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Showing posts from October, 2020

प्रेम संबंध किस जगह पर होगा-VI

अग्रिम प्रश्न जातक के मन में रहता है कि यह #प्रेम सम्बन्ध रिश्तेदारी में होगा, मित्रवर्ग में होगा अथवा शिक्षण संस्थान में होगा अथवा किसी अन्य जगह पर होगा। इसके प्रत्युत्तर में निम्नलिखित परिस्थितियां हो सकती हैं : 1. यदि पंचमेश अथवा सप्तमेश का सम्बन्ध द्वितीय भाव से हो रहा हो तो जातक का सम्बन्ध अपने निकटस्थ कौटुम्बिक अथवा रिश्तेदारी में होता है।  2. यदि सप्तमेश एवं पंचमेश का सम्बन्ध हो अथवा सप्तमेश पंचम भाव में हो तो सहपाठी अथवा मित्र वर्ग में प्रेम सम्बन्ध स्थापित होता है।  3. यदि सप्तमेश अथवा पंचमेश का सम्बन्ध हो, बुध बली हो तथा वह भी इन भावों से सम्बन्ध बनाए, तो आधुनिक संचार के माध्यमों अर्थात् इन्टरनेट, फोन आदि से प्रेम सम्बन्ध स्थापित होता है।  4. यदि सप्तमेश एवं पंचमेश का अष्टम एवं नवम भाव से भी सम्बन्ध बने, तो यात्रा के दौरान प्रेम सम्बन्ध स्थापित होता है।  5. यदि पंचमेश एवं सप्तमेश का सम्बन्ध षष्ठ एवं दशम भाव से हो तो सहकर्मी से प्रेम सम्बन्ध स्थापित होने की सम्भावना है।  6. यदि पंचमेश एवं सप्तमेश का सम्बन्ध एकादश भाव से हो, तो जातक का प्रेम सम्बन्ध बड़े ...

ऊपरी बाधा से बचाव हेतु या नकारात्मक उर्जा से बचाव हेतु

1, शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को अंधेरा होने पर अपने घर के पास जो सबसे निकट में जो भी पेड़ हो वह आ जाएं। अपने साथ दूध में थोड़ा सी शक्कर तीन मावे के लड्डू थोड़ी सी साबूदाने की खीर 11 बतासे व थोड़ी दूध से बनी कोई भी अन्य मिठाई लेकर जाएं। खीर बताते तथा लड्डू को वृक्ष की जड़ पर अर्पित करके शक्कर मिले दूध को जल अर्पित कर दें। 11 अगरबत्ती भी जलाएं। यह क्रिया किसी मंदिर में लगी पीपल के वृक्ष पर भी करें।  निसंदेह आपको पहले बार में ही परिवर्तन अनुभव होगा। यदि समस्या अधिक है तो 11 सोमवार तक करें 2, 10 मुखी रुद्राक्ष और 11 मुखी रुद्राक्ष धारण करने से भी ऊपरी बाधा में राहत मिलता है। 3, सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से भी ऊपरी बाधा में राहत मिलता है। नोट - मैं तांत्रिक नही हूं , अतः तांत्रिक उपाय के लिए मुझसे संपर्क ना करें। मैंने जो भी उपाय लिखा है , वह एस्ट्रोलॉजिकल उपाय है। यदि आप इस प्रकार से समस्या से पीड़ित है तो मां दुर्गा जी  के ऊपर या अपने ईष्ट के ऊपर विश्वास करके यह उपाय कर सकते हैं। आपको कौन सा उपाय फायदेमंद है इसके लिए एक बार अपने निकटवर्ती ज्योतिषी से मिलकर परामर्श लेकर ह...

ब्रेन हेमरेज और ज्योतिष

आजकल के भागदौड़ भरे जीवन में काम की अधिकता के कारण, तनाव, चिंता के कारण हमारे शरीर में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं, जिनमें एक रोग मस्तिष्क रक्तस्राव (ब्रेन हेमरेज) है। शारीरिक एवं मानसिक विकलांगता, लकवा तथा दर्दनाक मौत का कारण बनते हैं । ‘ब्रेन हेमरेज’ के प्रकोप में आजकल तेजी से वृद्धि हो रही है। भारत में हर साल 1000000 लोग इससे पीड़ित हो रहे हैं । पहले इसका शिकार वृद्ध व्यक्ति ही होते थे परंतु आज के समय में कम उम्र के लोग भी इसका शिकार हो जा रहे हैं।    मस्तिष्क रक्तस्राव के मुख्य कारण तो उच्च रक्तचाप, एन्यूरिज्म और आर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन है। लेकिन मधुमेह, मोटापा, शराब, भाग-दौड़, दिमागी तनाव और धूम्रपान आदि ब्रेन हेमरेज की आशंका को बढ़ाते हैं।     मधुमेह रोगियों तथा उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोग, जो रक्तचाप को नियंत्रण में नही रखते हैं, उनमें दिमाग की नस का फटना आम बात है। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी देखने में आया है कि सामान्य रक्तचाप वालों की भी दिमागी नस फट जाती है, जिसे स्पांटेनियस हेमरेज कहते हैं। ऐसा मस्तिष्क के अंदर एन्युरिज्म, या आर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन के कारण होत...

