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Showing posts from September, 2020

बहु संतति योग

"यदि पंचम स्थान में शुक्र की राशि या शुक का नवांश हो या पंचम भाव को शुक्र देखता हो तो यह योग बनता है।"    इस सूत्र का पालन मिथुन लग्न और मकर लग्न के जन्म कुंडली में होगा। क्योंकि मिथुन लग्न से पंचम भाव मैं तुला राशि पड़ता है जबकि मकर लग्न से पंचम भाव में वृषभ राशि पड़ता है। वृषभ राशि और तुला राशि का स्वामी शुक्र होता है। शुक्र ग्रह को वैदिक ज्योतिष में सप्तम दृष्टि प्रदान किया गया है। अतः पंचम भाव को शुक्र को देखने के लिए एकादश भाव में स्थित होना पड़ेगा। एकादश भाव वृद्धि स्थान है। अतः पंचमेश जब एकादश भाव में बैठ कर पंचम भाव को देखता  है तो संतान की वृद्धि करता है। एक बात का विशेष ख्याल रखें की पंचम भाव पर किसी शत्रु ग्रह की दृष्टि ना हो और ना ही पंचमेश पर किसी शत्रु ग्रह की युति , दृष्टि  हो ना ही किसी प्रकार का पाप प्रभाव ना हो तभी आयोग पूर्णता फलित हो पाएगा। इस योग में पुत्र संतान होगा की पुत्री संतान होगा इसका कोई शर्त नहीं है ऐसे जातकों का बहुत से संतान होते हैं परंतु आजकल के समय में अधिक संतान लेने का रिवाज अब खत्म हो रहा है। साथ ही सरकार भी हम दो हमारे दो जैसे ...

मृतवत्सा योग

  पंचमेश षष्ठ भाव में गुरू व सूर्य से युक्त हो तो जातक की पत्नी का गर्भ गिरता रहता है। अथवा मृत संतान पैदा होती है। अत: इसे मृतवत्सा योग कहते है। पंचमेश संतान भाव का स्वामी होता है , इससे संतान का विचार करते है । काल पुरूष की कुण्डली में पंचम भाव में सिंह राशि आता है इसका स्वामी सूर्य हैं । अतः सूर्य काल पुरूष कुण्डली के पंचम भाव का नैसर्गिक कारक , सूर्य आत्मा है ।  गुरू पंचम भाव का नैसर्गिक कारक हैं , संतान का नैसर्गिक कारक है , गुरू जीव है । छठा भाव रोग का होता है  , सूर्य के निकट तीन अंश तक गुरू और पंचमेंश हो तो विशेष रूप से अस्त हो जाते है ।  अतः छठे भाव में बैठकर सप्तम पूर्ण दृष्टि से द्वादश भाव को देखता है । द्वादश भाव पत्नी का छठा भाव है । छठा से दुसरा भाव गर्भाशय का है  ।

शुगर रोग के वास्तु शास्त्री कारण

मधुमेह रोग ............... 1, दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ,जल बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढाते है। 2, दक्षिण-पश्चिम कोण में हरियाली बगीचा या छोटे छोटे पोधे भी शुगर का कारण है। 3, घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम कोना बड़ा हुआ है तब भी शुगर आक्रमण करेगी। 4, यदि दक्षिण-पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड भी हुआ है तो समझो मधुमेह का द्वार खुल गया। 5, दक्षिण-पश्चिम भाग घर या वन की ऊँचाई से सबसे नीचा है मधुमेह बढेगी. इसलिए यह भाग सबसे ऊँचा रखे। 6, दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना भी शुगर को निमंत्रण देना है। 7, ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से जीना सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा हें अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेगे.. मधुमेह के उपचार के लिए वास्तु नियम— 1, अपने भूखंड और भवन के बीच के स्थान में कोई स्टोर, लोहे का जाल या बेकार का सामान नही होना चाहिए, अपने घर क़ी उत्तर-पूर्व दिशा में नीले फूल वाला पौधा लगाये ।...

राहु की मायाजाल

राहू आपके ससुराल का प्रतिनिधित्व करता है , यदि आप का राहु अच्छा हुआ तो ससुराल में मान सम्मान मिलता है और यदि बुरा हुआ तो अपमान मिलता है, ससुराल में किसी से नहीं बनता । राहु जातक को अत्यंत चलाक, चतुर और धोखा देने वाला व्यक्तित बनाता है। राहू वह धमकी है जिससे आपको डर लगता है | जेल में बंद कैदी भी राहु ही है | सफाई कर्मचारी भी राहु ही है | हमारे घरों में जो स्टील के बर्तन का उपयोग होता है , वह स्टील के बर्तन भी राहू के अधिकार क्षेत्र में आते हैं | राहु से हाथी का विचार किया जाता है अतः हाथी दान्त की बनी सभी वस्तुओं पर राहू का अधिकार है | राहू ऐसा मित्र है जो पीठ पीछे हमारी निंदा करता है और वह प्रत्येक व्यक्ति राहु है जो पीठ पीछे निंदा करता है। गोद लिया हुआ संतान  राहू की देन  है | धुए से संबंधित नशे की वस्तुओं पर राहू का अधिकार हैं | शरीर में जोड़ के दर्द है और उसकी दवाई राहू है | राहू मन का वह क्रोध है जो कई साल के बाद भी शांत नहीं होता है, न लिया हुआ बदला भी राहू है | शेयर मार्केट मैं पैसा लगाया और शेयर के गिरावट का कारण गिरावट राहू है, यदि शेयर में उछाल है तो यह केतु के कारण ह...

