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Showing posts from July, 2020

नजरें मिलाकर बात करें

बच्चों को बचपन से नज़र मिला कर बात करना सीखाए । नज़र मिला कर बात करना है न कि घुरना है । घुरना भी असभ्यता है । नजरें मिलाकर बात करने का अभ्यास करें- किसी भी व्यक्ति के बॉडी लैंग्वज से उसके व्यव्हार का पता चल जाता है.. बॉडी लैंग्वेज में आँखों का प्रयोग आपके आत्मविश्वास बढ़ाने में काफी कारगर साबित हो सकते हैं.. कोई व्यक्ति आँखों का किस तरह से प्रयोग करता है इसे जानकर हमें भी काफी ज्यादा जानकारी मिल सकती है..अगर कोई व्यक्ति आपसे बात करते हुए आपकी तरफ नजर नहीं करता है, आँखें मिलाकर बात नहीं करता है तो आप यह जान सकते हैं कि उसके अंदर आत्मविश्वास की बहुत कमी है.. ऑंखें न मिलाकर बात करने से कुछ तथ्य हमारे सामने आ सकते हैं- क्या यह व्यक्ति डरा हुआ है, और डरा हुआ है तो किस बात से डरा हुआ है? कहीं ये मुझे धोखा तो नहीं देगा, इस वजह से मुझसे नजरें मिलाकर बात नहीं कर रहा.. ये आखिर मुझसे क्या और कौन-सी बातें छिपाने की कोशिश कर रहा है? आखिर इसके इरादे क्या हैं? क्या मैं इस पर विश्वास कर सकता हूँ? ज्यादातर नज़र मिलाने से जो लोग झिझकते हैं उनसे तीन बातों का पता चलता है १. मैं आपसे डरा फील करता हूँ.., म...

राशि के तत्व II

पृथ्वी तत्व पृथ्वी तत्व के अंतर्गत वृषभ राशि, कन्या राशि और मकर राशि आता है। पृथ्वी तत्व से हम आवाज, स्पर्श , आकार, स्वाद के गुण और गंध, गंध सुगंधित भी हो सकता है और दुर्गंध भी हो सकता है , जो कि हमारे नाक द्वारा हमें महसूस होता है। जिस तरह पृथ्वी का लक्षण होता है, अपने में सब को समाहित कर लेना, चाहे पर्वत हो, चाहे ना भी हो, इसमें पठार भी है, झरने भी है, कहीं ऊंची तो कहीं नीची है, तो कहीं समतल भूमि भी है। किंतु नैसर्गिक लक्षण हर पल उपजाऊ अर्थात सृजनात्मक का गुण  पाया जाता है। ऐसे लोग धीरे-धीरे जीवन में प्रगति करते हैं, गंभीर , पोषक लक्षणों से युक्त पाया जाते है। पृथ्वी तत्व के जातक अपने काम से काम रखने वाले , सहनशील,  धैर्यवान,  धीर वीर , गंभीर होते हैं। प्रायः इन्हें बचपन या कम आयु से कठोर श्रम करना पड़ता है। तथा अपनी कार्यक्षमता और कार्यकुशलता के कारण आसपास के समाज में प्रतिष्ठित होते हैं। प्रशासनिक योग्यता के कारण नौकरी या व्यवसाय का संचालन सुचारू रूप से संचालन करने वाले होते हैं। इन्हें अपने कार्यों में असफलता नहीं मिलता परंतु सफलता भी देर से प्राप्त होता है। एक ही का...

वाणी

मधुर वाणी एक प्रकार का वशीकरण है। जिसकी वाणी मीठी होती है, वह सबका प्रिय बन जाता है। प्रिय वचन हितकारी और सबको संतुष्ट करने वाले होते हैं। फिर मधुर वचन बोलने में दरिद्रता कैसी? वाणी के द्वारा कहे गए कठोर वचन दीर्घकाल के लिए भय और दुश्मनी का कारण बन जाते हैं।इसीलिए साधारण भाषा में भी एक कहावत है कि गुड़ न दो, पर गुड़ जैसा मीठा अवश्य बोलिए, क्योंकि अधिकांश समस्याओं की शुरुआत वाणी की अशिष्टता और अभद्रता से ही होती है। 1- जन्म कुंडली का दूसरा भाव वाणी का होता हैं, दूसरे भाव पर ग्रहों का जैसा प्रभाव होगा, वैसी ही वाणी होगी। बुध, गुरु, शुक्र में से किसी की दूसरे स्थान पर प्रभाव स्थिति व्यक्ति की वाणी को सौम्य, ज्ञान युक्त व प्रभाव शाली बनाती हैं, और यदि यें ग्रह नीचगत हो या अशुभ ग्रहों के प्रभाव में फल देने वाले हो तो विपरीत फल प्राप्त होते हैं। 2- वाणी स्थान में राहु-मंगल या राहु-शनि का प्रभाव हो तो मुहं के कई रोग उत्पन्न करते हैं, राहु व वक्री बुध हो तो हकलाने जैसी समस्या आती हैं। 3- सूर्य का दूसरे स्थान पर प्रभाव व्यक्ति को या तो मुहं के रोग देता हैं, या वाणी को कठोर व अहंकार युक्त बनाता ...