प्रेम संबंध कब स्थापित होगा -V

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  प्रेम संबंध कब स्थापित होगा , वैसे देखा जाये तो प्रेम करने का कोई उम्र नहीं होता , न ही सीमा होता है । कहाँ भी गया है प्रेम किया नहीं जाता हो जाता है ।यह किसी भी आयु वर्ग में और किसी भी आयु वर्ग के साथ हो सकता है ।  ज्योतिषीय दृष्टि कोण से निम्न परिस्थिति प्रेम संबंध स्थापित करता है । 1, जन्मकालिन समय से गोचर अवधी में अपने अपने भिन्नाष्टक वर्ग सप्तमेश एवं पंचमेश 5 या 5 से अधिक रेखाओं पर हो , तब प्रेम संबंध स्थापित होने कि संभावना होता है । 2, सप्तमेश एवं शुक्र कि दशा में जातक को विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकर्षक उत्पन्न होता है । यदि सप्तमेश की महादशा  , अंतरदशा  , प्रत्यंतर दशा में पंचमेश अथवा मंगल की दशा चल रहा हो , तो जातक का प्रेम संबंध स्थापित हो सकता है । 3, लग्नेश के महादशा में पंचमेश अथवा सप्तमेंश की अंतर दशा हो । 4,एकादशेश की दशा -अतर्दशा हो , शुक्र का अंतर्दशा हो । 5, पंचमेश  ,सप्तमेश के महादशा में जिस राशि में पंचमेंश सप्तमेश बैठे हो उसके स्वामी ग्रह के दशा या पंचम सप्तम भावमें स्थित ग्रह के अंतर दशा में प्रेम संबंध स्थापित हो सकता है ।

मोहब्बत शायरी

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सुर्ख लाल शायरी

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प्रेम होगा कि नहीं - IV

     यहाँ प्रेम संबंध स्थापित होने के कुछ योग पोस्ट कर रहा हूँ , मात्र इतने ही योग हो तो ही प्रेम संबंध स्थापित होगा ऐसा नहीं है इसके अलावा भी योग होंते हैं। 1, यदि पंचमेश एवं सप्तमेश में परस्पर दृष्टि , युति , स्थान परिवर्तन संबंध हो , तो प्रेमसंबंध हो सकता है । 2, यदि चतुर्थ भाव में शुक्र स्थित हो ,तो जातक विपरीत लिंग की तरफ़ अत्यधिक आकर्षित होगा । 3, यदि लग्न भाव में शुक्र स्थित हो , तो जातक का प्रेमसंबंध स्थापित हो सकता हैं। 4, यदि सर्वाष्टक वर्ग में पंचम भाव और शुक्र से युत राशि को 30 से अधिक रेखाएँ प्राप्त हों , तो जातक के प्रेम सम्बंध हो सकता है । 5, यदि शुक्र -मंगल एव  चन्द्र - शुक्र की युति हो तो जातक का प्रेम -सम्बंध स्थापित हो सकता है  6, यदि पंचमेश का तृतीयेश से संबंध हो तो जातक का प्रेम संबंध स्थापित हो सकटा है । 7, लग्न अथवा सप्तम भाव में चन्द्रमा स्थित हो अथवा सप्तमेश से चन्द्रमा युति करते हुए पंचम , नवम  अथवा एकादश भाव में स्थित हो तो प्रेम संबंध स्थापित हो सकता है ।

शुक्र मंगल की युति

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काल पुरुष की कुंडली में मंगल जहां लग्न और अष्टम भाव का स्वामी है, तो शुक्र वही द्वितीय और सप्तम भाव का स्वामी है। मंगल जहां पुरुष है तो शुक्र स्त्री है। मंगल जहां भाई है, देवर है, पति है, तो शुक्र पत्नी है, प्रेमिका है ,भाभी है । मंगल जहां भूमि है तो शुक्र सजावट है । मंगल जहां शक्ति है, तो शुक्र वही प्रेम है। मंगल जहां यौवन है तो शुक्र प्रेम रस है। मंगल जहां देह हैं तो शुक्र रूप है। मंगल जहां गर्मी है तो शुक्र वही कामुकता है। मंगल जहां आवेग है तो शुक्र वही सुगंध है। मंगल जहां जुनून है तो शुक्र प्रभाव है। दंगल जहां यौवन है तो शुक्र आकर्षण है। मंगल जहां रक्षक है तो शुक्र वही प्रेम है। मंगल जहां त्याग है तो शुक्र प्रेम है। मंगल जहां हिम्मत है तो शुक्र कला है। मंगल जहां आग है तो शुक्र घी है। मंगल जहां खून है तो शुक्र वीर्य है। शुक्र और मंगल की युति से कृष्ण योग (कृष्ण=काला) का निर्माण होता है। कुछ ज्योतिषी इसे व्यभिचारी योग भी कहते है। मंगल रक्त, क्रोध और उत्तेजना का कारक ग्रह होता है। यह जिस ग्रह के साथ युति करता है उस ग्रह से संबंधित गुणो को भड़का देता है। चूँकि शुक्र प्रेम और...

प्रेम के कारक भाव-III

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    ग्रहो के पश्चात् हमें कुण्डली के अंतर्गत प्रेम संबंध को प्रदर्शित एवं वर्धित करने वाले भावों पर दृष्टिपात करना चाहिए । लग्न  चतुर्थ पंचम  सप्तम  तृतीय नवम  एकादश  द्वादश भाव पर विचार करना पढ़ता है । वैसे तो कुण्डली के बारह भाव में किसी न किसी रूप में आपसी संबंध होता है । जिसके कारण प्रेम के संबंध में अपना अच्छा या बुरा प्रभाव देता है। लग्न  - जन्म कुण्डली के अंतर्गत शरीर को प्रदर्शित करता है । क्योंकि सभी क्रियाएँ शरीर एवं मस्तिष्क से सम्बंधित होता है । साथ ही लग्न व्यक्ति की मानसिकता को भी  प्रदर्शित करता है , इसलिए लग्न का बलि होना आवश्यक है । यदि लग्न निर्बल होगा ,तो व्यक्ति की भावनाओं एवं उससे जुडी मानसिकता में सुदृढ़ता नहीं आ पाएगा । जिसके वजह से प्रेमी हृदय को अनेक विघ्न  - बाधाओं का सामना भी करना पड़ सकता है । चतुर्थ भाव - यह भाव हृदय का माना जाता है ,हृदय से ही हमारे मन की समस्त भावनाएँ जुडा होता है । अतः हृदय की समस्त भावनाओं की प्राप्ति चतुर्थ से द्वितीय अर्थात पंचमंभाव को माना गया है । पंचम भाव -  इस भाव को मैत्री का ...

