली में मंगल लग्न एवं षष्टम भाव का स्वामी होता है। सप्तम भाव में शत्रु शुक्र की राशि में बैठकर पत्नी के स्वास्थ्य को खराब, एक से अधिक स्त्री और पुरुष के प्रति आकर्षण , पति या पत्नी का क्रोधी स्वभाव देता है। जिस वजह से वैवाहिक जीवन में कष्ट का सामना करना पड़ता है।  धनु लग्न की कुंडली में गुरु लग्न एवं चतुर्थ भाव का स्वामी है। सप्तम भाव में अपने शत्रु बुध की राशि में बैठने के वजह से कुछ वैचारिक मतभेद देता है। साथ ही गुरुजी भाव में बैठता उस भाव की हानि भी करता है। अतः वैवाहिक जीवन में खट्टा मीठा स्वाद का अनुभव करते हुए अपने जीवन को व्यतीत करते हैं।  मकर लग्न की कुंडली में शनि लग्न ...

सप्तम भाव में लग्नेश का फल -I

"लग्नेश यदि सप्तम भाव में हो तो वैवाहिक जीवन कष्ट पूर्ण हो जाता है।" जातक तत्व ।।। यदि हम इस बात पर विचार करें तो पाते हैं कि मेष लग्न की कुंडली में लग्नेश मंगल लग्न एवं अष्टम भाव का स्वामी है। और यदि सप्तम भाव में बैठ जाए तो मंगली योग बनाता है। मंगल उर्जा का कारक है एवं अग्नि प्रधान  ग्रह है। जिस वजह से गुस्सा बढ़ जाता है और वैवाहिक जीवन में समस्या आने लगता है।  वृषभ लग्न की जन्म कुंडली में लग्नेश शुक्र लग्न और छठे भाव का स्वामी है। मंगल की राशि में शुक्र बैठ कर काम भावना को बढ़ा देता है। साथ ही शुक्र छठे भाव का स्वामी होने के कारण कोई गुप्त रोग भी दे देता है। पति और पत्नी शत्रु वत् व्यवहार करने लग जाते हैं । जिस वजह से वैवाहिक जीवन कष्ट पूर्ण हो जाता है। मिथुन लग्न की कुंडली में बुध लग्न और चतुर्थ भाव का स्वामी है। सप्तम भाव में गुरु की राशि में बुध के बैठने से सुखमय रहता है।  कर्क लग्न की कुंडली में लग्नेश चंद्रमा सप्तम भाव में शत्रु शनि की राशि में बैठता है। शनि और चंद्रमा एक साथ हो तो विष योग बनाते हैं।  चंद्रमा एक चंचल ग्रह है। सप्तम भाव पति / पत्नी का है । अतः...

मेरे समाज के कर्णधारों

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मेरे समाज के कर्णधारों ,  करता है राजेश्वर तुमसे निवेदन , बच्चो और युवाओं के प्रतिभा को ,   निखारने के लिए करे कुछ जतन । मेरे समाज के कर्णधारों ... जयंती को रचनात्मकता के रंग से भर दो , और समाज को विकास कि दिशा मे ले चलो । मेरे समाज के कर्णधारों... जयंती में राजनेताओं के स्वागत सतकार के साथ , प्रतिभा के विकास पर जोर दो । मेरे समाज के कर्णधारों... पंथी के साथ संगीत , भाषण , नाटक , कवि संमेलन जैसे कार्यक्रम को भी आयोजन करो । मेरे समाज के कर्णधारों... कला के विकास के लिए , रंगोली, चित्रकारी, फोटोग्राफी जैसे विविध कला को भी मंच दो । मेरे समाज के कर्णधारों... अखाडा कुश्ती , तलवार बाजी , लठबाजी , जुडो ,कराटे , शतरंज , जैसे खेलो का भी आयोजन करो । मेरे समाज के कर्णधारों... इन कार्यक्रम मे बेटीयों को भी बराबर अवसर दो , चिंता न करो उन नर भेडीयो से , उनकी चुभती नजर को पहचानती है , वो जानती है कि किसकी नजर मे , प्रेम और संम्मान है , और किसकी नजर में वासना है । फुहडता का नाम लेकर उनकी प्रतिभा के विकास में अवरोध न खडा करो ।  मेरे समाज के कर्णधारों ... बेटीयों पर विश्वास तो करो ,...