ग्रहों के तत्व - I

वैदिक ज्योतिष के अनुसार राशियों को पांच तत्व में बांटा गया है। अग्नि तत्व , वायु तत्व,  जल तत्व , पृथ्वी तत्व और आकाश तत्व । मानव शरीर का निर्माण भी इन्हीं पांच तत्वों से हुआ है। जिस तत्व की प्रधानता होता है उसी तत्व के गुण जातक में विद्यमान होते हैं। अग्नि तत्व इस तत्व के अंतर्गत मेष राशि, सिंह राशि और धनु राशि आता है। अग्नि तत्व के जातक भावुक, गतिशील और मनमौजी प्रवृत्ति के होते हैं। इन्हें गुस्सा जल्दी आता है, लेकिन ये सरलता से माफ भी कर देते हैं। विशाल ऊर्जा के साथ साहसी होते हैं।शारीरिक रूप से बहुत मजबूत और दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं। अग्नि राशि के जातक हमेशा कार्य करने के लिए तैयार, बुद्धिमान , स्वयं जागरूक, रचनात्मक और आदर्शवादी होते हैं। अग्नि तत्व में आवाज,  स्पर्श के साथ आंखों से किसी आकार को देखने का गुण भी होता है। अग्नि का नैसर्गिक रूप होता है तेजस्विता, जो सामने आया उसे जलाकर भस्म कर देना, वायु प्रवाह की दिशा में निरंतर आगे बढ़ना, अर्थात अवरोधों को जलाते हुए अपने लिए रास्ता बनाना, ठीक इसी प्रकार अग्नि तत्व के जातक का गुण भी होता है। इस तत्व की प्रधानता व...

खाने के बाद तुरंत न नहायें

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खाना खाने के बाद नहाने के हानिकारक परिणाम  ----------------- हम में से कई लोगों को पता है कि खाना खाने --के बाद नहीं नहाना चाहिये पर क्‍यों नहीं नहाना चाहिये ये नहीं पता। भोजन करने के तुरंत बाद नहाना हानिकारक साबित हो सकता है पर कई लोग सोंचते हैं कि यह मात्र एक धारणा है, जिसमें कोई सच्‍चाई नहीं है।   खाने के बाद नहाने से शरीर का तापमान गिर जाता है और फिर शरीर इसको नियंत्रित करने के लिये रक्‍त का प्रवाह शरीर के बाकी हिस्‍से, जैसे हाथ, पैर, चेहरे आदि की ओर बढ़ा देता है।   शरीर के ऊपर जब पानी पड़ता है तो रक्‍त का प्रवाह अधिक मात्रा में त्‍वचा तक पहुंचता है, जिसकी वजह से शरीर को गर्मी मिलती है। हम खाना खाने के तुरंत बाद नहाने को इसलिये नहीं कहते क्‍योंकि पेट के आस - पास जो रक्‍त होता है, वह खाना पचाने में मदद करता है, मगर नहाने से वही रक्‍त शरीर के अन्‍य भागों में चला जाता है और वहां पर जा कर देर तक रहता है, जिससे खाना ठीक से नहीं पचता या फिर धीमे पचता है।   खाना पचाने में हमारे शरीर को कई सारी मात्रा में रक्‍त की आवश्‍यकता पड़ती है। यहां तक कि अगर आप गरम पानी से भी नहाए...