मोहब्बत शायरी

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रूह शायरी

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गोचर के नीच के शुक्र पर प्रभाव 1 माह तक

आज सुबह 7:05 को सूर्य का राशि परिवर्तन हुआ है। अपने नीच राशि तुला में चला गया। 23 अक्टूबर 2020 को सुबह 10:45 मिनट में शुक्र भी नीच का हो जाएगा। जोकि 17 नवंबर तक नीच के राशि में रहेगा। काल पुरुष की कुंडली को देखा जाए सप्तम भाव का स्वामी शुक्र  है। जोकि दैनिक व्यवसाय,  दांपत्य जीवन को प्रभावित करता है। 23 अक्टूबर को जब शुक्र नीच राशि में होगा तो शुक्र पर मंगल की दृष्टि होगा, शुक्र की दूसरी राशि वृषभ राशि में राहु स्थित होगा। तुला राशि में सूर्य नीच का होगा ही। मंगल की आठवीं दृष्टि होगी तुला राशि में। शनि की दसवीं दृष्टि होगा तुला राशि में। शुक्र की दूसरी राशि वृषभ में राहु स्थित होगा। शुक्र छठे भाव में होगा। अतः इस समय मेष राशि और तुला राशि वालों के वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल आएगा। स्वास्थ्य से संबंधित परेशानी उत्पन्न होगा। इस कालखंड में गाल का ग्लो कम हो जाएगा। सौंदर्य से संबंधित कुछ न कुछ समस्या देखने को मिलेगा। चर्म रोग होंगे। गुप्त रोग होंगे। किडनी से संबंधित बीमारी होगा। जीवनसाथी के प्रजनन अंग से संबंधित बीमारियां होने की संभावना रहेगा। पुरुषों के भी प्रजनन अंग एवं अंडकोष से...

रेवती नक्षत्र के व्यवसाय

इस नक्षत्र का विस्तार मीन राशि में 16 अंश 40 कला से लेकर 30 अंश तक रहता है।इस नक्षत्र में चार चरण होता है । ' प्रथम चरण अक्षर - " दे " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह - गुरु । द्वितीय चरण अक्षर -- " दो " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह - शनि । तृतीय चरण अक्षर -- " चा " , तृतीय चरण अक्षर स्वामी ग्रह -- शनि । चतुर्थ चरण अक्षर -- " ची " , चतुर्थ चरण अक्षर स्वामी ग्रह - गुरू । रेवती नक्षत्र मीन राशि में आता है । मीन राशि का स्वामी ग्रह गुरु होता है । रेवती नक्षत्र का स्वामी ग्रह बुध होता है । इस नक्षत्र के अन्तर्गत निम्न व्यवसाय आते हैं :- इस नक्षत्र के अन्तर्गत सम्मोहन करने वाले, प्रेतों से संपर्क साधने वाले, कलाकार जैसे – चित्रकार, अभिनेता, नट, विदूषक, संगीतज्ञ आते हैं, भाषाविद, जादूगर, घड़ी साज, रेल की पटरी बिछाने वाले अथवा सड़क बनाने की योजना व निर्माण कार्य से जुड़े लोग, भवन निर्माण उद्योग, समय की गणना करने वाले, कैलेंडर अथवा पंचांग निर्माता, ज्योतिषी, दैवीय चिकित्सक, प्रबंधक, आतिथ्य करने वाले स्वागतकर्त्ता, विमान परिचारिका, रत्नों के व्यापारी, मोती उद्यो...

अमर टापू धाम

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अमरदास जी का अमरटापू धाम, ग्राम मोतिमपुर तह: जिला मुंगेली ३६ गढ़ १. स्थिति :- पवित्र अमरटापू ३६गढ़ राज्य के तहसील- जिला मुंगेली के अंतर्गत ग्राम मोतिमपुर में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक और दर्शनीय स्थल है। यह पंडरिया के भुरकुंड पहाड़ से निकलने वाली आगर नदी द्वारा दो एकड़ के क्षेत्रफल में प्रकृतिक रूप से निर्मित टापू है। जिसके चारो ओर नदी की कल कल, छल छल करती हुई बहती जल धारायें हैं। जिसमें अमरटापू का प्रकृतिक सौंदर्य अद्भूत, अनुपम और अविस्मरणिय हो जाता है। नदी के निचले छोर में दोनो जल धाराओ का मिलन दर्शको को बेहद मनमोहक और सुहावना लगता है। अमरटापू धाम मुंगेली से लोरमी मार्ग पर ग्राम जमकोर कंतेली से पश्चिम दिशा में चार कि.मी. तथा मुंगेली से पंडरिया मार्ग पर ग्राम बाघामुड़ा से उत्तर दिशा में पांच कि.मी. की दूरी पर स्थित है। २. इतिहास :- लोकमान्यता के आधारपर क्षेत्र के बुजुर्गों, चौकाहारों का कहना है कि ३६गढ़ में 'सतनाम धर्म' के प्रवर्तक सतगुरू घासीदास बाबा जी के ज्येष्ट पुत्र परमज्ञानी, तपस्वी और परमसाधक सतगुरू बाबा अमरदास जी इसी टापू पर एकाधिक बार पड़ाव डालकर सतसंग करके लोगो को सत...