क्या भगत सिंह नास्तिक थे

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भगत सिंह जी को बहुत से लेखक नास्तिक बतलाते हैं। यदि वे नास्तिक थे तो निम्न वाक्य क्यों लिखें । कहीं भगत सिंह जी को समझने में गलती तो नहीं हुआ है। भगत सिंह जी गरीबों का शोषण करना पूंजीपतियों द्वारा पसंद नहीं करते थे। भगत सिंह यह जरूर लिखते हैं कि अंतिम समय में मैं यदि ईश्वर को याद किया तो तुम लोग यह समझोगे कि जिसकी खिलाफ मैंने सारा जीवन लिखा आज अंतिम समय में उनके डर से उनको याद कर रहा हूं । परंतु भगतसिंह द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल में लिखी गई 404 पृष्ठ की डायरी के कुछ पन्नों पर लिखी उर्दू पंक्तियों से भी यह अहसास होता है कि वे नास्तिक नहीं थे।  डायरी के पेज नंबर 124 पर भगतसिंह ने लिखा है- दिल दे तो इस मिजाज का परवरदिगार दे, जो गम की घड़ी को भी खुशी से गुलजार कर दे। इसी पेज पर उन्होंने यह भी लिखा है- छेड़ ना फरिश्ते तू जिक्र-ए-गम, क्यों याद दिलाते हो भूला हुआ अफसाना। परिवार के पास रखी इस डायरी का अब प्रकाशन हो चुका है, ‍जिसे दिवंगत बाबरसिंह और इतिहासकार केसी यादव ने संपादित किया है। डायरी के एक तरफ भगतसिंह की मूल लिखावट है और दूसरी तरफ अँगरेजी में उसकी सरल व्याख्या। इस व्याख्...

विशाखा नक्षत्र के व्यवसाय

विशाखा नक्षत्र का विस्तार तुला राशि में 20 अंश से प्रारंभ होता है और वृश्चिक राशि में 3 अंश 20 कला तक रहता है। इस नक्षत्र में चार चरण होता है । प्रथम चरण अक्षर --"ती" , प्रथम चरण स्वामी ग्रह -- मंगल । द्वितीय चरण अक्षर -- " तू " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- शुक्र । तृतीय चरण अक्षर -- "ते " , तृतीय चरण स्वामी ग्रह -- बुध। चतुर्थ चरण अक्षर --" तो " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह --चंद्र । इस नक्षत्र के प्रथम तीन चरण तुला राशि में आते है जिसका स्वामी ग्रह शुक्र है । जबकि चतुर्थ चरण वृश्चिक राशि में आता है , जिसका स्वामी मंगल है । इस नक्षत्र के अधिकार में निम्नलिखित व्यवसाय आते हैं :- मदिरा उद्योग, मदिरालय, फैशन, मॉडल, मंच कलाकार, रेडियो कलाकार, दूरदर्शन कलाकार, श्रमिक, राजनैतिक दल के नेता तथा अधिकारी, खिलाड़ी, विशिष्ट धर्म अथवा संप्रदाय के कट्टरपंथी अनुयायी, धर्म के ठेकेदार, आंदोलन चलाने वाले अथवा विरोध प्रदर्शन आयोजक, सैनिक, नर्तक, समालोचक, संगठित अपराध के नेता आदि इस नक्षत्र के अधिकार में आते हैं. कस्टम अधिकारी, पुलिसकर्मी, सुरक्षाकर्मी, अंगरक्षक, देह व...

नारी स्वतंत्रता के नाम पर

आजकल नारी स्वतंत्रता, स्वाभिमान, आत्मसम्मान की बात करते हुए नारी के फूहड़ चित्र, असभ्य लेखो का प्रयोग किया जाता है, नारी का देह तो प्रचार सामग्री हो गया है , जिसका सहारा लेकर अपने उत्पाद  ऊंचे दाम पर बेचा जा सकता है, विचारों को प्रचारित किया जाता है। बजार वादी संस्कृति नारी को दोहन कर रही है। ताजुब तो तब होता है , जब नारी भी अपने शरीर के साथ , असभ्य चित्र , असभ्य लेखों के साथ अभियक्त अपने विचारों का करती है और नाम देती है नारी सम्मान के लिए यह करना आवश्य है।  सभ्य तरीके से नारी के साहसिक कार्य , गौरवशाली पक्ष  को सामने लाकर भी तो प्रोत्साहित किया जा सकता है जिससे आत्मसम्मान की भावना जागृत हो। यदि सच में नारी को सम्मान देना चाहते है तो अपने दैनिक जीवन में उन्हें अपमानित न करो । अपने घरों में अपने शब्दों को सुधारो , अपने बच्चो के सामने किसी प्रकार का अपशब्द न बोलो उनके लिए । तभी तो बदलाव आयेगा ।

आकर्षण के वैज्ञानिक कारण

हम सभी अपने जीवन में यह महसूस करते हैं कि अनजाने चेहरों या परिचितों के प्रति आकर्षित हो जाते हैं । कई बात देखने में आता है कि इंसान दिखने में सुंदर हो ना  हो, उसमे हज़ारो कमी और गंदी आदत होने के बावजूद भी उसके साथ गहरा रिश्ता और लगाव बना रहता है, जो कि उस व्यक्ति से दूर हो जाने के बाद भी  खत्म नही होता है । किसी अजनबी व्यक्ति  से मिलने या दूर से देखते ही प्रेम और आकर्षण होने लगता है । और हम उससे मिल कर संबंध को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास करने लगते हैं। जिसके फलस्वरूप उस अनजान इंसान से अजीब सा लगाव , अपनापन महसूस होने लगता  है । उसको बिना मिले, बिना देखे कोई काम करने का मन नहीं करता , दिन भर उसके साथ रहने का मन होता है क्योंकि उसके साथ ख़ुशी महसूस होती है । क्या आपने कभी सोचा है यह सारी क्रियांएँ अचानक शुरू होती है और बढ़ने लगती है ।  क्या आपने कभी सोचा है प्यार और आकर्षण का कारण क्या होते है ? 1, हमारे शरीर में कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो कुछ लोगो को देखकर अपने आप शरीर में फैलने लगते हैं, जिसके कारण प्रेम और आकर्षण का एहसास होने लगता है . इस रसायन को न्यूरोकेमिकल कहते ...