हर्निया मुद्रा

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विधि इस मुद्रा को सुखासन , वज्रसन या पद्मासन में बैठ जाए। खास को फैलाकर घुटने में रख लें। हथेली के खुले हुए भाग को आकाश की ओर रखें। तर्जनी अनामिका और अंगूठे के अग्रभाग को आपस में मिला दे। इस तरीके से बनने वाले मुद्रा को हर्निया मुद्रा कहते हैं। समय यह मुद्रा प्रतिदिन 45 मिनट करें या 15:15 मिनट के हिसाब से दिन में तीन बार करें। भोजन करने के तुरंत बाद इस मुद्रा को ना करें। और न ही इस मुद्रा को करने के बाद तुरंत भोजन करें। लाभ इस मुद्रा को करने से हर्निया संबंधी रोगों में, आंत के रोग में और कब्ज रोग में लाभ मिलता है।

श्वसनी मुद्रा

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इस मुद्रा को करने के लिए पद्मासन सुखासन या वज्रासन में बैठकर हाथ को फैलाते हुए घुटनों पर रखें, हथेली के खुले हुए भाग को आकाश की तरफ रखें । रीड की हड्डी को सीधी रखें।  इसके पश्चात दोनों हाथों में कनिष्ठा और अनामिका उंगलियों के शीर्ष को अंगूठे की जड़ से लगाएं। मध्यमा उंगली को अंगूठे के शीर्ष से मिलाएं। तर्जनी को बिल्कुल सीधी रखें।  समय इस मुद्रा को प्रतिदिन 45 मिनट अथवा 15:15 मिनट के हिसाब से दिन में तीन बार करें। लाभ  श्वास से जुड़ा कोई भी रोग, जैसे- दमा, सांस लेने में परेशानी आदि सांस की नली में श्लेष्मा के जमने से पैदा होता है। इससे फेफड़े तक साफ हवा पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाता और पीड़ित व्यक्ति सांस के ठीक से अंदर जाने से पहले ही सांस छोड़ देता हैं। सांस संबंधी इन रोगों में श्वसनी मुद्रा बहुत कारगर है। यह वरुण मुद्रा, सूर्य मुद्रा और आकाश मुद्रा का समन्वय है। इससे श्वास नली में जमा श्लेष्मा बाहर निकल जाता है और सूजन में कमी आती है। इसके नियमित अभ्यास से सांस छोड़ते समय अधिक जोर नहीं लगाना पड़ता और धीरे-धीरे सांस के रोग पूरी तरह खत्म हो जाते हैं। श्वा...

स्नायु संस्थान nervous system की कमजोरी

बनारसी आंवले का मुरब्बा 1 नग अथवा 12 ग्राम (बच्चों के लिए आधी मात्रा) लें। प्रातः खाली पेट खूब चबाकर खाने और उसे 1 घंटे के बाद तब कुछ भी ना लेने से मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को बल मिलता है और स्नायु संस्थान शक्तिशाली बनता है। आंवला के मुरब्बे बनाने की विधि  500 ग्राम स्वक्ष हरे आंवला कद्दूकस करके उनका खुदा किसी कांच के बर्तन में डाल दें, और गुठली निकाल कर फेंक दे। अब इस गुदे पर इतना सहा डालें की गुदा शहद में भीग जाए। तत्पश्चात उस कांच के बर्तन को ढक्कन से ढक कर उसे 10 दिन तक रोजाना चार-पांच घंटे धूप में रखें। इस प्रकार प्राकृतिक तरीके से मुरब्बा बन जाएगा। बस 2 दिन बाद इसे खाने के काम में लाया जा सकता है।इस विधि से तैयार किया गया मुरब्बा स्वास्थ्य की दृष्टि से श्रेष्ठ है क्योंकि आग की बजाय सूर्य की किरणों द्वारा निर्मित होने के कारण इसके गुण धर्म नष्ट नहीं होते और शहद में रखने से इसकी शक्ति बहुत बढ़ जाता है। सेवन विधि प्रतिदिन प्रातः खाली पेट 10 ग्राम दो चम्मच भर मुरब्बा लगातार तीन चार सप्ताह तक नाश्ते के रूप में ले, विशेषकर गर्मियों में ‌। चाहे तो इस के लेने के 15 मिनट बाद गुनगुना द...

ग्रहों के उच्च एवं नीच राशियां

इसके अंतर्गत हम ग्रह किस राशि में कितने अंश तक उच्च के होते हैं। कितने अंश तक नीच के होते हैं, कौन सी राशि में स्व राशि के होते हैं, कौन सी राशि में मूलत्रिकोण होते हैं इस बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। ग्रह   - स्वराशि - मूल त्रिकोण राशि-उच्च राशि-नीच राशि सूर्य-- सिंह राशि में 20 अंश से लेकर 30 अंश तक स्वराशि के होते हैं। सिंह राशि में 0 अंश से लेकर 20 अंश तक मूल त्रिकोण राशि होता है। मेष राशि में 0 से लेकर 10 अंश तक सोच के होते हैं। तुला राशि में सूर्य 0 से लेकर 10 अंश तक नीच के होते हैं। चंद्रमा-- चंद्रमा कर्क राशि में स्वराशि के होते हैं, वृषभ राशि में 3 अंश से लेकर 30 अंश तक मूल त्रिकोण राशि के होते है। वृषभ राशि में 0 से लेकर 3 अंश तक उच्च होते हैं। जबकि वृश्चिक राशि में 0 से लेकर 3 अंश तक नीच के होते हैं। मंगल-- मंगल मेष राशि और वृश्चिक राशि में स्वराशि के होते हैं। मेष राशि में ही 0 से लेकर 12 अंश तक मूल त्रिकोण राशि के होते हैं। मंगल मकर राशि में 0 से लेकर 28 अंश तक उच्च के होते हैं। जबकि मंगल कर्क राशि में 0 से लेकर 28 अंश तक नीच के होते हैं। बुध-- बुध मिथुन राशि में स...