#सतनाम

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आद्रा नक्षत्र और रोग

इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु है । इस नक्षत्र के चारो चरण मिथुन राशि में आता है । मिथुन राशि का स्वामी ग्रह बुध है । इस नक्षत्र के चार चरण होते है । प्रथम चरण स्वामी ग्रह गुरू,द्वितीय चरण स्वामी ग्रह शनि, तृतीय चरण स्वामी ग्रह शनि, चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह गुरू। आर्द्रा  नक्षत्र में यदि क्रूर एवं पापी ग्रह जैसे - सूर्य , क्षीण चन्द्रमा , मंगल , शनि , राहु , केतु , षष्ठेश , अष्टमेश और द्वादशेश का प्रभाव हो तो निम्न रोग हो सकते है --- गले के रोग , बाजुएँ के रोग , कंधे के रोग , श्वास रोग , कान रोग , अस्थमा , बालों का रोग , मंदाग्नि  , वायु रोग , आकस्मीक रोग , कफ रोग  इस नक्षत्र में रोग होने पर 10 दिन एक माह और कभी कभी मृत्यु भी हो जाता है । उपाय - श्यामा तुलसी , पीपल का जड़  । नोट - विस्तार करे और अपना अनुभव शेयर ज़रूर करे

लग्नाधि योग

यदि आपकी जन्मकुंडली में लग्न से 6,7,8 भाव में किसी भी तरह केवल शुभ ग्रह हो एवं पापी ग्रहों से युक्त ना या दृष्टि न हो , सूर्य से अस्त ना हो तो लग्नाधि योग होता है। इस योग के बारे में वर्णन बृहदपराशर, सरावली फलदीपिका जातक देश मार्ग में वर्णन आया है।  यहां एक बात विशेष रुप से ध्यान दें की सूर्य से बुध 28 डिग्री दूर रह सकता है एवं सूर्य से शुक्र 47 डिग्री दूर रह सकता है। अतः सूर्य के साथ शुभ ग्रह होने पर भी योग भंग नहीं होगा। पापी ग्रह शनि और मंगल का हम विचार करें तो सनी को प्राप्त है 3 , 7 और 10 पूर्ण दृष्टि जबकि मंगल को प्राप्त है 4 , 7 और8 पूर्ण दृष्टि। इस स्थिति में यदि पाप ग्रह 1 ,2 और 12 भाव में हो तो भी पापी ग्रह का दृष्टि 6, 7 और 8 भाग में रहेगा ही। यदि 3 , 4 और 5 भाव में हो पापी ग्रह तो भी 6 ,7 और 8 भाव में पापी ग्रह की दृष्टि रहेगा ही। और यदि 9, 10 और 11 भाव में हो पापी ग्रह तब भी 6 , 7और 8 भाव में दृष्टि रहेगा ही ।  अतः निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है की 6, 7 और 8 भाव में पापी ग्रहों की युति हो तो लग्नाधि योग भंग होता है। जातक परिजातक। लग्नाधि योग में जन्म लेने वाले...

परीक्षा में सफलता के कुछ उपयोगी सुझाव

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1, ब्राह्मी बूटी को गले में धारण करने से स्मरण शक्ति बढ़ता है तथा शिक्षा के प्रति एकाग्रता मैं वृद्धि होता है । 2, प्रतिदिन दोनों हाथ से तर्जनी और अंगूठे  के अग्रभाग को मिलाकर शेष उंगलियों को सीधा रखते हुए सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठकर अपने गुरु या इष्ट को स्मरण करते हुए ध्यान लगाएं इससे आपका स्मरण शक्ती मैं वृद्धि होगा। 3, विद्यार्थियों को अपने कक्ष में हरे परदे अथवा हरे टेबल कवर का प्रयोग करना चाहिए। 4, किसी पुस्तक का अध्ययन करते समय उस पुस्तक को ससम्मान अपने मस्तक से लगाये । यदि पुस्तक खंडित हो तो ऐसी पुस्तक के अध्ययन से एकाग्रता भंग होता है। खाते-पीते अध्ययन ना करें। चाय एवं सिगरेट पीते समय भी अध्ययन नहीं करना चाहिए। 5, गंदे हाथों से , गंदे स्थानों पर पुस्तक नहीं रखे। अध्ययन करते समय अन्य कार्य ना करें । समय-समय पर पुस्तकों की साफ-सफाई एवं देखभाल करते रहे। 6, कुछ समय के लिए पुस्तकों को धूप में रखें , इससे सूर्य का प्रभाव प्रबल होता है विशेष रुप से जिन जातकों की कुंडली में सूर्य बुध का योग होता है। सूर्य के प्रकाश में अध्ययन करने से वे शीघ्र ही विषय में पारंगत...