स्वाति नक्षत्र के व्यवसाय

इस नक्षत्र का विस्तार तुला राशि में 6 अंश 40 कला  से 20 अंश तक रहता है ।इस नक्षत्र में चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर --"रू" , प्रथम चरण स्वामी ग्रह -- गुरु । द्वितीय चरण अक्षर -- " रे " द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- शनि। तृतीय चरण अक्षर -- "ते " , तृतीय चरण स्वामी ग्रह -- शनि। चतुर्थ चरण अक्षर --" ता " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह -- गु ।  स्वाति नक्षत्र राहु का नक्षत्र माना गया है और तुला राशि को बनिक राशि भी कहा गया है । तुला राशि का स्वामी ग्रह शुक है । इसलिए इस नक्षत्र के अन्तर्गत दुकानदार, व्यापारी आदि आते हैं । इसके अलावा कुश्ती लड़ने वाले पहलवान, हर तरह के खेल-कूद, श्वास नियंत्रण पर आदहरित विभिन्न कार्य, गाना, मुँह से बजने वाले वाद्य यंत्र बजाना, खोजी अन्वेषक, प्रोद्यौगिकी विशेषज्ञ, स्वावलंबी उद्यमी, सरकारी सेवा, विमान उद्योग, परिवहन सेवा, समाचार वाचक, मंच संचालक, कंप्यूटर व सोफ्टवेयर, शीघ्र निर्णय पर आधारित व्यवसाय, साफ-सफाई व संरक्षण के कार्य आदि इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। पतंग बनाना व उड़ाना, गुब्बारे से उड़ना, आकाश में करतब...

चित्रा नक्षत्र के व्यवसाय

 इस नक्षत्र का विस्तार कन्या राशि में 23 अंश 20 कला से आरंभ होकर तुला राशि में 6 अंश 40 कला तक रहता है ।इस नक्षत्र में चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर -- " पे " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह  -- सूर्य । द्वितीय चरण अक्षर -- " पो " द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- बुध । तृतीय चरण अक्षर -- "रा " तृतीय चरण स्वामी ग्रह -- शुक्र । चतुर्थ चरण अक्षर --" री " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह -- मंगल । चित्रा नक्षत्र का विस्तार दो राशियों कन्या व तुला तक रहता है  । कन्या राशि का स्वामी ग्रह बुध है ।  तुला राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है । इसलिए आजीविका के संबंध में भी इन दोनों राशियों के गुणों का समावेश देखा जा सकता है. चित्रा नक्षत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवसाय आते हैं :- सभी प्रकार के शिल्पी तथा दस्तकार, मरम्मत करने वाले, इस नक्षत्र में आते हैं। डिजायनर अथवा फैशन डिजाईनर, मॉडल, सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग, फोटोग्राफर, ग्राफिक कला, पेंटर, चित्रकार, गीत-संगीत रचना, वाद्य कलाकार, आंतरिक रुप सज्जा, आभूषण निर्माता, वास्तुविद, वास्तु विशेषज्ञ, वक्ता, उद्घोषक, मंच संचालक, मंच प्रबं...

डॉक्टर बी एस जोशी जीवन परिचय

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सतनामी समाज के गौरव #डॉ_बी_एस_जोशी ( 26 सितम्बर, जन्मदिन पर विशेष)        *डॉ बी एस जोशी जी*  उर्फ़ *डॉ बिश्वम्भर सिंह जोशी जी* सतनामी समाज के महान समाज सेवक, सुधारक और सक्रिय सामाजिक  कार्यकर्ताओं में से एक थे।। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी, विद्वान्, शिक्षाविद,  लेखक, चिंतक , कर्मठ समाज संगठक थे।।            *डॉ बी एस जोशी जी*  का जन्म 26 सितम्बर 1942 को ग्राम सांकरी, गुंडरदेही , जिला बालोद, छ ग में हुआ था।। उनके पिता श्री एम- सिंह जोशी जी और माताजी श्रीमती फुलेश्वरी देवी जोशी जी थीं।।  उनके  चार भाई और दो बहनें थीं।। उन्हें परिवारिक संस्कार और माहौल ऐसे मिला कि गरीबी, पिछड़ापन , असुविधाओं के बावजूद भी  सभी भाई बहन उच्च शिक्षित होकर बड़े पदों पर पदस्थ होकर शासकीय सेवाओं में उच्च प्रतिमान स्थापित किये।। यही कारण है कि आज उनके बाद उनके परिवार में दूसरी और तीसरी पीढ़ी के सदस्य भी उच्च शिक्षित और बड़े शासकीय सेवाओं में सेवारत हैं।।          उनका प्रारम्भिक शिक्षा समीपस्थ ग्राम...