सजल निर्जल राशियां

सजल निर्जल राशियों से वर्षा विचार जातक के अंगो का विचार एवं प्रश्न विचार में उपयोग किया जाता है। सजल राशियां ............... इसके अंतर्गत कर्क , वृश्चिक , मीन,  मकर राशि आता है। अतः इन राशियों को सजल राशि कहते हैं। हमने पूर्व में ही अध्ययन किया है कि राशियों के स्थान और स्वरूप में कि  यह कहां पाए जाते हैं और इनकी आकृति कैसा होता है। इन दोनों चीजों से पता चलता है यह सजल राशियां है। अर्थात उनके शरीर में जल की अधिकता होगा। जलीय प्रदेश राशियां ........................ इसके अंतर्गत वृषभ राशि मिथुन राशि कन्या राशि कुंभ राशि आता है अतः इन राशियों को जलीय प्रदेश राशि कहते हैं।  इसके बारे में भी हमने राशियों के स्थान एवं आकृति में अध्ययन किया है। शुष्क राशियां ................. इसके अंतर्गत मेष राशि सिंह राशि तुला राशि और धनु राशि आता है। अतः इस राशियों को निर्जल या शुष्क राशियां कहते हैं। इसके बारे में भी हमने अध्ययन राशि स्वरूप और राशियों के स्थान में अध्ययन किया है। इस विषय को हम निम्न से समझ सकते हैं जैसे कि आपके पास कर्क लग्न की कुंडली आता है। और इस कर्क लग्न की कुंडली का नवा...

दिन - रात्रि बली राशियां

दिन बली राशियां– इसके अंतर्गत सिंह , कन्या , तुला, वृश्चिक, कुंभ और मीन राशि या आता है जो कि दिन बलि राशि कहलाता है। रात्रि बली राशियां– इसके अंतर्गत मेष राशि, वृषभ राशि , मिथुन राशि, कर्क राशि, धनु राशि और मकर राशि आता है जोकि रात्रि बली राशियां कहलाती है। नोट … रात्रि बली राशियां चंद्रमा के अधिकार में वह दिन बली राशियां सूर्य के अधिकार में आता है। दिन बली राशि हो साथ ही अधिक ग्रह दिन बली राशि में हो तो जातक दिन में पराक्रम दिखाता है अर्थात अपना अधिक काम दिन में ही करता है। रात्रि बली राशियां हो और अधिक से अधिक ग्रह रात्रि बली राशि में हो तो जातक रात में अपना पराक्रम दिखाता है। जैसे कि… यदि कोई जातक यात्रा से संबंधित प्रश्न करें और प्रश्न लग्न में दिन बली राशि हो तो दिन में यात्रा करने के लिए प्रस्थान करने के के लिए बोला जाता है। इसी प्रकार से यदि लग्न में रात्रि बली राशि हो तो यात्रा के लिए प्रस्थान करने के लिए रात्रि में बोला जाता है।

राशियों के स्वामी ग्रह

वैदिक ज्योतिष में पूरे ब्रह्मांड को 360 डिग्री का माना गया है जो कि लगातार फैल रहा है। और इस 360-degree को 12 भागों में बांटा गया है अर्थात 30 अंश का प्रत्येक भाग है। इसी 30 अंश के प्रत्येक भाग को 1-1 राशि का नाम दिया गया है। हम यह जानते हैं कि ग्रह साथ है , जबकि राशि 12 है अतः सूर्य और चंद्रमा को एक एक राशि प्रदान किया गया है। बाकी बचे ग्रहों को 2-2 राशि प्रदान किया गया है अर्थात 2-2 राशियों के स्वामी बनाया गया है। जैसे कि राशि  -  स्वामी ग्रह मेष राशि  - स्वामी ग्रह मंगल है। वृषभ राशि - स्वामी ग्रह शुक्र है। मिथुन राशि - स्वामी ग्रह बुध है। कर्क राशि  - स्वामी ग्रह चंद्रमा है। सिंह राशि  - स्वामी ग्रह सूर्य है। कन्या राशि - स्वामी ग्रह बुध है। तुला राशि  - स्वामी ग्रह शुक्र है। वृश्चिक राशि - स्वामी ग्रह मंगल है। धनु राशि  - स्वामी ग्रह बृहस्पति है। मकर राशि  - स्वामी ग्रह शनि है। कुंभ राशि  - स्वामी ग्रह शनि है। मीन राशि  - स्वामी ग्रह बृहस्पति है।