जब चाहत शिखर का होता है

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जब चाहत शिखर का होता है । तो छल कपट का सामना करना पडता है । जब चाहत शिखर का होता है । तब संघर्षों के दौर से गुजरना पडता है । जब चाहत शिखर का होता है । तब काटो पर भी चलना पडता है । जब चाहत शिखर का होता है । तब साजिशों के चक्रव्युह का सामना करना पडता है । जब चाहत शिखर का होता है । तब अपने भी धोखा देते है । जब चाहत शिखर का होता है । तब प्रियों से बीछडना पडता है । जब चाहत शिखर का होता है । तो दुश्मन भी हरफन मौला होता है । जब चाहत शिखर का होता है । तब मुसीबत का रोना जो रोता है , वह फर्श मे मिल जाता है । जब चाहत शिखर का होता है । तो आग में जल कर कुंदन बनना पडता है ।  और तब शिखर पर पहुँचता है ।   ✍️एस्ट्रो राजेश्वर आदिले

रज्जु योग

यदि जन्म कुंडली में सभी ग्रह अर्थात सूर्य ,चंद्र , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र और शनि चर राशि में हो तो रज्जू योग होता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक घूमने फिरने का शौकीन , विदेश में धन अर्जित करने वाला , विदेश में सुखी रहने वाला , रूपवान , कठिन से कठिन कार्य करने वाला , स्वभाव से दुष्ट प्रकृति का हो सकता है।   वृहद पराशर होरा शास्त्र एवं सरावली के अनुसार

बहस के दुष्परिणाम

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जय सतनाम मित्रों  .......................                    आज कुछ अपनी यादों के झरोखो से कुछ बाते , आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूँ  । आज से करीब सात साल पूर्व मैंने फेसबुक ज्वाईन किया । दो चार लेख पोस्ट करने के बाद मुझे किसी फेसबुक मित्र ने समाजिक ग्रुपों में जोड दिया । वहाँ अकसर बहस होते थे , पता हि नहीं चला मैं भी उन बहसों में कब सामिल हो गया । मैंने लोगों को समझाने के लिए हर प्रकार से तर्क किया । इस प्रकृया में कुछ लोग समझे भी और कुछ लोग नहीं भी समझे ।   मैं जब तर्क करता था , तो सोचता था । मैं तो नार्मल रह कर बहस करता हुँ । मेरे शब्द चयन कोमल होते है , इस कारण इन बहस से मुझ पर शारीरिक या मानसिक किसी भी प्रकार का कोई दुश्प्रभाव नहीं पडेगा । लेकिन मेरा सोचना गलत था । बहस मुझ पर अपना प्रभाव डाल रहे थे । जिसे मैं महशुश करने लगा था । किसी बहस या तर्क मे पडते समय शुरूवात मे मुझे सीने में दिल के धडकन बडने का अनुभव होने लगा था । जिसके फलस्वरूप मेरा यह धारण टुटा की कोमल तरिके से प्रतिक्रिया देने से शारीरिक या मानसीक प्रभ...

मृगशिरा नक्षत्र और रोग

मृगशीरा नक्षत्र -------------------- इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह मंगल है । इस नक्षत्र के पहले दो चरण वृषभ राशि में आता है शेष तृतीय और चतुर्थ चरण मिथुन राशि में आता है । वृषभ राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है, मिथुन राशि का स्वामी ग्रह बुध है । इस नक्षत्र के चार चरण होते है । प्रथम चरण स्वामी ग्रह सूर्य ,द्वितीय चरण स्वामी ग्रह बुध, तृतीय चरण स्वामी ग्रह शुक्र, चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह मंगल। मृगशीरा नक्षत्र में यदि क्रूर एवं पापी ग्रह जैसे - सूर्य , क्षीण चन्द्रमा , मंगल , शनि , राहु , केतु , षष्ठेश , अष्टमेश और द्वादशेश का प्रभाव हो तो निम्न रोग हो सकते है --- पहले दो चरण में थोड़ी गाल, स्वर यंत्र , तालु रक्त वाहिनियाँ , टांसिल , ग्रीवा  के नसें में रोग हो सकता है। तीसरे  चौथे चरण में गला , गले का अवाज , बाज़ू व कंधे के रोग , कान ,ऊपरी पसलीयाँ के रोग हो सकते है । साथ ही सीत ज्वर , कफ , ठण्ड ,भौह के रोग ,मुहासे , हृदय रोग , खुजली , साइटिका , रक्त दोष , आँखों के रोग , अपच , एलर्जी , स्पाईनल कार्ड के रोग हो सकते है । इस नक्षत्र में रोग होने पर 3 ,5 दिन रहता है । उपाय - खैर का जड़ । नोट - वि...

मुस्कुराता हुआ चेहरा

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1) हंसने से ह्रदय  की एक्सरसाइज हो जाती है| हँसने पर शरीर से डोपामीन , एसिटिल कोलीन, गावा , सेरोटोनिन और एंडोर्फिन रसायन निकलता है, ये द्रव्य ह्रदय को मजबूत बनाते  है। ह्रदय की कार्य क्षमता बड जाती है । ह्रदय शक्तिशाली बनता है और रक्त -संचरण का कार्य अधिक उत्तमता से करता है । रक्त की शुद्धता , उसकी शक्ति और गति में सुधार होता है । शुद्ध रक्त ही जीवन का आधार है । शुद्ध और गतिशील रक्त समस्त दोषों को बहाकर शरीर से बहार कर देता है और समस्त अवयवों को निरंतर पोषण देकर शरीर यंत्र को सब प्रकार से स्वस्थ और कार्य क्षम बनाये रखता है । हँसने से हार्ट-अटैक की संभावना कम हो जाती है।   2) कार्टिसोल हार्मोन का स्तर उन लोगों में अधिक पाया जाता है जो उदास , ग़मगीन और असंतुष्ट रहते हैं । यह हार्मोन अवसाद, तनाव , मानसिक झुंझलाहट तो पैदा करता ही है साथ ही साथ सामान्य रक्तचाप, धड़कन, मन्श-पेशियों में तनाव और पसीने का स्तर भी बड़ा देता है । एक रिसर्च के अनुसार ऑक्सीजन की उपस्थिती में कैंसर कोशिका और कई प्रकार के हानिकारक बैक्टीरिया एवं वायरस नष्ट हो जाते हैं। ऑक्सीजन हमें हँसने से अधि...

घर, दुकान, फैक्ट्री में नजर दोष से बचने का उपाय

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सामग्री 1, एक छोटा सा तांबे का ढक्कन वाला लोटा। 2, पांच ताबे का छेद वाला सिक्का। 3, छोटा सा चांदी का बना हुआ नाग और नागिन का जोड़ा। 4, हनुमान जी के चरण का थोड़ा सा सिंदूर। 5, लोहे का छोटा सा एक त्रिशूल। 6, चांदी का एक जोड़ी छोटा सा चरण  पादुका। 7, गंगाजल। प्रयोग विधि:- तांबे के लोटे को धो माज कर चमका लें। अब इसमें उपरोक्त सभी सामग्री को डाल दें। गंगाजल से लौटे को भर दे। अब ढक्कन को अच्छी तरीके से बंद कर दे। जिससे कि जल छलक कर बाहर ना आ पाए। अब इसे पूजा-पाठ कराकर प्राण प्रतिष्ठा करा लें , इसके पश्चात अपने ईष्ट का स्मरण करते हुए। घर के नींव में मुख्य द्वार के दाएं भाग में दबा दें। इस उपाय को करने से घर का वास्तु दोष, घर में नजर लगने जैसी समस्या नहीं आता है। घर के लोग सुख शांति से रहते हैं। दिनोंदिन जिंदगी में प्रगति करते हैं।

रोहिणी नक्षत्र और रोग

इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह चन्द्रमा है । वृषभ राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है इस नक्षत्र के चार चरण होते है । प्रथम चरण स्वामी ग्रह मंगल ,द्वितीय चरण स्वामी ग्रह शुक्र , तृतीय चरण स्वामी ग्रह बुध, चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह चन्द्रमा। रोहणी नक्षत्र में यदि क्रूर एवं पापी ग्रह जैसे - सूर्य , क्षीण चन्द्रमा , मंगल , शनि , राहु , केतु , षष्ठेश , अष्टमेश और द्वादशेश का प्रभाव हो तो निम्न रोग हो सकते है --- चेहरा , मुँह , टांसिल , गर्दन , जीभ , तालु , ग्रीवा , कशेरूका , अनुमस्तिष्क , मुहासे , नेत्र में सुजन , सिर का पिछला भाग , टांगों , बावासीर के रोग हो सकते है । इस नक्षत्र में रोग होने पर 3 ,7 या 10 दिन रहता है । उपाय - अपामार्ग / आवले का जड़ ।