सामाजिक रूढ़िवाद को तोड़ती हुई महिलाएं

आज के समय में महिलाओं के जीवन में सामाजिक रुप से बहुत बदलाव आया है। इससे महिला सशक्त हुई है। अपने आप को पहचानने लगी है, अपना पहचान बनाना चाहती है , अपने वजूद को ढूंढती है , अपना सम्मान बरकरार रखना चाहती हैं। यह बदलाव अच्छा भी है । क्योंकि स्त्री और पुरुष दोनों ही समाज के अभिन्न अंग है। दोनों को मिलकर ही चलना है। तभी निष्पक्ष एवं सशक्त समाज बनाया जा सकता है । जिससे किसी भी प्रकार का भेदभाव ना रहे । जिसके  कारण सामाजिक व्यवस्था में टूटने लगा है।लेकिन समाजिक व्यवस्था टुटने का कोई एक निश्चित कारण तो नहीं दिया जा सकता । इनका समाजशास्त्री अनेक कारण है ।  जैसे  १, शिक्षा । २, मनुष्य की स्वभाविक प्रवृती पुराने नियम में बदलाव । ३, आधुनिकी करण । ४, पश्चात्य संस्कृती के प्रति आकर्षण । ५, काम करने के लिए घर से बाहर निकलना । ६, शिक्षा प्राप्त करने के लिए घर से बाहर निकलना । ७, घर से बाहर दोस्ताना माहोल मिलना । ८, घुघट प्रथा को बंधन मानना और बदलाव के लिए छटपटाता मन । ९ फैसन का प्रभाव । १० , और भी अनेक समाज शास्त्री कारण हो सकते है ।

दिल को छू जाने वाली जादू भरी बातें

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आज के इस व्यस्त जीवन में दो पल खुशी के अपनेे हमसफर के साथ जी लेने कि कला जीसे आता है, उसका वैवाहिक जीवन का गुलिस्ता फूलों की खुशबुओं से महकता रहता है । अकसर आपने देेखा होगा पुरूष ही महिला की तारीफ करता है । अब थोडा रीवाज बदले और अपने पति का तारीफ कर के तो देखे  , और आप पायेंगी कैसे जादु के समान मिश्री का स्वाद आपके वैवाहिक जीवन में घुल जायेगी । मगर जो भी कहे दिल से कहे किसी भी प्रकार की बनावटी पन न हो । १, उनसे कहें तुम्हारे बिना मैं अधूरी हूँ , २, अच्छा लगता हैं साथ आपका , ३, लाजवाब बॉडी हैं , ४, कपडों की तारीफ करे , ५, काम की तारीफ करे , ६, लव मेकिंग एवं नेचर कूल हैं , ७, सलाह की तारीफ करे , ८, शिष्टता की तारीफ करे , ९, आपकी त्वचा से उम्र का पता ही नहीं चलता , १०, आपमें टैलेंट कुट-कुट कर भरा है , ११, आप भरोसे के काबिल हैं ।  आदि ऐसी बाते जो उनके दिल को छु जाये ।

हस्त नक्षत्र के व्यवसाय

कन्या राशि में 10 अंश से 23 अंश 20 कला तक रहता है। इस नक्षत्र के चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर -- " पू" ,     प्रथम चरण स्वामी ग्रह  -- मंगल । द्वितीय चरण अक्षर -- " ष ", द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- शुक्र । तृतीय चरण अक्षर -- "ण" , तृतीय चरण स्वामी ग्रह  -- बुध । चतुर्थ चरण अक्षर -- "ठ" , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह  -- चन्द्रमा । कन्या राशि का स्वामी ग्रह बुध है ।  इस के अधिकार क्षेत्र में निम्नलिखित व्यवसाय आते हैं :- हस्त नक्षत्र का स्वामी चंद्रमा है तो कला से संबंधित व्यवसाय इस नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं जैसे शिल्पी अथवा दस्तकार, सौन्दर्य प्रसाधन निर्माता, आन्तरिक गृह सज्जा, हाथ की कोमलता व लचक परक सभी कार्य इस नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं । मिस्त्री, कागज को तोड़-मरोड़कर उसे आकृति देने वाले कुशल विशेषज्ञ, चित्रकार अथवा अन्य कारीगर, पोटरी व शिरोमिक उद्योग, जेवर बनाने वाले जौहरी अथवा आभूषण व्यवसाय आदि इस नक्षत्र के अंदर आते हैं. श्रमिक, जिमनास्टिक, सर्कस के कलाकार, हास्य कलाकार, एकरोबैट, दैनिक उपयोग की वस्तुओं के उत्पादक, अन्वेषक, परी कथा लेखक, ...

खाली पेट पानी पीना

Pankaj Kumar‎ -लेखक  सुबह सुबह खाली पेट पानी पीते हैं तो यह पोस्ट जरुर पढ़ें कुछ दिनों पहले मेरे एक मित्र से बात हुई , झिझकते हुए उन्होंने बताया की पिछले कुछ दिनों से इरेक्शन बहुत कम हो गया है, अपनी समझ से कुछ दवाएं चूर्ण आदि लिए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ है , मेरी आदत है एक एक चीज डिटेल के साथ पूछने की , उन्होंने काफी कुछ बताया भी लेकिन कोई सूत्र हाथ नहीं लगा की कारण क्या है फिर उनसे सुबह से लेकर रात्रिपर्यंत तक की सब गतिविधियाँ पूछी तो पता लगा उन्होंने गर्मियों के मौसम से कब्ज की समस्या के लिए सुबह सुबह पेट भर कर पानी पीना शुरू किया है , इसे शास्त्रों में उषापान के नाम से जाना जाता है, वो लखनऊ में जॉब करते हैं और कानपुर से लखनऊ प्रतिदिन लोकल ट्रेन से अप डाउन करना होता है, लगभग दो घंटे का समय पहुचने में लगता है, गर्मियों में सब ठीक था लेकिन बारिश में हुआ यह की ठन्डे मौसम में पेशाब का फ्लो बढ़ गया, यह स्वाभाविक भी है. लेकिन समस्या यह हुई की उस लोकल ट्रेन में कोई शौचालय नहीं होता और उनको लखनऊ तक पेशाब को रोके रहना होता था. पेशाब रोकने का परिणाम यह हुआ की उनकी किडनी , यूरिनरी ब्लैडर ,...