शीर्षोदय, पृष्ठोंदय एवं उभयोदय संज्ञाएं

शीर्षोदय राशि ...................      इसके अंतर्गत मिथुन राशि सिंह राशि कन्या राशि तुला राशि वृश्चिक राशि और कुंभ राशि आता है। यदि प्रश्न लग्न में शीर्षोदय राशि हो तो जिस कार्य के लिए प्रश्न किया गया है उसमें जल्द से जल्द सफलता मिलता है । जैसे कि कोई नौकरी के लिए प्रश्न करें या विवाह के लिए प्रश्न करें तो कहे कि बहुत जल्द आपका नौकरी या विवाह होने वाला है।  यदि कोई प्रश्न करें कि मैंने दो लड़का या लड़की देखा है । इस में से किसके साथ विवाह करना उचित रहेगा तो प्रश्न लग्न में शीर्षोदय राशि होने के कारण जिस लड़की लड़का को पहले देखा है उसी के साथ विवाह करने के लिए बोले। पृष्ठोंदय राशियां ....................   इसके अंतर्गत मेष राशि, वृषभ राशि ,कर्क राशि ,धनु राशि और मकर राशि आता है। अर्थात का पिछला भाग पहले पूर्वी क्षितिज पर उदित होता है। पृष्ठोदय राशि मैं किसी भी प्रकार का प्रश्न किया जाए कार्यों की सफलता या असफलता के लिए जैसे की नौकरी लगेगा, विवाह मेरा कब होगा तो ऐसे प्रश्न का उत्तर में हमे कहना चाहिए कि अभी नौकरी या विवाह में देरी या अभी नहीं होगा कहना चाहिए । उभय...

स्त्री पुरुष और नपुंसक संज्ञक अंग

यदि कोई जातक आपके पास आकर कुछ प्रश्न पूछे उस वक्त आपके पास पंचाग ना हो या एक ही लग्न में कई लोग आपसे प्रश्न करें तो जातक शरीर के किस अंग को छूकर प्रश्न करता है, इस बात पर ध्यान दें। क्योंकि मानव शरीर के अंगों को स्त्री , पुरुष और नपुंसक अंगों के विभाग में बांटा गया है। जिसके आधार पर प्रश्न का उत्तर देना आसान हो जाता है। पुरुष संज्ञक अंग — — जांघ, होंठ , स्तन, अंडकोष, पैर , दांत, भुजा , हाथ, कपोल, बाल, गला , नाखून, अंगूठे , कनपटी, बगल, कंधे , कान, गुदा, सभी जोड़ यह सभी अंग पुरुष संज्ञक अंग होते हैं। स्त्री संज्ञक अंग — भौंहें, नाक कूल्हे (पेट की आजू-बाजू), पेट की रेखाएं, कमर, हाथ की रेखाएं, उंगलियां, जीभ, पिंडलियां, एड़ी, नाभि, गर्दन का पिछला भाग यह सभी अंग स्त्री संज्ञक अंग होते हैं। नपुंसक संज्ञक अंग– — मुख, गले की हंसुली, घुटने, हड्डी , पार्श्व(कोख) ह्रदय, तालु, नेत्र, लिंग , छाती, कमर का पिछला हिस्सा, सिर, ललाट यह सभी अंग नपुंसक संज्ञक अंग कहलाते हैं। यदि पुरुष संज्ञक अंग को छूकर प्रश्न करें तो उन्हें अपने प्रश्न की सिद्धि अर्थात आपको अपने कार्य में सफलता मिलेगा बोले। यदि स्त्री संज...