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के व्यवसाय

 इस नक्षत्र का विस्तार मीन राशि में 3 अंश 20 कला से लेकर 16 अंश 40 कला तक रहता है । इस नक्षत्र में चार चरण होता है । प्रथम चरण अक्षर - " दू " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह  - सूर्य  द्वितीय चरण अक्षर -- " थ " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह  -  बुध  तृतीय चरण अक्षर -- " झ " , तृतीय चरण अक्षर स्वामी ग्रह  -- शुक्र । चतुर्थ चरण अक्षर -- " ञ " , चतुर्थ चरण अक्षर स्वामी ग्रह  - मंगल ।     उत्तराभाद्र पद नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है । यह नक्षत्र मीन राशि में आता है । इस राशि का स्वामी ग्रह गुरु है । इस नक्षत्र के अन्तर्गत निम्न व्यवसाय आते हैं :- इस नक्षत्र में ध्यान तथा योग कराने वाले विशेष व्यक्ति आते हैं। रोग निदान व चिकित्सा विशेषज्ञ, सलाहकार, आध्यात्मिक चिकित्सक, तांत्रिक, दिव्य पुरुष, योगी, तपस्वी, वन अथवा आश्रमवासी, दान संस्था के प्रबंधन से जुड़े व्यक्ति, अन्वेषक अथवा शोधकर्त्ता, दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ, कलाकार, विशेष योग्यता से संपन्न होने वाले कार्य आदि आते हैं। वास्तुविद्या, यज्ञ, दान, तपस्या, सन्यास, राजपद, चावल अथवा छिलके के अंदर ...

पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र के व्यवसाय

  इस नक्षत्र का विस्तार कुंभ राशि में 20 अंश से आरंभ होकर मीन राशि में 3 अंश 20 कला तक रहता है। इस नक्षत्र में चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर -"से" , प्रथम चरण स्वामी ग्रह - मंगल । द्वितीय चरण अक्षर -" सो " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह - शुक्र । तृतीय चरण अक्षर - " दा " तृतीय चरण स्वामी ग्रह - बुध । चतुर्थ चरण अक्षर - " दी " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह - चन्द्रमा । पूर्वाभाद्र पद नक्षत्र प्रथम तीन चरण कुंभ राशि में आता है जिसका स्वामी ग्रह  शनि है । जबकि पूर्वाभाद्र पद नक्षत्र का चतुर्थ चरण मीन राशि में आता है । मीन राशि का स्वामी ग्रह गुरु है । इस नक्षत्र का स्वामी गुरु है  इस नक्षत्र कके अन्तर्गत निम्न व्यवसाय आते हैं :- इस नक्षत्र में दाह संस्कार अथवा मृत्यु व मृतक संस्कार से जुड़े सारे लोग आते हैं जैसे कफन बेचने तथा बनाने वाले, शव वाहन सेवा, श्मशान भूमि व्यवस्था, दाह संस्कार कराने वाले पंडे, पुरोहित आदि आते हैं । शव परीक्षक, शल्य चिकित्सक, विष से उपचार करने वाले, धर्मोन्मादी, कट्टरपंथी आतंकवादी, भय, रहस्य व रोमांच कथा लेखक, इंटरनेट  , मोबाईल  , ...

प्रेम के लिए उत्तरदाई ग्रह-II

                ज्योतिष के दृष्टि कोन से देखे तो प्रेम का उद्दाम तरंगो पर पहुँचाने में चन्द्रमा , शुक्र , मंगल , पंचमेश, सप्तमेश ग्रहों का पूर्ण योगदान होता है ।   शास्त्रों में चन्द्रमा को मन का कारक स्वीकार किया गया है । यह ग्रह प्रेमी हृदय में कोमल भावनाओं से ओत प्रोत आकर्षण एवं मनस् चाञ्चल्य को उत्पन्न करता है । चन्द्रमा का मन पर पूर्ण अधिकार होने के कारण इसे उससे सम्बंधीत मानसिक भावनाओं , प्रसंनताओं एवं उदासीनता का कारक भी स्वीकार किया गया है । ग्रहो में चन्द्रमा की गति सर्वाधीक होता है इसी कारण मन के गति को भी सार्वधीक माना गया है । कालपुरूष की कर्क राशि चतुर्थ भाव में पड़ता है और कर्क राशि चन्द्रमा के आधिपत्य में आता है । चतुर्थ भाव को हृदय का भाव भी कहा जाता है । अतः हृदय में उद्वेलित समस्त भावनात्मक तंरगों का सूत्रधार चन्द्रमा को माना जाता है ।      शुक्र को प्रेम का सम्पूर्ण कारक माना जाता है । पश्चात्य जगत में शुक्र को वीनस कहा जाता है । वीनस अर्थात प्रेम की देवी । आकाशमण्डलस्थ शुक्र पर यदि दृष्टि पाट करे तो यह ग्रह ...

ग्रहों के आधार पर आराध्य देव

जन्म कुंडली के पंचम भाव , नवम भाव एवं लग्न के राशि , राशि स्वामी या इन भावों में स्थित ग्रह के अनुसार इष्ट देव की आराधना किया जाता है। कारकांश कुंडली में कारकांश के स्वामी ग्रह के अनुसार इष्ट देव की आराधना किया जाता है। कुछ लोग जन्म नक्षत्र के स्वामी देव को इष्ट देव मान कर आराधना करते हैं। कुछ ज्योतिष जन्मतिथि के अनुसार तिथि के देव को इष्ट देव मानकर आराधना करते हैं। कुछ ज्योतिष जन्म मास के आधार पर माह के स्वामी ग्रह के देव को इष्ट देव मानकर आराधना करते हैं।  कुछ ज्योतिष दशा अंतर्दशा के आधार पर देव की आराधना का विधान बताते हैं। 1. सूर्य- विष्णु, शिव, दुर्गा, ज्वालादेवी, ज्वालामालिनी, गायत्री, आदित्य, स्वर्णाकर्षण, भैरव की उपासना करें। 2. सूर्य शनि, सूर्य राहु- महाकाली, तारा, शरभराज, नीलकंठ, यम, उग्रभैरव, कालभैरव, श्मशान भैरव की पूजा करें। 3. सूर्य बुध, सूर्य मंगल- गायत्री, सरस्वती, दुर्गा उपासना। 4. सूर्य शुक्र- वासुदेव, मातडंगी, तारा, कुबेर, भैरवी, श्रीविद्या की उपासना करें।  5. सूर्य केतु- छिन्नमस्ता, आशुतोष शिव, अघोर शिव। 6. सूर्य शनि राहु- पशुपतास्त्र तंत्र, मंत्र मरणादि षट...