मासिक धर्म के रोग और ज्योतिष कारण

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कुछ लड़कियों को सोलह वर्ष की उम्र तक मासिक धर्म नहीं होता।  हो सकता है उसके शरीर के अंदर ही कहीं यह खून इकट्ठा हो रहा हो। यह भी हो सकता है कि उसके जनन-अंगों या हार्मोन- ग्रंथियों में कुछ दोष हो। कुछ लड़कियों में माहवारी जल्दी आरंभ हो जाती है, कभी-कभी तो केवल 9-10 साल की उम्र में ही। इससे कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं पैदा होती लेकिन इस उम्र की लड़कियों को माहवारी की पूरी जानकारी देना जरुरी है। उसे डिम्ब उत्सर्ग और लिग उत्पीडन होने पर गर्भ ठहरने के खतरे से अवगत करा देना चाहिए।  खून की कमी से बचाने के लिए भी संतुलित भोजन जरुरी है।  औसत माहवारी चक्र 28 से 29 दिन तक का होता है। इसकी गणना माहवारी शुरु होने के पहले दिन से अगली माहवारी शुरु होने  से एक दिन पहले से की जाती है। कुछ महिलाओं का चक्र काफी छोटा होता है, जो केवल 21 दिनों तक चलता है। वहीं, कुछ का माहवारी चक्र 35 दिनों तक लंबा भी होता है।हर महीने मासिक चक्र की अवधि का घटना या बढ़ना भी आम बात है।एक माहवारी से दूसरी माहवारी के बीच योनि से दूधिया सफेद स्त्राव होना सामान्य है। ...

कैसा जीवन साथी या प्यार चुनेंगे आप

 आपके जन्म के समय आपके माता-पिता की उम्र तय करती है कि आपका अपने साथी को चुनने का पैमाना कैसा होगा? आप किसी ऐसे साथी को चुनना पसंद करेंगे जो कि कम जवान दिखता हो या फिर जो अधिक जवान दिखता हो? इस मामले में वैज्ञानिकों का कहना है ‍कि जो पुरुष या महिलाएं तीस वर्ष से अधिक उम्र के दम्पतियों के घर पैदा होते हैं वे ‍अधिक जवान दिखने वाले चेहरों से कम प्रभावित होते हैं। लेकिन, जन्म के समय जिन दम्पत्तियों की उम्र कम होती है और दोनों जवान या बहुत जवान होते हैं तो ऐसे समय पर पैदा हुए बच्चों में युवाओं और युवा दिखने वाले लोगों के प्रति आकर्षण होता है। 2 ,आपका चयन आपके माता-पिता के चेहरों से प्रभावित होता है। सेंट एंड्रयूज के एक विश्वविद्यालय में शोध से इस बात की पुष्ठि हुई है कि हर लड़की अपने साथी में अपने पिता का अक्स देखना चाहती है तो हर लड़का अपनी साथी में अपनी मां जैसा चेहरा-मोहरा और गुण खोजता है। लोग उन लोगों को अपना साथी बनाना ज्यादा पसंद करते हैं जिनके बाल और आंखों के रंग उनके पालकों जैसे होते हैं। ✍ राजेश्वर आदिले

सूरूज बाई खांडे

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अनैतिक संबंध और राहु

राहु प्रेम संबंधों के पनपने के लिए उत्तरदायी होता है। प्रेम संबंध भी उस प्रकार के जिसमें दो व्यक्ति समाज से नजरें बचाकर एक-दूसरे से मिलते हैं राहु उनके लिए उत्तरदायी होता है। राहु रहस्य का कारक ग्रह है और तमाम रहस्य की परतें राहु की ही देन होती हैं। राहु झूठ का वह रूप है जो झूठ होते हुए भी सच जैसे प्रतीत होता है। जो प्रेम संबंध असत्य की डोर से बंधे होते हैं या जो संबंध दिखावे के लिए होते हैं वे राहु के ही बनावटी सत्य हैं। राहु व्यक्ति को झूठ बोलना सिखाता है। बातें छिपाना, बात बदलना, राहु एकतरफा प्रेम का वह रूप है जिसमें व्यक्ति कभी अपने प्यार के सामने नहीं आता और फिर भी चुपचाप सब कुछ देखता रह जाता है, क्योंकि परिस्थितियां, ग्रह गोचर अनुकूल नहीं हैं बलवान नहीं हैं। राहु वह लालच है जिसमें व्यक्ति को कुछ अच्छा-बुरा दिखाई नहीं देता केवल अपना स्वार्थ ही दिखाई देता है। मांस मदिरा का सेवन, धुवे का नशा जैसे गांजा सिगरेट , बुरी लत, चालाकी और क्रूरता, अचानक आने वाला गुस्सा, पीठ पीछे की बुराई यह सब राहु की विशेषताएं हैं।  आपको क्या लगता है ?

ग्रहों के निवास स्थान

ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह के निवास स्थान के बारे में वर्णन किया गया है जो कि निम्न है सूर्य सूर्य का निवास स्थान देवस्थान को माना गया है अर्थात मंदिर या इनके निकटवर्ती स्थान , तीर्थ स्थान आदि। चंद्रमा चंद्रमा का निवास स्थान जल स्थान को माना गया है। जैसे कि नदी , समुद्र , तलाब , घर में पानी रखने का स्थान आदि। मंगल मंगल का निवास स्थान अग्नि स्थान को माना गया है ।जैसे कि रसोई,  श्मशान, यज्ञ भूमि , बौद्ध विहार , घर को गर्म रखने के लिए अग्नि जलाने का स्थान,  विस्फोटक पदार्थ का स्थान आदि। बुध बुध का निवास स्थान विहार भूमि को माना गया है जैसे कि  उद्यान , क्लब , पिकनिक स्थान , भ्रमण योग्य स्थान , मनोरंजन के स्थान आदि। गुरु गुरु का निवासी स्थान कोषागार है। जैसे कि बैंक , खजाना , धन रखने का स्थान आदि। शुक्र शुक्र का निवास स्थान शयनकक्ष है। जैसे कि बैडरूम , आराम करने की जगह आदि। शनि शनि का निवास स्थान उत्कर स्थान है। जैसे कि कूड़ा कबाड़ , अवशेष रखने का स्थान आदि। राहु केतु राहु केतु का निवास स्थान घर कब होने वाला हिस्सा है। या किसी भी स्थान का कोना वाला हिस्सा । इसका उपयोग किसी भी ...