प्रश्न विचार

दैवज्ञ को प्रश्न का विचार करते समय निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखें। प्रश्न कर्ता की दिशा,प्रश्न करता किस स्थान में प्रश्न कर रहा है, प्रश्न कर्ता के वचन, प्रश्न के समय दिखने वाली वस्तु, प्रश्न करता द्वारा अपने या किसी दूसरे के शरीर के किसी अंग को छू तो नहीं रहा और प्रश्न लग्न का विचार अवश्य करना चाहिए। क्योंकि सर्वज्ञ परमात्मा है, चराचर जगत में होने वाले परिवर्तन व चेष्टाओं द्वारा प्रश्न करता के शुभ अशुभ फल का पूर्व संकेत प्राप्त होता है।

चर स्थिर एवं द्विस्वभाव राशियां

चर राशि ………. मेष, कर्क, तुला, और मकर राशि चर राशि कहलाती है। चर राशि लग्न में हो तो जातक चंचल स्वभाव, अस्थिर (चंचल) विचार वाला, अपि च चर क्रिया प्रधान । अतः चर राशि लग्न में हो और चर राशियों में अधिक ग्रह हो अधिक हो तो मनुष्य शीघ्र कार्य करने वाला फुर्तीला त्वरित निर्णय लेने वाला होता है। स्थिर राशियां ………….. वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि स्थिर राशियां कहलाता है। स्थिर राशि लग्न में हो तो जातक स्थिर विचार वाले होते हैं साथ ही स्थिर राशि में अधिक ग्रह हो तो विचार शिलता की अधिकता , काम को लटकाए रखने में विश्वास करने वाला, अधिक सोच-विचार करना कम क्रिया करना यह विशेषताएं होता है। स्थिर राशि के जातकों में आलस का प्रभाव अधिक रहता है। यह अपने स्थान से आसानी से नहीं हटते।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्थिर राशि वाले कोई भी कार्य जल्दबाजी में नहीं करते। द्विस्वभाव राशि ……………… मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशीयों को द्विस्वभाव राशियां कहलाता है। द्विस्वभाव राशि में जन्म लेने वाले जातक मिश्रित प्रवृत्ति के होते हैं। द्विस्वभाव राशियों में लग्न व अधिक ग्रह हो तो व्यक्ति ठिठक कर कार्य करने वाला देर स...

राशियों के दिशाएं

प्रत्येक राशि किसी न किसी दिशा के स्वामी होते हैं। इन राशियों का उपयोग यात्रा में, व्यापार के लिए कि हम किस दिशा में जाकर व्यापार करें तो हमें लाभ होगा, हम किस दिशा में घर बनाए तो हमें तरक्की होगा, हमारी किस दिशा में शादी होगा, प्रश्न कुंडली में चोरी का वस्तु किस दिशा में है जैसे आदि बातों का विचार किया जाता है। पूर्व दिशा ……….. इस दिशा के अंतर्गत मेष राशि, सिंह राशि और धनु राशि आता है। दक्षिण दिशा ………….. इस राशि के अंतर्गत वृषभ राशि, कन्या राशि और मकर राशि आता है। पश्चिम दिशा इस राशि के अंतर्गत मिथुन राशि, तुला राशि और कुंभ राशि आता है। उत्तर दिशा ………. इस राशि के अंतर्गत कर्क राशि, वृश्चिक राशि और मीन राशि आता है।

राशियों के पदार्थ

इसके अंतर्गत हम सभी 12 राशियों के अंतर्गत आने वाले पदार्थों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। मेष राशि– –इसके अंतर्गत वस्त्र, वस्त्र निर्मित पदार्थ, कपास, सूत, कागज, बारीक चावल, भेड़ों से संबंधित पदार्थ, ऊन व ऊन से निर्मित की चीजें, कशीदाकारी से युक्त बारिक ऊनी चीजें, मसूर, गेहूं, राल, गोंद, पेड़ों से प्राप्त पदार्थ, जौ, पानी से रहित प्रदेशों में पैदा होने वाली जड़ी बूटीयां, फल व सोना। वृषभ राशि– — वन्य फल, आंवला, बहेड़ा, बेर, जंगली आम, मेष राशि के वस्त्रों की अपेक्षा कुछ कीमती व बारिक वस्त्र, फूल, गेहूं, बारिक चावल बासमती , जौ, भैंस, बैल आदि। मिथुन राशि– — कंदली अर्थात मृगचर्म , चमड़े के कपड़े, केला या जलीय खाद्य पदार्थ, हरा नारियल, आइसक्रीम, अनाज , सर्दी में पैदा होने वाली चीजें( फल सब्जी आदि ) कपास, सूती वस्त्र। कर्क राशि– — मुख्य अनाज जैसे गेहूं चावल नारियल, मसाले, केला, हरी सब्जी, कोदों, घास चारा, सभी फल सभी जिमीकंद (आलू गाजर प्याज शलजम अदरक आदि), मसाले के पत्ते तेजपत्ता आदि। सिंह राशि– — भूसी वाले खाद्य पदार्थ, जौ, धान, बदाम, काजू, मखाना, भक्ष पदार्थ, जानवरों की खाले, सींग, गुड...