शतभिषा नक्षत्र के व्यवसाय

इस नक्षत्र का विस्तार कुंभ राशि में 6 अंश 40 कला से 20 अंश तक रहता है। इस नक्षत्र के चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर -- " गो " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह -- गुरु । द्वितीय चरण अक्षर -- "सा" , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- शनि । तृतीय चरण अक्षर -- "सी " , तृतीय चरण स्वामी ग्रह --शनि। चतुर्थ चरण अक्षर -- " सू" , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह --गुरु । शतभिषा नक्षत्र कुभ राशि में आता है , कुभ राशि का स्वामी ग्रह शनि होता है । शतभिषा नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु होता है । इस नक्षत्र के अन्तर्गत आने वाले व्यवसाय निम्नलिखित हैं :- इस नक्षत्र में बिजली का काम करने वाले कारीगर, इलैक्ट्रिशियन, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ , रडार तथा “क्ष” किरण(X-Ray) विशेषज्ञ, कीमोथेरेपी वाले चिकित्सक, अंतरिक्ष यात्री, अंतरिक्ष विज्ञानी, अंतरिक्ष की खोज, पायलट, रेडियो आपरेटर, ज्योतिषी आदि आते हैं । सैन्य कला प्रशिक्षक, युद्ध कौशल दिखाने वाले कलाकार, राकेट तथा अंतरिक्ष अभियंता, अंतरिक्ष यान सामग्री उद्योग, फिल्म तथा दूरदर्शन से जुड़े कर्मचारी, फिल्म अभिनेता तथा कलाकार, फैशन में बदलाव लाने वाल...

ज्योतिष एवं प्रेम

एक ज्योतिषी के पास प्यार के बारे में जानने के लिए जातक बहुत से प्रकार का प्रश्न पूछता है जिसके लिए निम्न पाइट के माध्यम से विचार करना होता है । 1, प्रेम के लिए उत्तरदायी ग्रह , 2, प्रेम के लिए कारक भाव , 3, प्रेम होगा अथवा नहीं , 4, प्रेम संबंध कब स्थापित होगा , 5, प्रेम संबंध किस जगह पर होगा , 6, प्रेमी / प्रेमिका भाग्यवर्धक होगी अथवा नहीं , 7, प्रेम एक तरफा तो नहीं होगा , 8, प्रेम में अपयश तो नहीं मिलेगा , 9, प्रेम संबंध धनाढ्य वर्ग में होगा अथवा मध्यम वर्ग में , 10, प्रेम से धन लाभ होगा या धन हानि , 11, किस आयु वर्ग से होगा प्रेम संबंध , इन बिंदु के अधार पर लेख मित्र गण ज़रूर लिखें । 12, प्रेम विवाह के बाद संबंध स्थाई होगा की नहीं । 1, प्रेम के उत्तरदायी ग्रह  ज्योतिषीय दृष्टि से प्रेम को उद्दाम तरंगो पर पहुँचाने में चन्द्रमा , शुक्र , मंगल ,पंचमेश , सप्तमेश ग्रहों का पूर्ण योगदान होता है ।

संतान न होने के योग

"पंचमेश अस्त हो पापी ग्रहों के साथ हो एवं 6, 8, 12 भाव में हो तो संतान ना होने का योग बनता है।" पंचम भाव का स्वामी यदि 6 8 12 भाव में अस्त हो, अर्थात पंचमेश सूर्य के साथ अंशात्मक रूप से समीप हो और उस पंचमेश पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तभी यह योग बनता है। साथ ही पंचम भाव पर किसी भी प्रकार का शुभ ग्रहों का प्रभाव ना हो ।  जैसे कि मिथुन लग्न की कुंडली है इस कुंडली में शुक्र पंचमेश होता है शुक्र छठे भाव में अर्थात वृश्चिक राशि में हो सूर्य के साथ और अस्त भी हो और उस पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तब यह योग होगा। इस योग के फल स्वरुप पंचमेश शुक्र के पीड़ित होने की वजह से जातक में धातु से संबंधित विकार होगा जिसके वजह से संतान प्राप्त करने में दिक्कत होगा।

संतान से संबंधित चिंता

"पंचमेश का यदि छठे, आठवें , बारहवें भाव के स्वामी के साथ संबंध हो जाए तो यह योग बनता है" इस योग में कुछ बातों का ख्याल रखें की पंचमेश शत्रु राशि में हो , नीच का हो साथ ही पाप ग्रहों के प्रभाव में हो । पंचम भाव पर भी पाप पीड़ित अवस्था में हो ।  किसी भी प्रकार का शुभ प्रभाव में ना हो,  तब यह योग ज्यादा प्रभावी रहता है। जितना ज्यादा पीड़ित अवस्था में होगा उतना ही अधिक संतान को लेकर चिंता बना रहेगा और यदि पंचम और पंचमेश कम पीड़ित हुए तो संतान संबंधित चिंता भी कम रहेगा। 