ग्रहों के ऋतु

वर्ष का वह छोटा कालखंड है जिसमें मौसम की दशाएँ एक विशेष प्रकार की होती हैं। यह कालखंड एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करता है जिनके दौरान पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के परिणामस्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशाएँ एक चक्रीय रूप में बदलती हैं। मौसम की दशाओं में वर्ष के दौरान इस चक्रीय बदलाव का प्रभाव पारितंत्र पर पड़ता है और इस प्रकार पारितंत्रीय ऋतुएँ निर्मित होती हैं। ऋतुएँ प्राकृतिक अवस्थाओं के अनुसार वर्ष के विभाग हैं। भारत में मोटे हिसाब से तीन ऋतुएँ मानी जाती हैं- शरद ग्रीष्म और वर्षा जिसमें प्रत्येक ऋतु चार महीने की होती है परंतु प्राचीन काल में यहाँ छह ऋतुएँ मानी जाती थींं  बसंत ,ग्रीष्म, वर्षाा , शरद , हेमंत  और शिशिर। प्रत्येक ऋतु दो महीने की होती है। ऋतु साैर अाैर चन्द्र दाे प्रकार के हाेते हैं। धार्मिक कार्य में चन्द्र ऋतुएँ ली जाती हैं। जिन महीनों में सबसे अधिक पानी बरसता है वे वर्षा ऋतु के महीने हैं; नाम के अनुसार सावन भादो के महीने वर्षा ऋतु के हैं, परंतु...

राहु

राहु एक मायावी ग्रह है। राहु भ्रम भी है , राहु धोखा , छल कपट भी कराता है। राहु उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ भी है। राहु रिसर्च भी कराता है । राहु गुप्त विद्या भी देता है । राहु कन्या राशि में स्वग्रही है, तो मिथुन राशि में उच्च का है। राहु जिस ग्रह के साथ बैठता है उसके समान फल देता है । जिस भाव में बैठता है उस भाव का भी फल देता है। और उस भाव के स्वामी का भी फल देता है। राहु की कोई दृष्टि नहीं है। लेकिन जिस भाव में बैठा है उस भाव के स्वामी के दृष्टि को भी अपना लेता है। जिस ग्रह के साथ यूती कर रहा है उस ग्रह के भी दृष्टि को अपना लेता है। साथ ही यदि मान लीजिए राहु तुला राशि में है जिसका स्वामी शुक्र है शुक्र की दूसरी राशि वृषभ राशि है और वृषभ राशि में गुरु बैठा हुआ है। तो राहु यहां गुरु का भी फल देगा । अर्थात राहु यहां धर्मात्मा हो जाएगा ज्ञान की बात बोलेगा और सत्य के मार्ग पर चलेगा। और गुरु की दृष्टि को भी अपना लेगा। राहु यदि केंद्र त्रिकोण के स्वामी के साथ हुआ तो योगकारक ग्रह भी  हो जाता है। राहु जिस भाव में है और उस भाव का स्वामी यदि बली है और शुभ ग्रह है तो अत्यंत ही उत्तम फल देगा। यदि...

प्रेम की उत्पत्ति के ज्योतिष कारण

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प्रथम भाव एवं प्रथम भाव के स्वामी, चतुर्थ भाव एवं चतुर्थ भाव के स्वामी , पंचम भाव एवं पंचम भाव का स्वामी, सप्तम भाव एवं सप्तम भाव का स्वामी और नवम भाव एवं नवम भाव का स्वामी के महादशा , अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा  मैं प्रेम के बीज उत्पन्न होते हैं। चंद्रमा मन का कारक है जो कि निश्छल प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है। जैसे की मां की ममता। शुक्र प्रेम एवम् वासना का कारक जो कि प्रेम संबंध बनाने के लिए प्रेरित करता है। जैसे कि पति - पत्नी , प्रेमी - प्रेमिका बुध बुद्धि का कारक हैं जोकि प्रेम संबंध उत्पन्न करने का काम करते हैं। इन की महादशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में प्रेम संबंध बनने के चांस रहते हैं। इन ग्रहों , भाव के स्वामी का आपसी संबंध यूती, दृष्टि राशि परिवर्तन  या किसी अन्य प्रकार से बने तो तो प्रेम संबंध उत्पन्न होता है। मंगल , शनि , राहु अन्यत्र (नजायज) प्रेम संबंध बनाने के लिए उकसाते है ।  मंगल , शनि , राहु का चंद्र‌, शुक्र , बुध के साथ संबंध बने या पंचम , नवम  , सप्तम भाव में स्थित हो या पंचमेश सप्तमेश नवमेश के साथ हो तो एक से अधिक प्रेम संबंध की ओर ले जाते हैं। यद...

उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र से संबंधित व्यवसाय

 सिंह राशि में 26 अंश40 कला से आरंभ होता है और कन्या राशि में 10 अंश तक विस्तारित रहता है.इस नक्षत्र में चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर " टे " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह - गुरु । द्वितीय चरण अक्षर " टो " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -  शनि। तृतीय चरण अक्षर  "पा" तृतीय चरण स्वामी ग्रह -  शनि। चतुर्थ चरण अक्षर " पी " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह  -  गुरू। इस नक्षत्र के प्रथम चरण सिंह राशि में आता है , जिसका स्वामी सूर्य है । शेष तीनों चरण कन्या राशि में आता है , जिसका स्वामी ग्रह बुध है ।  उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र  के अधिन निम्नलिखित व्यवसाय आता है - इस नक्षत्र के अधिकार में सृजनात्मक कलाकार, संगीतज्ञ, मनोरंजन करने वाला, सुपर स्टार, प्रबन्धक, नेता, लोकप्रिय खिलाड़ी, वरिष्ठ अधिकारी, सांसद या मंत्री, मीडिया अथवा जनसंपर्क साधन, मनोरंजन उद्योग, पुरोहित, कर्मकाण्डी, धर्म गुरु, मुख्य अधिकारी, ठग व तस्करों का नेता ,प्रवचनकर्ता, दानशीलता, परोपकारिता, विवाह सलाहकार अथवा विवाह कराने वाले आदि इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। यौन रोग चिकित्सक, सामाजिक प्रतिष्ठ...

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के व्यवसाय

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का सिंह राशि में विस्तार 13 अंश 20 कला से लेकर 26 अंश 40 कला तक माना गया है। इस नक्षत्र में चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर "मो " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह -सूर्य । द्वितीय चरण अक्षर "टा " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -बुध । तृतीय चरण अक्षर "टी" , तृतीय चरण स्वामी ग्रह -शुक्र । चतुर्थ चरण अक्षर "टू " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह -मंगल । यह नक्षत्र सिंह राशि में आता है । सिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य होता है ।  इस नक्षत्र के व्यवसाय इस प्रकार से है -- सरकारी कर्मचारी, उच्चाधिकारी, प्रबंधक, राजदूत इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में आते हैं ।पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी शुक्र ग्रह होने से इसके अंतर्गत वस्त्राभूषण तथा सौन्दर्य प्रसाधन निर्माता व विक्रेता आते हैं । जनता का मनोरंजन करने वाले कलाकार, सौन्दर्य वृद्धि करने वाले रूप सज्जक, मॉडल, फोटोग्राफर, कला दीर्घा, गायक, अभिनेता, संगीतज्ञ, चित्रकार,गीतकार, रचनात्मक कलाकार, रंगसाजी, आंतरिक रूप सज्जा, विवाह के लिए वस्त्राभूषण या उपहार सामग्री का व्यापार, सौन्दर्य प्रसाधन का व्यापार, लो...

नकारात्मक ऊर्जा का भंडार

यदि आप में दूसरों के दुर्गुण देखने की प्रवृत्ति है , साथ ही आप जिसे चाहते हो उसके दुर्गुणों को नहीं देखते। लेकिन जिसे आप चाहते हैं वह भी आपके इस प्रवृत्ति को देखकर कुछ समझाने का प्रयास करें । तब आप उसके भी दुर्गुण गिनाने से पीछे नहीं रहते । तो मान कर चले आप नेगेटिव ऊर्जा के भंडार हैं। आप के संपर्क में आने वाला व्यक्ति यदि आपकी बातों को मानकर चलें तो उसके संसार में दुख कब अपना आकार ले ले , यह बात उस व्यक्ति को पता ही नहीं चल पाएगा। अतः यदि आपकी मजबूरी है इस नेगेटिव ऊर्जा के इंसान के साथ रहना तो सकारात्मक चिंतन पर जोर दें।तभी आपका भला हो सकता है। नेगेटिव ऊर्जा के भंडार को ज्ञान मुद्रा कराएं ताकि धीरे-धीरे नकारात्मक सोच सकारात्मक सोच में बदल सके।  ✍️एस्ट्रो राजेश्वर आदिले

ग्रहों की दिशा

वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह की एक दिशा है। जिसका उपयोग हम लाभ की दिशा ज्ञात करने के लिए करते हैं। विवाह के लिए वर या वधू किस दिशा में प्राप्त होगा इसका विचार किया जाता है। चोरी के प्रश्न में भी ग्रह के दिशा से विचार के किया जाता है। सूर्य इस ग्रह की दिशा पूर्व है। चंद्र इस ग्रह की दिशा वायव्य कोण है। मंगल इस ग्रह की दिशा दक्षिण है। बुध इस ग्रह की दिशा उत्तर है। गुरु इस ग्रह की दिशा ईशान कोण है। शुक्र इस ग्रह की दिशा अग्नि कोण है। शनि इस ग्रह की दिशा पश्चिम है। राहु केतु इस ग्रह की दिशा नैऋत्य कोण है ।

बदलाव का दौर

आज से पांच- 10 साल पीछे के परिवारिक कहानी पढ़ते थे तो माता पिता अपने बच्चों का जुल्म का शिकार होकर भी कुछ नहीं कहते थे। परंतु अब समय बदल रहा है और इस कारण परिवारिक कहानियां भी बदल रहा है , अब माता-पिता अपने बच्चों के मानसिक एवं व्यवहारिक प्रताड़ना से तंग आकर अपना घर नहीं छोड़ रहे हैं बल्कि अपने संतान को ही अपनी संपत्ति से बेदखल कर दे रहे। और अपने जीवन को शांति से जीना चाहते हैं। यह समय सामाजिक बदलाव का है जो धीरे-धीरे आने वाले समय में अपना रंग दिखाएगा। समय रहते वह बच्चे सुधर जाए , जो अपने बुजुर्ग माता-पिता का सम्मान नहीं करते। ✍️राजेश्वर आदिले