नमस्कार मुद्रा

विधि पद्मासन, सुखासन, खड़े होकर, वज्रासन या सूर्य नमस्कार के रूप में दोनों हाथ को आपस में मिलाकर नमस्कार की मुद्रा बनाने लें। समय नमस्कार मुद्रा को 1 घंटे सुबह और 1 घंटे शाम को करना चाहिए और धीरे-धीरे इसका समय बढ़ाते रहना चाहिए। लाभ इस मुद्रा के सिद्ध होने पर साधक दूसरे के दिल की बात भी जान जाता है। इस मुद्रा को सिद्ध योगियों की मुद्रा भी कहते है। इस मुद्रा को प्रतिदिन करने से आंखों के समस्त रोग दूर होते हैं एवं नेत्र ज्योति भी बढ़ता है। इस मुद्रा से नींद और सुस्ती के रोग ठीक होते हैं नमस्कार मुद्रा का निरंतर अभ्यास करने से मन शांत होता है। यह मुद्रा शरीर को हल्का, मन का साफ, खुश और कोमल बनाता है। इस मुद्रा के द्वारा शारीरिक और दिमागी दोनों शक्तियां बढ़ जाता है। हमारे हाथ के तंतु मष्तिष्क के तंतुओं से जुड़े हैं। हथेलियों को दबाने से या जोड़े रखने से हृदयचक्र और आज्ञाचक्र में सक्रियता आता है जिससे जागरण बढ़ता है। उक्त जागरण से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होता है। हृदय में पुष्टता आता है तथा निर्भिकता बढ़ता है। इस मुद्रा का प्रभाव हमारे समूचे भावनात्मक और वैचारिक मनोभावों पर पड...