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के व्यवसाय

इस नक्षत्र  का विस्तार धनु राशि में 26 अंश 40 कला से लेकर मकर  राशि में 10 अंश तक रहता है । इस नक्षत्र के चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर -- " भे " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह -- गुरु । द्वितीय चरण अक्षर -- "भो " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- शनि । तृतीय चरण अक्षर -- "जा" , तृतीय चरण स्वामी ग्रह --शनि । चतुर्थ चरण अक्षर -- " जी" , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह --गुरु  । इस नक्षत्र का प्रथम चरण धनु राशि में आता है जिसका स्वामी ग्रह गुरु है । शेष द्वितीय से चतुर्थ चरण मकर राशि में आता है जिसका स्वामी ग्रह शनि है । उत्तराषाढा नक्षत्र का स्वामि ग्रह सूर्य है ।  इस नक्षत्र के अन्तर्गत निम्न व्यवसाय आते हैं :- उपदेश देने वाले, प्रवचनकर्त्ता, पुरोहित, कथावाचक, परामर्शदाता, ज्योतिषी, आध्यात्मिक चिकित्सक आदि इस नक्षत्र में आते हैं । वकील, न्यायाधीश, सरकारी कर्मचारी, मनोवैज्ञानिक, सेना से जुड़े विविध काम, मार्गदर्शक अथवा आगे रहने वाला, पशु पालक, मल्लयुद्ध करने वाले, बॉक्सर, जुड़ो कराटे सिखाने वाले, तलवार चलाने वाले, एथलीट आदि इस नक्षत्र के अधीन हैं । हाथियों का प्रश...

विवाह के पश्चात भाग्य उदय

ज्योतिष में कुछ ऐसे विशेष ग्रह योग होते हैं जिनमे व्यक्ति का भाग्योदय स्त्री के द्वारा होता है अर्थात कुछ विशेष ग्रह–स्थितियों में व्यक्ति को विवाह होने के उपरांत विशेष भाग्योदय और सफलता मिलती है तथा जीवन में विवाह और पत्नी के आगमन के बाद व्यक्ति के जीवन सकारात्मक परिवर्तन आने लगते हैं क्योंकि कुछ पुरूषों की कुंडली में कुछ ऐसे विशेष ग्रह योग होते हैं जिनमे स्त्री ही उनके भाग्योदय का कारण बनती है और जीवन में उनकी पत्नी का आगमन होने के बाद ही भाग्योदय होता है । इस पर एक छोटा सा लेख । पुरुषों की कुण्डली में “शुक्र” को पत्नी और वैवाहिक जीवन का कारक ग्रह माना गया है । इसके अलावा सप्तम भाव और सप्तमेश विवाह और वैवाहिक जीवन को नियंत्रित करते हैं।  इन्ही ज्योतिषीय घटकों की कुछ विशेष स्थितियां व्यक्ति को स्त्री के माध्यम से भाग्योदय देता है। 1. कुंडली में बारहवे भाव का भाग्योदय से भी सम्बन्ध होता है बारहवे भाव में स्थित ग्रह व्यक्ति का भाग्योदय कराता है अतः जिन पुरुषों की कुंडली में शुक्र बारहवे भाव में स्थित होता है उनका विशेष भाग्योदय उनके विवाह के बाद ही होता है, ऐसे लोगों के विवाह के बाद...

ज्योतिषी और जजमान के लिए दिशा निर्देश

जब आप एक एस्ट्रोलॉजर से मिलते हैं ग्रह नक्षत्र के बारे में गणना कराते हैं। ज्योतिष महोदय आपको यदि सटीक जानकारी देते हैं, आप उनकी बातों से इत्तेफाक रखते हैं। तो ज्योतिष  फलादेश के बाद अपनी मन की बात, उस समस्या को लेकर आपस में चर्चा करें। उससे विषय से संबंधित बातें अपने एस्ट्रोलॉजर से करें। उन्हें उस विषय के बारे में बात कर सलाह मशवरा करें जैसे कि एक मनोचिकित्सक के पास जाकर आप अपनी समस्या के बारे में बतलाते है , एक काउंसलर के पास जाकर अपनी समस्या को बतला कर समाधान पाने की कोशिश करते हैं, जैसे चर्च में कन्फेशन किया जाता है। अपनी बात करके तो देखें , नॉर्मली यह सारी प्रक्रिया जब ऑफिस में कोई जातक आकर एक ज्योतिषी से मिलता है तो यह सारी प्रक्रिया अपनाया जाता  है । परंतु सोशल साइट में हम प्रश्न रखते हैं , जिस पर एक एस्ट्रोलॉजर प्रिडिक्शन करता है और उपाय बता कर आगे बढ़ जाता है। एस्ट्रोलॉजिकल उपाय तो मिल गया परंतु सकारात्मक ऊर्जा आपको नहीं मिल पाया। आपको एक मनोचिकित्सक एक काउंसलर के परामर्श से वंचित हो जाते हैं। और आपके समस्या के निराकरण के लिए उचित परामर्श से दुर रह जाते हैं। यकीन मानि...

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के व्यवसाय

इस नक्षत्र का विस्तार धनु राशि में 13 अंश 20 कला से लेकर 26 अंश 40 कला तक रहता है । इस नक्षत्र के चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर -- " भू " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह -- सूर्य । द्वितीय चरण अक्षर -- "धा " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- बुध । तृतीय चरण अक्षर -- "फा " , तृतीय चरण स्वामी ग्रह -- शुक्र । चतुर्थ चरण अक्षर -- " ढा " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह --मंगल । इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शुक्र है । धनु राशि का स्वामी ग्रह गुरू है । इस नक्षत्र के अन्तर्गत निम्न व्यवसाय आते हैं --- दूसरों को सम्मोहित करने का काम करने वाले अर्थात सम्मोहनकर्त्ता, प्रेत संपर्क माध्यम, नौसैनिक, जल सेना अधिकारी, जलपोत कर्मी, समुद्री जीव विज्ञान के विशेषज्ञ, जल परिवहन सेवा अथवा समुद्री यात्रा, मर्चेन्ट नेवी, जलपोत निर्माण उद्योग, पानी के जन्तु, मत्स्य पालन, मत्स्य व्यापार करने वाले इस नक्षत्र के अधिकार में आते हैं । आतिथ्य सत्कार करने वाले, स्वागतकर्त्ता, मनोरंजन उद्योग, मंच कलाकार के गायक व नर्तक, उत्साह व मनोबल बढ़ाने वाले मनोचिकित्सक तथा सलाहकार, प्राध्यापक, प्रवचनकर्ता, न...