अश्लेषा नक्षत्र के व्यवसाय

 कर्क राशि में 16 अंश 40 कला से 30 अंश तक रहता है। इस राशि के चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर "डीं" , प्राथम चरण स्वामी ग्रह  - गुरु । द्वितीय चरण अक्षर "डू " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह  - शनि । तृतीय चरण अक्षर "डे"  , तृतीय चरण स्वामी ग्रह  -शनि । चतुर्थ चरण अक्षर "डो" , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह  -गुरु । कर्क राशि का स्वामी ग्रह चन्द्रमा होता है ।  इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह बुध है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवसाय आते हैं - इस नक्षत्र के अन्तर्गत नशीले पदार्थों का कार्य, विष से संबंधित व्यवसाय, कीटनाशक दवाएँ, विष द्वारा उपचार के कार्य, दवाईयाँ भी विष की श्रेणी में आता हैं । पैट्रोल उद्योग, रसायन शास्त्री, तम्बाकू से बनने वाली सभी वस्तुएँ जो आजीविका के रुप में काम में लाया जाता हैं ।मादक पदार्थों की तस्करी, ठगी करने वाले लोग भी अश्लेषा नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं । धन से संबंधित सभी प्रकार के घोटाले, वेश्या वृ्ति का व्यापार, अश्लील किताबों की बिक्री से आजीविका चलाने वाले व्यवसायी, साँपो से संबंधित खोज, साँपों का अजायबघर, साँपों का पालन के...

सफेद दाग के ज्योतिष कारण

यह बात हर आदमी के दिमाग़ में एक जिज्ञासा के रूप में पनप सकती है कि क्यों किसी की त्वचा अचानक सफेद होनी शुरू हो जाती है ? सामान्यत: त्वचा का रंग मेलोनोसाइट कोशिका एवं उससे बनने वाले मेलेनिन पर निर्भर करता है। इन दोनों के नष्ट होने पर त्वचा का प्रभावित हिस्सा सफेद हो जाता है। हमारी त्वचा की दो परते होती हैं बाहरी परत व भीतरी परत |भीतरी परत के नीचे के भाग मे मेलानोफोर नामक कोशिका मे एक तत्व “मेलानिन” होता हैं जिसका मुख्य कार्य हमारी त्वचा को प्राकतिक वर्ण अथवा रंग प्रदान करना होता हैं | जब यह तत्व किसी भी प्रकार से विकृत हो जाता हैं तब 'ल्यूकोडर्मा' नामक रोग हो जाता हैं जिसे आम बोलचाल की भाषा में सफ़ेद दाग यानी फुलेरी या फुलवहरी भी कहा जाता हैं| यह मेलानिन नाम के तत्व त्वचा के भीतर नीचे की सतह मे उत्पन्न होकर ऊपर की ओर आकर त्वचा को प्राकतिक रंग प्रदान करते हैं | त्वचा के जिन भागो मे इस तत्व की कमी या अभाव किसी भी वजह से होता हैं तो वह भाग बाहरी त्वचा मे सफ़ेद दाग के रूप मे दिखाई देने लगता हैं | आयुर्वेद मे इस रोग को अनुचित खान पान के कारण होने वाले रोगो की श्रेणी मे रखा गया हैं जि...

अपने लक्ष्य को छोटे-छोटे भागों में बांट कर प्राप्त करें

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हम सब के अंदर अपार शक्ति है , जिसके बल पर हम जो भी सपने देखते है उसे प्राप्त कर सकते हैं । बस ज़रूरत है सफलता पाने के इन चार सुत्रों का पालन करने का -- 1, एकाग्रता  2, बुद्धिमता  3, स्पष्टता 4, दृढ़ आत्मविश्वास   इसके बाद ज़रूरत है तो अपने लक्ष्य को छोटे छोटे टुकड़े में तोड़ने का , इन टुकड़ों को अपने टीम के साथ और अमुख  डेड लाइन में प्राप्त करना है ।अर्थात इस लक्ष्य के इस छोटे से हिस्से को मुझे इस तारीख़ तक हासिल करना है । जैसे -कोई इमारत बनाते है तो इमारत का रूप रेखा बनाते है , फिर नीव से शुरुआत करते है और स्टेप बाई स्टेप पचासों मजिंल भवन बना लेते है ।

सतनामी समाज के उत्पत्ति की परिकल्पना भाग- 03

आदरणीय सतनामी समाज एवं इष्ट मित्रों । हमने पुर्व के लेखों में पढ़ा कि विभिन्न लेखकों ने सतनामी समाज का संबंध विभिन्न  संतों, मतों और धर्म से जोड़ने का प्रयास किया है। इसका कारण यह है कि उन्होंने सतनाम धर्म से संबंधित तथ्यों का सही और प्रमाणिक अध्ययन नहीं किया। तथा उन्होंने सतनामी संस्कृति का अवलोकन और विश्लेषण भी अपने पुर्वाग्रह के आधार पर किया। इसके कारण से सतनामी समाज का वास्तविक इतिहास  भ्रामक बन गया। जबकि सतनाम धर्म तो सनातन धर्म के समानांतर धर्म रहा है। जो सिन्धु घाटी सभ्यता के साथ उत्पन्न हुआ था। विभिन्न लेखकों के द्वारा सतनामी समाज को रविदास और जगजीवन दास जी से जोड़ा गया है। जिसका कारण गजेटियर में उल्लेखित जाति तथा गुरु घासीदास के द्वारा उपदेशित सतनाम का उपदेश रहा। लेकिन हमने गजेटियर में पाया कि उक्त जाति वर्ग के साथ सतनामी समाज का कोई संबंध नहीं रहा है।  निम्नलिखित उद्धरण से यह स्पष्ट होता है:- 1* they're not however leather workers' like so many other parts of India(सेंट्रल प्रोविंस गजेटियर 1867 पृष्ठ 115) 2*they are fairly energetic and industrious cultivators ...