याददाश्त में कमी आज का भाग दौड़ भरा जीवन में लाइफ़स्टाइल पूरा बदल के रह गया। जिसके वजह से याददाश्त कमजोर होने लगा है। हमारे खान पान भी इसे प्रभावित कर रहे हैं। यदि हम तला हुआ भोजन करते हैं तो यह भोजन हमारे तंत्रिकीय कोशिका को छतिग्रस्त करता है जिसके वजह से भूलने की बीमारी होता है। फास्ट फूड खाने से दिमाग निष्क्रिय हो जाता है, डोपामाइन नामक हार्मोन के उत्पादन में कमी होने लगता है और याददाश्त कमजोर होने लगता है। नशीले पदार्थों का सेवन हमारे निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। अधिक नमक खाने से सोचने समझने की शक्ति को छती पहुंचता है। अधिक मीठा खाना भी दिमाग को सुस्त कर देता है। प्रोसैस्ड फूड खाने से तंत्रिका तंत्र के कार्य प्रणाली पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। तंबाकू या सिगरेट खाने या पीने से निकोटीन नामक पदार्थ हमारे दिमाग की क्षमता को कमजोर कर देता है। ट्रांस फैट के उपयोग करने से मोटापा और दिल की बीमारी होने लगता है, जिसके फल स्वरुप मस्तिष्क की कोशिकाएं सिकुड़ने लगता है और अल्जाइमर नामक बीमारी तार्किक क्षमता को कमजोर कर देता है। उम्र अधिक होने पर भी याददाश्त में कमी आने लगता है। दवाइयों का अत्यधिक सेवन करने से भी साइड इफेक्ट के रूप में याददाश्त कमजोर होने लगता है। यदि नींद की कमी हो जाए तब भी मनुष्य की याददाश्त कमजोर होने लग जाता है। यदि सिर में गहरी चोट आ जाए तो भी याददाश्त कमजोर हो जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि याददाश्त के कमजोर होने को ज्योतिष दृष्टिकोण से देखें तो पाते हैं कि जन्म कुंडली का तीसरा और पांचवा भाव से हम याददाश्त का विचार करते हैं। तीसरे भाव का स्वामी बुध और पांचवें भाव का स्वामी सूर्य साथ ही नैसर्गिक रूप से बुध और गुरु ग्रह कमजोर हो या पाप पीड़ित हो तो याददाश्त कमजोर होने लगता है। यदि जन्म कुंडली के तीसरे और पांचवें भाव का स्वामी 6, 8 ,12 वे भाव में गया हो और पापी ग्रह से पीड़ित हो तो याददाश्त कमजोर होता है। यदि बुध, गुरु और सूर्य 6, 8 ,12 वे भाव में हो पाप पीड़ित हो तब भी याददाश्त कमजोर होता है। बुध, गुरु और सूर्य केंद्र त्रिकोण में हो और उन पर 6, 8, 12वे भाव के स्वामी का प्रभाव यूति, दृष्टि या किसी और प्रकार से हो साथ ही पाप ग्रहों का भी प्रभाव हो तो भी याददाश्त कमजोर होता है। हस्तरेखा के अनुसार 1, शुक्र पर्वत पर तिल हो, शुक्र पर्वत पर कटी फटी देखा हो एवं यह पर्वत दबा हुआ हो तो याददाश्त कमजोर होता है। 2, जीवन रेखा अस्थिर हो अर्थात कहीं मोटा तो कहीं पतला, द्विप के चिन्ह हो, क्राश के चिन्ह हो, मंगल पर्वत से निकलकर रेखाएं काटती हो जीवन रेखा को और जीवन रेखा से कुछ रेखा निकलकर नीचे की ओर जा रहा हो तो याददाश्त कमजोर होता है। 3, निम्न मंगल से निकली मस्तिष्क रेखा हो, मस्तिष्क रेखा को कई रेखाएं काटती हो, हाथ में सिर्फ तीन ही रखा हो, अधूरी मस्तिष्क रेखा हो तब भी जातक का याददाश्त कमजोर होता है। उपाय आयुर्वेद के अनुसार सात दाने बदाम गिरी सायंकाल किसी कांच के बर्तन में जल में भिगो दें। प्रातः काल उनका लाल छिलका उतारकर बारीक पीस लें। यदि आंखें कमजोर हो तो साथ ही चार काली मिर्च पीस लें। इसे उबलते हुए 250 ग्राम दूध में मिलाएं। जब तीन उफान आ जाए तो नीचे उतारकर एक चम्मच देसी घी और दो चम्मच चीनी डालकर ठंडा करें। पीने लायक गर्म रह जाने पर इसे आवश्यकतानुसार 15 दिन से 40 दिन तक ले। भक्ति और शक्ति की कमजोरी दूर करने के लिए अति उत्तम होने के साथ वीर्य बलवर्धक है। विशेष -यह बादाम का दूध सर्दियों में विशेष लाभप्रद है। दिमाग की मेहनत करने वाले एवं विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी होता है। प्रातः खाली पेट इस दूध को लेने के बाद 2 घंटे तक कुछ ना खाए पिए। उपरोक्त बादाम का दूध तीन-चार दिन पीने से आधे सिर के दर्द में आराम होता है। बदाम को चंदन की तरह रगड़ने के समान बारिक तम कृष्णा या खूब चबाकर मलाई की तरफ को बल बनाकर सेवन करना आवश्यक है। इससे बदाम आसानी से हजम हो जाने पर पूरा लाभ मिलता है और कब बदाम से भी अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। स्वदेशी चिकित्सा सार अध्याय 1 पृष्ठ क्रमांक 1 । याददाश्त की कमजोरी को योग हस्त मुद्रा से भी सही किया जा सकता है। इसके लिए प्रतिदिन सुख आसन पद्मासन या वज्रासन में बैठकर दोनों हाथ को फैलाकर घुटने पर रख ले इस अवस्था में हाथ का खुला हुआ हिस्सा आसमान की ओर हो। अब अंगूठे के अग्रभाग से तर्जनी उंगली को मिला दे। यह क्रिया दोनों हाथों में करें। इसे करते समय रीढ़ की हड्डी सीधी हो और सामान्य रूप से प्राणायाम करते रहे। इस मुद्रा को ज्ञान मुद्रा कहते हैं।

अध्यात्मिक उपाय अपने पूजन स्थल गुरु गद्दी या अपने इष्ट के समीप जहां आप ध्यान सुमिरन करते हैं । अपने याददाश्त की वृद्धि के लिए सत्पुरुष से प्रार्थना करें। फिर एक शंख ले उसे बजाए इसके पश्चात शंख में जल भर दे और गुरु गद्दी के समीप रख दें। दूसरे दिन पुनः गुरु गद्दी के सामने अपने इष्ट का ध्यान सुमिरन प्रार्थना कर शंख का जल किसी पात्र में इकट्ठा करने इसके बाद शंख को बजाएं। अब पुनः शंख में जल भर कर गुरु गद्दी के समीप रख दे। और जो शंख का जल इकट्ठा किए हैं उसे पी जाए। ध्यान रखें पीते समय सुखासन में बैठे हुए रहे। आपका चेहरा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो। इसके पश्चात अपने माता पिता, गुरुजनों का या घर के बड़े बुजुर्गों के चरण छू कर आशीर्वाद ले।