मूल नक्षत्र के व्यवसाय

इस  नक्षत्र का विस्तार धनु राशि में 0 अंश से लेकर 13 अंश 20 कला तक रहता है । इस नक्षत्र में चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर - "य" , प्रथम चरण स्वामी ग्रह - मंगल । द्वितीय चरण अक्षर -- "ये "  , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- शुक्र । तृतीय चरण अक्षर --" भा " , तृतीय चरण स्वामी ग्रह -- बुध । चतुर्थ चरण अक्षर -- " भी " चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह -- चन्द्रमा । मूल नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है । मूल नक्षत्र धनु राशि में आता है । जिसका स्वामी ग्रह बृहस्पति है ।  इस नक्षत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवसाय आते हैं :- तंत्र विद्या जानने वाले तांत्रिक, झाड़-फूख करने वाले ओझा, काला जादू अथवा भूत-प्रेत सिद्ध करने वाले, वैद्य, औषधि निर्माता, विष चिकित्सक, दंत चिकित्सक आदि इस नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं. मंत्री, प्रवचनकर्त्ता, पुलिस अधिकारी, गुप्तचर व जाँच करने वाले, सैनिक, न्यायाधीश, अन्वेषण अथवा शोधकर्त्ता, जीवाणु अथवा गुण सूत्र पर अनुसंधान करने वाले, खगोल शास्त्री, व्यवसायी, नेता, गायक, वाद-विवाद अथवा परामर्श देने के काम करने वाले इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में...

कुपुत्र योग

"पंचमेश यदि छठे भाव में हो पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो कुपुत्र योग होता है" बृहद पराशर होरा शास्त्र अध्याय 24 श्लोक 54 किसी भी जन्म कुंडली में पंचम भाव संतान का है और पंचम भाव के स्वामी से भी संतान का ही विचार किया जाता है। छठा भाव रोग ऋण शत्रु का है।  साथ ही काल पुरुष की कुंडली में गुरु संतान का कारक है। एवं पंचम भाव का स्वामी सूर्य भी पुत्र संतान का प्रतिनिधित्व करता है। यदि पंचमेश छठे भाव में चला जाता है और पापी ग्रहों से पीड़ित हो तो तो जातक का संतान अपने पिता से शत्रुवत व्यवहार करता है , जातक अपने संतान के लिए चिंतित रहता है।  सूर्य , गुरु और पंचम भाव भी ऐसे में पीड़ित हो तो जातक को अपने पुत्र से शत्रुता रहता है। ऐसा जातक पुत्र के सुख से वंचित रहता है। यदि संतान हो तो या दत्तक पुत्र हो तो वह भी उसे सुख प्रदान नहीं करता। ऐसा संतान कु कृत्यों में लिप्त रहता है। परिवार के नाम और सम्मान को मिट्टी में मिला देता है। 

बेटियों को चाहिए न्याय

आज ट्यूटर में देख रहा हूं हथरस मामले में राजनीतिक पार्टी और उसके नुमाइंदे या अनुनायी कहे जो एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। मात्र राजनीति के लिए शब्दों का बाण चला रहे हैं।  ऐसे समय में जबकि लोगों को अपनी राजनीतिक पार्टी को भूल कर सिर्फ बेटी को न्याय दिलाने के मामले में लिखना चाहिए। परंतु खेल कुछ और ही खेला जा रहा है। उदाहरण दे रहे हैं कि इस राज्य में इतना केस  दर्ज है  उस राज्य में उतना केस है।  एक दूसरे को पर आरोप-प्रत्यारोप कर मात्र राजनीतिक बयानबाजी चल रहा है। परंतु किसी को बेटी की चिंता नहीं है। अपराध चाहे किसी भी राज्य में हो। अपराध तो अपराध है। साथ ही कुछ अधिक चलाक लोग। पीड़ित बेटी को राजनीतिक रोटी सेकने के लिए जाति विशेष वर्ग विशेष के दायरे में बांटने से भी पीछे नहीं रहते। दोषियों को भी जाति विशेष धर्म विशेष वर्ग विशेष में बांट कर देखते हैं। इस प्रकार से बांटना ही किसी भी आंदोलन को कमजोर कर देता है। भले राजनीतिक पार्टी वाले अपने राजनीतिक स्वार्थ पूरा कर ले। परंतु बेटी को न्याय प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होता है। अपराधी को सिर्फ अपराधी समझे ना तो उसके जात दे...

दमा रोग के ज्योतिष कारण

श्वास नली में म्यूकस जमा हो जाने के कारण होता है। जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है और सूजन के कारण श्वास नली संकुचित हो जाता है । जन्म कुंडली में तृतीय एवं चतुर्थ भाव के मध्य का स्थान श्वसन प्रणाली का नेतृत्व करता है। तृतीय भाव श्वास नली एवं चतुर्थ भाव फेफ़डो का होता है। श्वास नली एवं फेफड़े आपस में जुड़े रहते हैं। यह सारा तंत्र श्वसन प्रणाली कहलाता है। इसलिए दमा रोग श्वसन प्रणाली के गड़बड़ी के कारण होता है। तृतीय भाव और चतुर्थ भाव का इस रोग में विशेष महत्व है। तृतीय भाव का कारक ग्रह मंगल है एवं चतुर्थ भाव का कारक ग्रह चंद्रमा है। तृतीय भाव में मिथुन राशि एवं चतुर्थ भाव में कर्क राशि पड़ता है , काल पुरुष की कुंडली में जो कि श्वसन प्रणाली का नेतृत्व करते हैं। जिसके परस्पर स्वामी ग्रह बुध एवं चंद्रमा है। इसलिए तृतीय भाव, चतुर्थ भाव, मंगल, चंद्रमा एवं बुध जब जातक की कुंडली में दूषित प्रभाव ( शनि, राहु ..) में रहते हैं तो दमा रोग होता है। दशा अंतर्दशा एवं गोचर में जब उपयुक्त भाव एवं ग्रह प्रभावित होते हैं । उस समय दमा रोग  घेर लेता है यदि मारकेश की दशा चल रहा हो तो यह जानलेवा भी हो ज...

अनुराधा नक्षत्र के व्यवसाय

इस नक्षत्र का विस्तार वृश्चिक राशि में 3 अंश 20 कला से 16 अंश 40 कला तक रहता है । इस नक्षत्र में चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर --"ना" , प्रथम चरण स्वामी ग्रह -- सूर्य । द्वितीय चरण अक्षर -- "नी " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- बुध । तृतीय चरण अक्षर -- "नू " , तृतीय चरण स्वामी ग्रह -- शुक्र । चतुर्थ चरण अक्षर --" ने " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह --मंगल । वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है । अनुराधा नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है ।  इस नक्षत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवसाय आते हैं :- जो लोग सम्मोहन का काम करते हैं वह इस नक्षत्र के अंदर आते हैं अर्थात सम्मोहन कर्त्ता, जो भूत-प्रेतों से संपर्क साधने की बात करते हैं, वह भी इस नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं। तांत्रिको को भी इसी नक्षत्र के अन्तर्गत माना गया है ।संस्था का प्रमुख, प्रतिष्ठान का अध्यक्ष, ज्योतिषी आदि इस नक्षत्र के भीतर आते हैं. रात में ड्यूटी देने वाले, नगर अथवा बस्ती में रात की पहरेदारी अथवा चौकीदारी का काम, फोटोग्राफर, सिनेमा संबंधी काम, कला, संगीत प्रस्तुति आदि इस नक्षत्र के अन्तर्गत माने ...

पुत्र द्वारा विदेश कीर्ति योग

 ✍️ Astro Rajeshwer Adiley "पंचम भाव का स्वामी सातवें भाव में हो, पंचमेश उच्च ,मित्र राशि में स्थित हो और शुभ ग्रहों द्वारा देखा जाता हो तो यह योग बनता है" यह योग कर्क लग्न कुंभ लग्न और मीन लग्न की कुंडली में बनता है। कर्क लग्न कुंडली में पंचमेश सप्तम भाव में हो तो उच्च होता है , जबकि कुंभ लग्न और मीन लग्न की कुंडली में पंचमेश मित्र राशि में होता है। साथ ही पंचमेश सप्तम भाव में स्थित होकर शुभ ग्रह अर्थात पक्ष बली शुभ चंद्र , गुरु और शुक्र की दृष्टि में हो तो यह योग घटित होता है। इस योग के फल स्वरुप ऐसे जातक का पुत्र अपने जन्म स्थान जन्मभूमि को त्याग कर परदेस जाता है तथा अपनी योग्यता से विदेश में खूब धन रुपया एवं यस कमाता है।

जेष्ठा नक्षत्र के व्यवसाय

इस नक्षत्र का विस्तार वृश्चिक राशि में 16 अंश 40 कला से लेकर 30 अंश तक रहता है। इस नक्षत्र में चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर --"नो " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह -- बृहस्पति । द्वितीय चरण अक्षर -- "या " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह -- शनि । तृतीय चरण अक्षर -- "यी " , तृतीय चरण स्वामी ग्रह -- शनि । चतुर्थ चरण अक्षर --" यू " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह -- गुरू ।  वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है । ज्येष्ठा नक्षत्र का स्वामी ग्रह बुध है ।  इस नक्षत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवसाय आते हैं :- इस नक्षत्र के अधिकार में सुरक्षा व चौकीदारी के काम आते हैं, सरकारी कर्मचारी, प्रबन्धक, व्यवस्थापक, संवाददाता आदि आते हैं । रेडियो कलाकार, दूरदर्शन कलाकार, समाचार वाचक, आँखों देखा हाल सुनाने वाले कमेंटेटर, अभिनेता आदि भी इस नक्षत्र के अधिकार में आते हैं। व्याख्यान दाता, प्रबन्धनकर्त्ता, कथावाचक, अग्निशमन कर्मचारी, व्यापार संघ का सक्रिय सदस्य अथवा नेता, तांत्रिक, गुप्तचर, माफिया, राजनेता आदि भी इस नक्षत्र के अंतर्गत आते हैं । अफसरशाह, उच्च पदाधिकारी, जलयान सेवा, वन अध...

सुसंतान योग

"यदि पंचम भाव में पंचमेश स्व ग्रही हो तो सुसंतान योग बनता है।" योग का अर्थ है कि मेष लग्न में पंचम भाव में सूर्य हो, वृषभ लग्न में पंचम भाव में बुध हो, मिथुन लग्न में पंचम भाव में शुक्र हो, कर्क लग्न में पंचम भाव में मंगल हो, सिंह लग्न में पंचम भाव में गुरु हो, कन्या लग्न में पंचम भाव में शनि हो, तुला लग्न में पंचम भाव में शनि हो, वृश्चिक लग्न में पंचम भाव में गुरु हो, धनु लग्न में पंचम भाव में मंगल हो, मकर लग्न में पंचम भाव में शुक्र हो, कुंभ लग्न में पंचम भाव में बुध हो, मीन लग्न में पंचम भाव में चंद्रमा हो । साथ यह ध्यान रखें कि पंचम भाव पंचमेश पुत्र कारक गुरु और सूर्य किसी भी प्रकार से पाप पीड़ित ना हो तो ऐसा संतान पूर्व जन्म के शुभ कार्यों से प्राप्त होता है। ऐसा संतान पर ईश्वर की कृपा सदा रहता है। ऐसे संतानों को शुभ फल और पुण्य प्राप्त होते हैं। या एक शुभ योग है। ऐसे जातक की संतान अपने माता पिता को पूर्ण सुख प्रदान करते हैं। और जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं।