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Showing posts from August, 2020

भूलना

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अकसर हम लोग असानी से वस्तुएँ या कुछ बाते भूल जाते है । जैसे - मुलाकाते , समाजिक समारोह , जन्मदिन या शादी का वर्ष गांठ , पढ़ी हुई पाठ आदि  । हमें इस याददाश्त में आ रही कमी का पता लगाना चाहिए । आप थोड़ा दिमांग में ज़ोर देंगे तॉ आप पायेंगे कि एक ही समय में हमारे दिमाग़ में अनेक बात चलता रहता है , इस कारण एक विषय पर ध्यान केंद्रीत करना मुश्किल हो जाता है  , या किसी बात के कारण क्रोधीत होते है , घबराते रहते है या डर भी लगा रहता है । अर्थात हम तनाव में रहते है ।। तनाव ही वह मुख्य कारण है हमारे याददाश्त कमज़ोर होने का । हमें तनाव से बचना चाहिए ।  यदि एक साथ अनेक बात दिमाग़ में आता है तो सकरात्मक चिंतन की आदत डाले । साथ ही सकरात्मक चिंतन को कापी में लिखते जाये । और ध्यान करे । ख़ास कर  "ज्ञान मुद्रा " ।

जब पत्नी की कमाई पति से अधिक हो जाए

भारत में महिलाएं अब जाकर घर से निकल कर अपना नाम और अर्थ उपार्जन कर रही है। ताकि आर्थिक रूप से उनका परिवार आत्मनिर्भर हो सकें। भारत एक रूढ़िवादी देश है ऐसा माना जाता है और अधिकांश लोग यह मानते भी हैं यहां स्त्री के पैसे से पति का एवं घर का खर्च चले तो समाज उस पुरुष को हिकारत की नजर से देखता है। समय-समय पर उसके परिवार रिश्तेदार समाज दोस्त उसे ताना मारते हैं। जिससे पुरुष का व्यवहार बदलने की लग जाता है। स्थिति और भी खराब होने लगता है जब पत्नी की कमाई पति के कमाई से अधिक होने लगे।  टॉइम्स ऑफ इंडिया  में छपी एक खबर के मुताबिक अमेरिकी शोधकर्ताओं ने 6000 शादीशुदा जोड़ों पर 15 साल तक अध्ययन किया है । इस शोध में यह पाया गया कि जब पत्नी कि कमाई घर की आय का 40 फीसदी से अधिक हो जाए तो पतियों में व्याकुलता बढ़ जाती है ।शोधकर्ताओं के मुताबिक जब तक पत्नी घर खर्च में हाथ बंटाती है तब तक तो ठीक है, लेकिन एक बार उसकी कमाई पति से ज्यादा या आसपास भी हुई तो पुरुष असुरक्षित हो जाते हैं । यह शोध अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ के वैज्ञानिकों ने की है । इसमें पाया गया कि जो पति अपने गुजारे के लिए पूरी ...

दांत के रोग

ज्योतिष से भी दांत सम्बन्धी कष्ट को जाना जा सकता है। जन्म कुंडली के प्रथम भाव, द्वितीय भाव, सप्तम भाव मेष राशि, वृषभ राशि और तुला राशि दांत को प्रभावित करते हैं। यदि यह भाव राशि और भावेश पाप प्रभाव में हो 6 8 12 में हो और पापी ग्रह से पीड़ित हो तो दांत के रोग होते हैं। यहां दांत सम्बन्धी कुछ योग दे रहे हैं जिससे आप यह ज्ञात कर सकते हैं कि जातक को दंत रोग होगा या नहीं होगा तो कब।  1. शनि-राहु दांतों में दर्द और रोग उत्पन्न करते हैं। दांतों की तीन मुख्य परतों में पहली और दूसरी परत, अर्थात दंत वल्क और दंत धातु पर सूर्य का प्रभाव रहता है। तीसरी परत पर चंद्र और मंगल का प्रभाव रहता है।   2. जब सूर्य, चंद्र, मंगल शनि-राहु से पीड़ित होते हैं तो दंत रोग  होता है।  3. द्वितीय भाव मुख का है और यदि द्वितीय भाव भी शनि-राहु से युत या  दृष्ट है तो दंत रोग या दांतों की सुंदरता पर प्रभाव पड़ता है।  4. लग्न और लग्नेश यदि शनि-राहु से युत या दृष्ट है तो दंत रोग हो सकते हैं।  5. द्वितीयेश षष्ठेश के साथ युत होकर अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो दंत रोग होते हैं।     ...

पुनर्वसु नक्षत्र के व्यवसाय

इस  नक्षत्र का विस्तार मिथुन राशि में 20 अंश से कर्क राशि में 3 अंश20 कला तक रहता है । इस नक्षत्र में चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर - " के " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह मंगल । द्वितीय चरण अक्षर - " को " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह शुक्र । तृतीय चरण अक्षर -" हा " , तृतीय चरण स्वामी ग्रह बुध । चतुर्थ चरण अक्षर - " ही " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह चन्द्रमा । पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी ग्रह गुरू है। इस नक्षत्र के प्रथम तीन चरण मिथुन राशि में चतुर्थ चरण कर्क राशि में आता है ।मिथुन राशि का स्वामी बुध है , कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा है । होटल, रेस्तरां व्यवसाय, पर्यटन व्यवसाय, अंतरिक्षयान सेवा, परिवहन सेवा मे कार्यरत कर्मचारी, आदि पुनर्वसु नक्षत्र में आने वाली सेवायें है । सिनेमा, रेडियो तथा दूरदर्शन के कलाकर, उपग्रह संचार प्रणाली, कूरियर तथा डाक सेवा प्रणाली आदि सभी प्रकार की संचार प्रणालियाँ भी पुनर्वसु नक्षत्र के अंतर्गत आती हैं. अध्यापन तथा हर तरह का प्रशिक्षंण देने का कार्य आदि पुनर्वसु नक्षत्र के अंतर्गत आते हैं। हर प्रकार के प्रबंधन कार्य जैसे मंदिर...

ग्रहों के वस्त्र

वस्त्र जहां हमारे खूबसूरती को उभारता है। वही इसका प्रयोग हम अपने शरीर को ढकने के लिए भी करते हैं। वस्त्र हमें वातावरण के प्रभाव से भी बचाता है। ठंडी में गर्म कपड़े पहनते हैं और गर्मी में हल्के कपड़े पहनते हैं। वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह के अपने वस्त्र हैं। इन वस्त्रों के प्रयोग से ग्रहों के शुभ प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है।  सूर्य मोटा कपड़ा , मोटी बुनाई वाला , खुरदरा खादी या हाथ करघे की रेशम , सर्ज , ऊनी शूटिंग आदि कपड़े सूर्य के होते हैं। चंद्रमा नया , अप्रयुक्त , कोरा जिसे अभी पहनाना हो, जो वस्त्र सुंदर दिखने वाला हो , मुलायम महीन वस्त्र हो आदि कपड़े चंद्रमा के होते हैं। मंगल अग्नि से मामूली जला हुआ , स्टीम प्रेस किया हुआ , एसिड वॉश, स्टोनवॉश कपड़ा मंगल के कपड़े होते हैं। बुध पानी में भीगा हुआ , कलफ लगा हुआ , हल्का गीला कपड़े बुध के होते हैं। गुरु ना बहुत पुराना ना बिल्कुल नया कपड़े गुरु के होते हैं। शुक्र मजबूत रेशमी , ऊनी या सूती कपड़े शुक्र के होते हैं। शनि पुराना , घिसा हुआ या फटा हुआ या चीर चीर हुआ कपड़े शनि के होते हैं। नोट उपयुक्त वस्त्र का विचार प्रसव के समय या घटना ...

आर्द्रा नक्षत्र के व्यवसाय

मिथुन राशि में 6 अंश 40 कला से लेकर 20 अंश तक रहता है । इस नक्षत्र के चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर - " कू " , प्रथम चरण स्वामी ग्रह  - गुरु । द्वितीय चरण अक्षर "घ" , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह शनि । तृतीय चरण अक्षर " ड" , तृतीय चरण स्वामी ग्रह शनि । चतुर्थ चरण अक्षर " छ" , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह गुरु ।   आर्द्रा नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु है। आर्द्रा नक्षत्र मिथुन राशि में आता है । इस राशि का स्वामी ग्रह बुध है । विद्युत उपकरणो की मरम्मत करने वाला कारीगर, विद्युत अभियंता, विशेष परिश्रम करने वाले, शारीरिक श्रम में मजदूर वर्ग तथा मानसिक श्रम में वैज्ञानिक, गणितज्ञ, शोधकर्ता, उपन्यासकार, लेखक, दार्शनिक, आदि इस नक्षत्र में आते हैं. ध्वनि प्रौद्योगिकी, संगीतज्ञ, फोटोग्राफर, कंप्यूटर पर नक्शे व डिजाइन बनाने वाले (Graphics Designer),कंप्यूटर प्रोग्रामर, इलैक्ट्रानिक या कंप्यूटर व्यवसाय से जुड़े लोग भी इसी नक्षत्र के अंतर्गत आते हैं. औषधि निर्माता, मूर्छित करने वाले चिकित्सक / डॉक्टर,शल्य- चिकित्सक, विष- चिकित्सक, मनोचिकित्सक, नेत्र विशेषज्ञ, रसायन तथ...

ग्रहों के रत्न

 आज के समय में रत्नों के प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। आप प्रायः लोगों के हाथों में रत्न पहने हुए देख सकते हैं। इनको पहनने के पीछे कारण होता है ग्रहों के कुप्रभाव को दूर करना और सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर ग्रहों से संबंधित सकारात्मक फल प्राप्त करना। रत्नों का अपना वैज्ञानिक आधार भी है जो रंग चिकित्सा पर आधारित है । हम सभी को ज्ञात है कि हमारी धरती में मुख्य उर्जा का स्रोत सूर्य ग्रह है तथा सूर्य के प्रकाश में सात रंग पाए जाते हैं । सौर मंडलीय किरणों का प्रभाव समस्त जीव जंतुओं पर पढ़ता है । प्रत्येक ग्रह का अपना एक किरण होता है इसी किरण के गुण को हम रत्नों के माध्यम से ग्रहण कर पॉजिटिव उर्जा में वृद्धि करते हैं। सूर्य   इस ग्रह से संबंधित रत्न माणिक्य है। चन्द्र                              इस ग्रह से संबंधित रत्न मोती है। मंगल                             इस ग्रह से संबंधित रत्न मूंगा है। बुध         ...

ग्रह के देवता

सूर्य सूर्य के देवता अग्नि , रूद्र , शिव है। चंद्र चंद्र के देवता जल है अर्थात चन्द्र के लिए जल पूजा, जल से शिवजी का अभिषेक , शुभ राशि का चंद्रमा हो तो जलगत भगवान विष्णु याद शालिग्राम का अभिषेक करें। मंगल मंगल के लिए कार्तिकेय या हनुमान जी की पूजा करना चाहिए। बुध बुध के लिए विष्णु जी का या दुर्गा जी का पूजा करना चाहिए। गुरु गुरु के लिए इंद्र, ब्रह्मा, विष्णु जि का पूजा करना चाहिए। शुक्र शुक्र के लिए इंद्राणी , देवी , लक्ष्मी या स्त्री देवियों का पूजा करना चाहिए। शनि शनि के लिए ब्रह्मा शमशान वासी भैरव के रूप में शिव जी का पूजा करना चाहिए। राहु राहु के लिए शेषनाग या सरस्वती जी का पूजा करना चाहिए ‌। केतु केतु के लिए गणेश जी का पूजा करना चाहिए। नोट जो ग्रह निर्बल होते हैं, उसके देवता का पूजा एवं उसके मंत्रों का जाप करना चाहिए।

मोहब्बत शायरी

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सतनामी समाज की उत्पत्ति भाग 2

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🌹🌹 विभिन्न लेखकों द्वारा सतनामी समाज के उत्पत्ति के परिकल्पना#भाग02#🌹🌹 आस्करलोर ने सतनामीयों को पंजाब प्रांत से आये हैं।ऐसा माना है । उसने अपने 20नवंबर1880 के रिपोर्ट में ऐसा लिखा है। Oscar Lohr suggest the Satnami came from the panjab, letter 20 November 1880 quoted in central Provinces, इसी तरह बेगलर लिखते हैं कि शायद वे बिहार से आये हैं, क्योंकि उतर भारत के कुछ out caste के लोगों ने दक्षिण भारत के ओर प्रवास किया था। उनके ऐसा सोचने का कारण मात्र प्रोविंस में उद्धृत  चमार जाति है।  The arciologist, Begler, speculated, they were from Bihar , as I heard a story about 36 house's or families of chamars who had migrated south, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। C.p. Census 1881 पृष्ठ 35 में मिस्टर बैनर्जी  जो रायपुर के निवासी थे और सतनामीयो के बारे में अध्ययन करते थे। वे लिखते हैं कि:- सतनामी समाज में कुछ भी ऐसा नहीं पाया गया कि जिससे यह सिद्ध हो सके कि यह उत्तर भारत ( बिहार - उत्तर प्रदेश) से  प्रवासित हुए थे। इनके भाषाएं और आदतों में ऐसा कुछ भी समानता नहीं है जो उत्तर भारत ...

ग्रहों के धातु

सूर्य सूर्य का धातु तांबा है । चंद्रमा चंद्रमा का धातु मणि, चांदी है मंगल मंगल का धातु तांबा है। बुध बुध का धातु सोना और कांसा हैं। गुरु गुरु का धातु सोना है। शुक्र शुक्र का धातु चांदी है। शनि शनि का धातु लोहा है। राहु राहु का धातु रांगा है। केतु केतु का धातु मिश्रित धातु है। विशेष चंद्रमा की धातु या द्रव्य मणि अर्थात विभिन्न मणियां है। इनमें वास्तविक व बनावटी सभी प्रकार की मणियां सम्मिलित है। इसका उपयोग सूतिका ग्रह में स्थित पदार्थ, नष्ट प्रश्न ,अपहृत प्रश्न मेंं किया जाता है। साथ ही ग्रह दोष के शमन के लिए ग्रहों के धातुु का उपयोग कियाा जाता है। ग्रहोंं की दशा काल में ग्रह से संबंधित धातु से लाभ हो तो लाभ प्राप्त होता है और यदि ग्रह सेेेे संबंधित धातु यदि अनिष्ट कारक हो तो अनिष्ट फल प्राप्त होता है।

सतनामी समाज की उत्पत्ति भाग 1

🌹🌹  विभिन्न लेखकों द्वारा सतनामी समाज के उत्पत्ति की परिकल्पना 🌹🌹 सतनामी समाज के उत्पत्ति के संबंध में बहुत सी अवधारणा प्रचलित हैं।  विभिन्न लेखकों ने अपने मत तथा अनुसंधान अनुसार विभिन्न मत प्रस्तुत किया है। जिसमें अधिकांश आधुनिक समाज में से संबद्ध रखता है। बहुतेरे उद्धरण 15 वी शताब्दी में प्रचलित धर्म एवं पंथ से संबंधित है। जबकि सतनामी समाज के लेखक, चिंतक, विचारक साहित्यकार सहित, कुछ अंग्रेजी लेखक जैसे - हैविट ,  बैगलर, सी यु विल्स,मैकडावने  तथा भारतीय में मिस्टर बैनर्जी, तथा वर्तमान में पद्मश्री प्राप्त ख्याति पुरातत्ववेत्ता श्री अरुण शर्मा ने भी सतनामी समाज का संबंध सिन्धु घाटी के सभ्यता से जोड़ा है।  विभिन्न उद्धरणों और तथ्यों का अध्ययन करने से एक निष्कर्ष अवश्य यह निकलता है कि सतनामी समाज श्रमण परम्परा से संबंधित है। जो प्राचीन काल से ही दैववाद और धार्मिक कर्मकांड के अवधारणा से मुक्त हैं।  रायपुर गजेटियर 1869 पृष्ठ 33 में हैविट लिखते हैं कि:- सतनामी प्राचीन निवासी के रूप में समुचे जिला में बसे हुए हैं। परन्तु वे अपने अधिकाधिक बसाहट के बावजूद वे यह ...

रोहिणी नक्षत्र और व्यवसाय

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वैदिक ज्योतिष में रोहिणी नक्षत्र चतुर्थ नक्षत्र है जोकि  वृष राशि में 10 अंश से 23 अंश 20 कला तक रहता है. रोहिणी नक्षत्र के चार चरण होते है । प्रथम चरण अक्षर  -"ओ" , प्रथम चरण स्वामी ग्रह - मंगल । द्वितीय चरण अक्षर- " वा " , द्वितीय चरण स्वामी ग्रह  - शुक्र ।     तृतीय चरण अक्षर -"वी  " , तृतीय चरण अक्षर स्वामी ग्रह - बुध । चतुर्थ चरण अक्षर -"वू " , चतुर्थ चरण स्वामी ग्रह  - चन्द्र ।  इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह चन्द्रमा है।  यह नक्षत्र   वृष राशि में आता है । राशि स्वामी शुक्र है ।  रोहिणी नक्षत्र में वे सभी कार्य आते हैं जिनमें खाद्य पदार्थों को उगाकर, उन्हें विकसित तथा संशोधित करके जातक अपनी आजीविका चलाता है. पेड़ – पौधों से संबंधित वैज्ञानिक व शोधकर्ता आदि, वनस्पतियों व वन औषधियों से आजीविका चलाने वाले व्यक्ति इस नक्षत्र में आते हैं. रोहिणी नक्षत्र वृष राशि में आता है इसलिए रोहिणी नक्षत्र वाले जातक संगीत, कलाकार या लोगों का मनोरंजन कर धन व यश पाते हैं. सौन्दर्य व फैशन, हर प्रकार की रुप सज्जा चाहे वो मंच को सजाने का काम...

देवदास बंजारे जी

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सत सत नमन देवदास 1 जनवरी 1947 को तत्‍कालीन रायपुर जिले के धमतरी तहसील के अंतर्गत एक छोटे से साधन विहीन गांव सांकरा में जन्‍मा व दुर्ग जिले के उमदा गांव में पला बढा । स्‍टील सिटी भिलाई के पास के गांव धनोरा नें देवदास को ठिकाना दिया । देवदास स्‍कूल के समय का धावक था छत्‍तीसगढ का प्रिय खेल कबड्डी का वह राज्‍यस्‍तरीय चेम्पियन था । अत्‍यंत तंगहाली के दिनों से उसने अपना जीवन प्रारंभ किया । उसके पास न तो पहनने को ढंग से कपडे थे न ही खाने का इंतजाम, दिन भर खेतों में मेहनत मजूरी कर के उसका व उसके परिवार का पेट पलता था । गुरू घासीदास सामाजिक चेतना एवं दलित उत्‍थान सम्‍मान व माधवराव सप्रे पुरस्‍कार प्राप्‍त पुस्‍तक “आरूग फूल” में परदेशीराम वर्मा जी देवदास के संपूर्ण व्‍यक्तित्‍व को बडे भावनापूर्ण ढंग से प्रस्‍तुत किये हैं जो आरूग फूल की विषय वस्‍तु हैं । वर्मा जी बताते हैं - “ देवदास का बचपन का नाम जेठू था । बडी माता के प्रकोप से उसके शरीर का एक परत का मांस उतर गया । जेठू को राख बिछा कर सुलाया जाता था, उसकी मा देवता से उसके जीवन की मनौती मनाई थी । धीरे धीरे जेठू ठीक हो गया देवताओं से मनौती के फलस...

क्लीव योग

जिस कन्या के जन्म काल में सप्तम स्थान में बुध और शनि स्थित हो तो उसका पति क्लीव ( नपुंसक ) सदृश्य होता है।  हस्त रेखा से  1, यदि शुक्र पर्वत जरूरत से ज्यादा दबा हुआ हो । 2, यदि हथेली में शुक्र मुद्रिका हो तथा बुध रेखा का शनि रेखा से संबंध हो । 3, हथेली के बीच में त्रिकोण हो तथा उस पर बिंदु हो। 4, शुक्र पर्वत पर पीले रंग का तारक चिन्ह हो । 5, चंद्र पर्वत अत्यंत कमजोर तथा उस पर त्रिकोण का चिन्ह हो। 6, शनि रेखा तथा चंद्र रेखा  परस्पर  हो , उंगलिया मध्यम आकार की हो। क्लीव योग में जन्म लेने वाला जातक कायर कमजोर तथा नपुंसक होता है । वह काम कला में अपनी पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाता तथा उस पर पत्नी का व्यक्तित्व हावी रहता है। ऐसा व्यक्ति जोखिम भरे कार्यों से दूर रहता है तथा कोई भी नया कार्य करते समय मन ही मन हिचकिचाता  रहता है । यह लड़ाई झगड़ों में विश्वास नहीं करता तथा दूसरों की अधीनता में कार्य कर अपने जीवन को गुजार देता है।

ग्रहों की अवस्थाएं

वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहों के अवस्थाओं को मुख्य रूप से 10 भागों में बांटा गया है जोकि निम्न है। दीप्त जब कोई ग्रह अपने सर्वोच्च,  मूलत्रिकोण में हो तो प्रदीप्त या दीप्तावस्था वाला ग्रह कहलाता है। स्वास्थ्य जब कोई ग्रह जन्म कुंडली में स्व क्षेत्री हो तो स्वस्थ कहलाता है। मुदित जब कोई ग्रह जन्म कुंडली में अपने मित्र क्षेत्री हो तो मुदितावस्था कहलाता है। शांत जब कोई ग्रह जन्म कुंडली में शुभ ग्रहों के वर्ग में हो तो शांंतावस्था कल आता है। शक्त जब कोई ग्रह जन्म कुंडली में अधिक रश्मियों वाला सूर्य से दूर हो तो सख्त कहलाता है। पीड़ित जब ग्रह ग्रह युद्ध में पराजित हो तो पीड़ितावस्था कहलाता है। दीन  जन्म कुंडली में जब कोई ग्रह शत्रु राशि नवांश में हो तो दीनावस्था कहलाता है। कल जब कोई ग्रह जन्म कुंडली में पाप वर्गों में हो तो खलावस्था कहलाता है। भीत जब कोई ग्रह जन्म कुंडली में नीच राशि गत हो तो भीतावस्था कहलाता है। विकल जब कोई ग्रह जन्म कुंडली में अस्त गत हो तो विकलावस्था कहलाता है। नोट सरावली में दीन या दुखी अवस्था ( शत्रु राशि नवांश गत) नहीं कहा गया है।

धातु आदि ग्रहों

वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक ग्रह को मूल जीव मिश्रित और धातु प्रधान विभाग में बांटा गया है इसका प्रयोग व्यापार के संबंध में निर्णय लेते हुए करना चाहिए साथ ही मुक प्रश्न विचार में किया जाता है। चंद्रमा और सनी मूल प्रधान ग्रह है। गुरु और शुक्र जीव प्रधान ग्रह हैं। बुध मिश्रित प्रधान ग्रह है। सूर्य मंगल और राहु धातु प्रधान ग्रह है।

ग्रहों का शाखाधिपत्यादि

सरावली के मत के अनुसार ग्रहों को निम्न वेदों का अधिकार दिया गया है। तथा या मत प्रचलित भी है । एक विचार यह भी है कि जो ग्रह बलवान हो उसी के वेद मंत्रों को पूजा में प्रयोग करें तो विशेष शुभ होता है। अथवा अनिष्ट ग्रह शांति में तत्तव्वेदोक्त विधानो का ही प्रयोग करें। गुरु - ऋग्वेद शुक्र -यजुर्वेद मंगल-सामवेद बुध - अथर्ववेद

ग्रहों की आयु

वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में जो ग्रह बली होगा। वह ग्रह अपनी अवस्था आने पर जातक को उस उम्र में अपना अच्छा फल देगा। साथ ही यदि उस उम्र में उस ग्रह की दशा अंतर्दशा भी आ जाए तो उस काल में विशेष ग्रह संबंधित फल प्रदान करेगा। सूर्य अपना फल 22 वर्ष के उम्र में देता है। चंद्रमा अपना विशेष फल 24 वर्ष के उम्र में प्रदान करता है। मंगल अपना विशेष फल 28 वर्ष की आयु में प्रदान करता है। बुध अपना विशेष फल 32 वर्ष की आयु में प्रदान करता है। गुरु अपना विशेष फल 16 वर्ष की आयु में प्रदान करता है। शुक्र अपना विशेष फल 25 वर्ष की आयु में प्रदान करता है। शनि अपना विशेष पर 36 वर्ष की आयु में प्रदान करता है। राहु अपना विशेष फल 42 वर्ष की आयु में प्रदान करता है। केतु अपना विशेष फल 48 वर्ष की आयु में प्रदान करता है।

ग्रहों के संचार या निवास स्थान

जलाशय निवास चंद्रमा , शुक्र जलीय ग्रह है इसलिए इनको जल के निकटवर्ती स्थान , जलाशय में भ्रमण करते हैं और इन्हें यह स्थानीय अधिक प्रिय है। विद्वानों की बस्ती बुध व गुरु विद्वानों की बस्ती में रहना पसंद करते हैं क्योंकि बुध बुद्धि का कारक है और गुरु ज्ञान का कारक इसलिए इनके घर गांव आदि में निवास करना इन्हें प्रिय है। पर्वत व वनचारी मंगल , राहु , शनि , केतु व सूर्य ग्रह पर्वत , वन जैसे स्थानों में रहना पसंद करते हैं इसलिए इन्हें पर्वत व वनचारी ग्रह कहा जाता है। नोट  जन्म कुंडली वह प्रश्न कुंडली में  बलवान ग्रह के आधार पर स्थानों का निश्चय किया जाता है। वृह्दजातक एवं वराह मत के अनुसार निवास स्थान सूर्य सूर्य का निवास स्थान देवस्थान , मंदिर , पर्वतों , वनों उद्यानों में होते हैं। चंद्रमा चंद्रमा का निवास स्थान जल स्थान, समुद्र , नदी , तालाब   , स्विमिंग पूल , घर में पानी रखने के स्थान , स्नानागार , पानी की टंकी और वाटर सप्लाई के स्थान आदि होते हैं। मंगल अग्नि स्थान , चूल्हा , रसोई , होटल का किचन , भट्टी , शमशान , यज्ञ भूमि , बौद्ध विहार और आश्रम आदि मंगल के निवास स्थान होते हैं...

विभिन्न भाव में गुरु का फल

महिला की कुंडली में गुरु की भूमिका- गुरु महिलाओं का सौभाग्यवर्द्धक तथा संतानकारक ग्रह है।  जन्म कुंडली में गुरु 1,2,4,5,11,12 में शुभ फल तथा 3,6,7,8,10 में पापी ग्रहों से प्रभावित हो तो अशुभ फल देता है।  स्त्रियों की कुंडली में गुरु 7वें तथा 8वें भाव को अधिक प्रभावित करता है।  सप्तम अष्टम मकर-कुंभ का अकेला गुरु पति-पत्नी के सुख में कमी लाता है। कर्क लग्न में मकर राशि का गुरु नीच का होने के कारण एवं 6 ठे भाव का प्रभाव भी रहता है। सिह लग्न में कुंभ राशि का गुरु अष्टमेश का प्रभाव देता है ।  जलतत्वीय या कन्या राशि का सप्तम का गुरु हो साथ ही गुरु पाप प्रभाव में होने पर पति-पत्नी के संबंध मधुर नहीं रहते।  गुरु शनि से प्रभावित होने पर विवाह में विलंब कराता है। गुरु, राहु के साथ होने पर प्रेम विवाह की संभावना बनती है।  महिला कुंडली में आठवें भाव में बलवान गुरु विवाहोपरांत भाग्योदय के साथ सुखी वैवाहिक जीवन के योग बनाता है।  आठवें भाव में वृश्चिक या कुंभ का गुरु ससुराल पक्ष से मतभेद पैदा कराता है। गुरु यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो ...

बाधक ग्रह

चर लग्न से एकादश स्थान के स्वामी को बाधक ग्रह कहते है । स्थिर लग्न से नवम भाव के स्वामी को बाधक ग्रह कहते है । द्विस्वभाव लग्न से सप्तम भाव के स्वामी ग्रह को बाधक ग्रह कहते है । बाधक अधिपति जिस भाव में हो उस भाव में समस्या देता है । बाधक लग्न और बाधकेश मुहूर्त का नियम है इसे कुण्डली में नहीं लगाना चाहिए । बाधक अधिपति यदि शुभ भाव का स्वामी है तो शुरूवात में समस्या देगा , परंतु आगे शुभ फल देगा । बाधकेश लग्न में बैठने पर ही बाधा देता है , बाकी अन्य भाव पर बैठने पर बाधा नहीं देता । बाधक ग्रह और 6, 8,12 के स्वामी युति करे तो अधिक अनिष्ट कारी होते है । बाधक ग्रह अपने भाव से केन्द्र त्रिकोण में हो तो अधिक बाधक होते है ।  बाधक भाव में जो ग्रह हो वह भी बाधक ही होते है । बाधक ग्रह अपने भाव से 3,6,8 और 12 में हो तो कम अनिष्टकारी होते है ।

ग्रहों की शीर्षोदयादी संज्ञा

वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की संज्ञा को तीन भागों में बांटा गया है। शीर्षोदय इसके अंतर्गत शुक्र चंद्र और बुध ग्रह आते हैं। पृष्ठोदय इसके अंतर्गत सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु ग्रह आते हैं। उभयोदय इसके अंतर्गत बृहस्पति ग्रह आता है। उपयोगिता तीन संख्याओं का उपयोग दशा दशा फल में, प्रश्न कुंडली में किया जाता है।  पृष्ठोदय ग्रह अपनी दशा के अंतिम भाग में विशेष फल देता है शीर्षोदय ग्रह अपनी दशा के प्रारंभ में विशेष फल देता है। उभयोदय ग्रह अपनी दशा के मध्य में विशेष फल देता है। मान लीजिए आपके पास विवाह संबंधित प्रश्न आया है जिसमें 2 कन्याएं देखी गई है। दोनों ही अच्छी सुंदर सु संस्कारित है जिस में से किसी एक कन्या के साथ विवाह करना है। इस बात का निर्णय लेना आसान नहीं है कि किसके साथ विवाह करें। तो प्रश्न के समय प्रश्न कुंडली में यदि शीर्षोदय राशि लग्न में हो और शीर्षोदय ग्रह लग्न में हो तो जातक को बोले कि जिस कन्या को आप ने पहले देखा है उसी कन्या से विवाह करें।

संतान एवं स्त्री सुख

शास्त्रों का मत है कि मनुष्य को अपने जीवन में विवाह के पश्चात जब संतान सुख प्राप्त होता है तभी उसका जीवन पूर्ण होता है और वह सुखी दांपत्य जीवन कहलाता है। वैसे तो सुख दुख का निर्धारण लक्ष्य की प्राप्ति , मोहब्बत एवं पैसा जैसे अनेक चीजों को देखा जाता है। प्रत्येक मनुष्य के लिए सुख का कारण अलग-अलग हो सकता है , परंतु हम जन्म कुंडली में संतान और स्त्री सुख के विचार प्रस्तुत कर रहे हैं। संतान विचार के लिए पुरुष के कुण्डली में  सूर्य , शुक्र , गुरु , पंचम भाव , पंचमेश  , सप्तम भाव , सप्तमेश , अष्टम भाव , अष्टमेश , नवम भाव , नवमेश और लग्न , लग्नेश पर विचार करे । पंचम भाव में पंचमेश हो , सप्तम भाव में सप्तमेश हो । साथ ही पंचम भाव और सप्तम भाव में शुभ ग्रह स्थित हो या शुभ ग्रह की दृष्टि हो । तो संतान और स्त्री सुख की प्राप्ति होता है। लग्न और चंद्रमा  में जो अधिक बलवान हो उसे अधिक महत्व दें। पंचम स्थान संतान स्थान है , स्त्री सुख या विवाह सुख संतान होने पर ही पूर्ण होता है । यदि पंचम भाव भी स्वामी युक्त , शुभ ग्रह युक्त व शुभ ग्रह दृष्ट तो संतान की प्राप्ति स्पष्ट हो जाता है। अब सं...

अभिनय करो एवं लक्ष्य को पाने का प्रयास

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महेन्द्र सिंह धोनी , धीरू भाई अंबानी , मिलींद काम्बले , रूबेलोफ , मैग्नीफिशिएंट मायले  ,आर्थर , डब्ल्यू क्लीमेंट स्टोन आदि ऐसे अनेक व्यक्ति है जो अपना जीवन ग़रीबी थे किसी ने जूते पालीस किये , किसी ने अख़बार बेंचे , किसी ने दिहाडी मज़दूरी की फिर भी इन्होंने अपने लक्ष्य को प्राप्त किया । इनके समान ही लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते है तो इन्हें पढ़े , इनके जैसा बनने का अभिनय करे । अपने सपने को पुरा करने के लिए प्रति दिन आधा घंटा योजना बनाये  , उन लोगों कि अपेक्षा करो जो कहते है तुम नहीं कर सकते , उच्चे लक्ष्य के कठिन समस्या को हल करो , स्वयं को पहचानो , कर के दिखलाने का प्रयास करो , अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्र होने के लिए स्वयं को प्रेरणा दो , आपने जो पढ़ा , जो देखा , जो सोचा , और जो अनुभव किया , उसे इस्तेमाल करो ।   इसको अपने जीवन में अभ्यास तो करो मैं तुम्हे गारेटी देता हूँ , कि आप अपने लक्ष्य को ज़रूर प्राप्त करोगे ।

चंद्रमा की विशेष व्यवस्था

शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा तिथि से लेकर दसमीं तिथि तक चंद्रमा बढ़ता हुआ रहता है इस कारण से इस काल में मध्यम बली होता है। शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि से लेकर कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि तक चंद्रमा उत्तम बलि होता है। कृष्ण पक्ष के षष्ठी तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक चंद्रमा अल्प वीर्य अर्थात क्षीण ( हीन ) बली होता है। वराह के मत अनुसार कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि अमावस्या तिथि और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को चंद्रमा क्षीण बली होता है अर्थात इस समय चंद्रमा पापी होता है। पराशर के मतानुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि से लेकर शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि तक चंद्रमा क्षीण बली होता है। नोट जब हमने की थी का अध्ययन किया था तब हमने चंद्रमा के बारे में विशेष अध्ययन किया था प्रत्येक तिथि के अनुसार ।

शुभाशुभ ग्रह

सूर्य  क्रूर ग्रह है चंद्र, बुध , गुरु और शुक्र शुभ ग्रह हैं। क्षीण चंद्र , शनि,  राहु,  केतु , मंगल और पाप युक्त बुध  पाप ग्रह की श्रेणी में आते हैं। नोट  सूर्य आत्मा का कारक है, साथ ही सूर्य के करीब दूसरे ग्रह होने पर उस ग्रह को अस्त भी कर देता है। जिससे दूसरे ग्रह का प्रभाव क्षीण हो जाता है। भारतीय वैदिक ज्योतिष में सूर्य को क्रूर ग्रह कहा गया है। पापी ग्रह से अभिप्राय है जहां बैठते हैं और जिस भाव यह ग्रह को देखते हैं उसके फल में हानी करते हैं। शुभ ग्रह जिस भाव में बैठता है जिस ग्रह के साथ जहां बैठता है और जिस भाव को देखता है और जिस ग्रह को देखता है उस भाव के फल मैं वृद्धि करता है।  यह सामान्य नियम है।

दांपत्य जीवन में कलह के योग

1, सप्तमेश शत्रु क्षेत्री , नीच राशि का या अस्तगत होकर पाप  ग्रह से दृष्ट हो। 2, सप्तम भाव भी अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो। 3, सप्तमेश निर्बल हो,  षष्ठ , अष्टम, द्वादश भाव में स्थित है और पाप ग्रह देखते हो ।  4, यदि चंद्रमा सप्तम भाव में और सप्तमेश द्वादश भाव में हो , 5, वैवाहिक सुख का कारक शुक्र निच , अस्त का हो,  पाप ग्रह से दृष्ट , युति बना रहा हो । 6, स्त्री की कुंडली में गुरु पति का कारक होता है जो पीड़ित हो। 7, पति की कुंडली में शुक्र स्त्री का कारक होता है जो पीड़ित हो। 8, सप्तमेश का संबंध षष्ठेश , अष्टमेश या द्वादशेश के साथ बन रहा हो । यदि किसी जातक की कुंडली में इस प्रकार की स्थिति ज्यादा से ज्यादा हो तो वैवाहिक जीवन का आनंद नहीं ले पाता। उसे नित्य वैवाहिक जीवन में परेशानी का सामना करना पड़ता है।

यदि आपका बच्चा डरपोक होने लगे

यदि आपका बच्चा डरपोक एवं कायर बनते जा रहा है, तो जरा सोचिए ऐसा क्यों हो रहा है, आखिर आपने गलती कहां कर दी। और इसे सुधारने के लिए आप क्या कर सकते हैं जितना ज्यादा आप अपने बच्चे के बेहतरी के बारे में सोचेंगे निश्चित ही आपको नए रास्ते दिख मिलेंगे ही। ऐसा होने के पीछे कुछ कारण है- 1, आपके घर का माहौल-यदि आपके घर में अनावश्यक वाद विवाद होता है जिससे पति पत्नी या घर के और अन्य सदस्य आपस में चिल्लाने लग जाते हैं एक दूसरे को तो बच्चा इससे सहमत आता है डर जाता है और एक दायरा बना लेता है अपने लिए। जिस वजह से बच्चे अपनी बात को खुलकर किसी के सामने प्रकट नहीं कर पाते और उसमें दब्बू पन, कायरता जैसे अवगुण उत्पन्न होने लग जाते हैं। 2, यदि आपने अपने बच्चे की बहुत जल्दी जल्दी मदद कर देते हैं जिसके वजह से वह जरा सी भी दिक्कत में फंस जाए तो आप सामने आकर उसकी मदद करते हैं। 3, दो बच्चों के बीच में झगड़ा हुआ आप बीच में आ गए। 4, स्कूल में परीक्षा में कम नंबर आया , किसी गेम में हार गया तो आपने इस बात का इल्जाम टीचर पर लगाने लग जाते हैं। करने लग जाते हैं टीचर ने गड़बड़ किया है टीचर पक्षपाती है जैसे अनेक प्रकार क...

रज मुद्रा

मासिक धर्म के समय स्त्री के प्रजनन अंगों से निकलने वाली रक्त को रज कहते हैं।   रज एक विशेष गुण का नाम है जिसे रजोगुण कहा जाता है।   रज का अर्थ होता है जल।  मूलत: रज का संबंध स्त्री से है इसलिए यह मुद्रा विशेष तौर पर स्त्रियों के लिए है।  विधि पद्मासन सुखासन या वज्रासन में बैठ जाए। हाथ को फैलाकर घुटने पर रख ले , हथेली को आकाश की ओर रखें , कनिष्ठा उंगली अर्थात छोटी उंगली को मोड़ कर हथेली से मिलाएं शेष तीन उंगलियों को आपस में मिलाकर सीधी रखें। इसे रजमुद्रा कहते हैं। इस मुद्रा को दोनों हाथों में बनाएं। समय इस मुद्रा को प्रतिदिन 45 मिनट करना है यदि एक बार में नहीं कर सकते तो 15:15 मिनट दिन में तीन बार करें।   लाभ    इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से मासिकधर्म से संबंधित परेशानी दूर हो जाताा है जैसे कि समय में मासिक धर्म ना आना , रक्त्त स्राव कम होना , रक्त्त स्राव अधिक होना। अधिक दिनों तक रक्तस्राव होना । प्रजनन अंगों से संबंधित सारी परेशानियों का अंत हो जाएगा। गर्भाशय से संबंधित समस्या भी उससे ठीक होता है। सिस्ट जैसी समस्याओं में भी लाभ दायक है। अंडा ना ब...

आत्मपराजय का भंवर जाल

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एक बार प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ मुकेश सकरात्मक विचारों के ऊपर मोटिवेशन स्पीच देकर सभागार से बाहर आया तो एक अत्यधिक सुंदर युवा महिला से मिला । तो उसने कहाँ कि मैं दिर्घ कालिन मानसिक प्रवृति से छुटकारा पाने की प्रयास कर रही हूँ और इसके बारे में अत्यधिक चिंतित हूँ । अपने बचपन से ही मेरी प्रवृति असफलता की ही रही । स्कूल में जब कभी मेरा प्रदर्शन ख़राब होता था तो मैं अच्छा करती थी । लेकिन कुछ सप्ताह बाद मैं दोबारा ख़राब प्रदर्शन करने लग जाती   थी । तभी से मैं निरूत्साहित रहने लगी  हूँ । अपने कार्यों में असफल होती हूँ । अकसर मैं स्पष्ट रूप से असफल रहती हूँ । उसने निराशाजन डंग से कहाँ ।  अपने स्कूल में अपने साथिया से एक साल बाद उत्तीर्ण होने के पश्चात् एक नौकरी लगी । उसके पास एक अच्छा अवसर था अपनी व्यक्तित्व को पेश करने के लिए , जिसमें वह पहली नज़र में दूसरे व्यक्तियों पर अच्छा प्रभाव डाली थी । लेकिन अततः असफलता की वहीं पुरानी प्रवृति उसे जकड लेती थी ।  डॉ  ने पूछा तुम्हारे हिसाब से तुम्हारे मन की गहराई तक में समाई हुई असफलता की इस प्रवृति का कारण क्या है ?...

ग्रहों का वर्ण ( रंग ) स्वरूप

सूर्य जिस जातक के लग्न में सूर्य स्थित हो तो वह जातक लाल मिश्रित सावला होता है। अर्थात लग्न में उच्च के निकट जितना होगा उतना ही लाल रंग का अनुपात अधिक होगा और नीच के निकट होगा तो छाया पन लिए मिश्रित लाल रंग होगा। सूर्य का रंग लाल मिश्रित सावला है। चंद्रमा जिस जातक के लग्न में चंद्रमा होगा, वह जातक गौर वर्ण का होगा। अर्थात चंद्रमा रंग गोरा है। मंगल  मंगल का रंग गोरा मिश्रित लाल है अर्थात रक्त गौर वर्ण यहां भी सूर्य के समान उच्च में गोरा व नीच में लाल सा समझे। बुध बुध का रंग हरी घास आम के पत्तों के सामान हरी चमक से युक्त सावला है। बृहस्पति बृहस्पति का रंग पीला गोरापन है। शुक्र शुक्र का रंग दूध के समान गोरा है। शनि शनि का रंग काला अधिक है यहां भी नीचभीमुखी होने से कालापन बढ़ेगा। अर्थात शनि नीच का हो तो अधिक गहरा काला रंग होगा, जबकि शनि उच्च की ओर हो तो कालापन कम होकर सांवलापन रंग होगा। राहु राहु का रंग गहरा नीला झलक वाला काला रंग है। केतु केतु का रंग चित्र विचित्र अर्थात बहुत से रंगों के मिश्रण से बनने वाला अलग सा ही रंग होता है। नोट जन्म समय में लग्न , नवांशेश,  चंद्र , चंद्रनवा...

उपग्रह के नाम

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वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह के उपग्रह बतलाए गए हैं जो कि निम्न है। सूर्य का उपग्रह काल है। चंद्रमा का उपग्रह परिधि है। मंगल का उपग्रह धूम है। बुध का उपग्रह अर्ध प्रहर है। गुरु का उपग्रह यम कंटक है। शुक्र का उपग्रह इंदु चाप है। सनी का उपग्रह मान्दि है। राहु का उपग्रह पात है। केतु का उपग्रह के उप केतु है। सूर्य आदि नवग्रहों के जो उपग्रह है कालादि उपग्रह यह कष्ट पूर्ण फल प्रदान करते हैं। प्रसिद्ध नव ग्रहों के उपग्रह बताए गए हैं उनका तात्पर्य यह है कि दिनमान के बराबर बराबर 8 भाग करने पर जो अंतिम भाग का स्वामी कोई नहीं होता उस भाग का स्वामी उपग्रह होता है। जैसे कि रविवार के दिन मान को 8 भाग में  बांटते हैं। आज तारीख 16 अगस्त 2020 है। पंचांग में देखने पर 32 घटी 47 पल है दिनमान। इसको घंटा मिनट में बदलने पर 31:47 ×2/5 गुणा करने पर =62:94×1/5 =63:34×1/5 =12.42.48 अर्थात 12 घंटा 42 मिनट 48 सेकंड इसको 8 से भाग देने पर  1.35.21 अर्थात एक घंटा 35 मिनट 21 सेकंड प्रत्येक भाग का मान होगा। रविवार प्रथम भाग सोमवार द्वितीय भाग मंगलवार तृतीय भाग बुधवार चतुर्थ भाव गुरुवार पंचम भाग शुक्रवार षष्...

जीवन में सफलता के लिए

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हममें से प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सफलता चाहता है , अपने लक्ष्य को पुरा करना चाहता है । चाहे किसी भी क्षेत्र में काम करे , उस क्षेत्र के शीखर पर पहुँचना चाहता है । इसके लिए सबसे आवश्यक है कि आप जीवन में सकरात्मक नजरिया अपनाये , सकरात्मक शब्दों का चयन कर के बोले  ।   अपने व्यक्तित्व विकास के आड़े आने वाले प्रत्येक नकरात्मक नजरिया , नकरात्मक शब्द -- जैसे  यदि , नहीं कर सकता , असंभव  का त्याग कर दे । और अपने सफलता के लिए रचनात्मक , सृजनात्मक काम पर लग जाये ।

पत्नी के कमाई पर पति का हक कितना

यह तो हम सभी को पता है कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है। पुरुष को ही अपने घर के आर्थिक जरूरत को पूरा करने के लिए परिश्रम कर अर्थ उपार्जन करना होता है। परंतु अब समय बदल गया है,  स्त्रियां भी सर्विस कर रही है। यदि पति कमाकर घर चला रहा हो तो शायद ही पैसे को लेकर विवाद होता होगा। एक भारतीय पुरुष को परिश्रम कर घर के खर्चो को उठाने में गर्व महसूस होता है।  भले पति पत्नी में लाख विवाद हो लेकिन जब पति अपनी पत्नी के छोटी-छोटी जरूरतों का ख्याल रख उसे पूरा करता है तो इस पल में ही पत्नी अपने लिए प्रेम ढूंढ लेती है। या यूं कहे कि यह भी प्रेम प्रदर्शित करने का एक तरीका है। जिसे शिद्दत से एक पत्नी समझती है। और पुरुष भी अनजाने में ही सही अपना प्रेम प्रगट करता है।  यदि इसके साथ शब्दों में भी पुरुष अपने प्रेम को प्रगट करता है तो दांपत्य जीवन खुशियों से भर जाता है।  लेकिन यदि पत्नी कमाने वाली हो और पत्नी की कमाई पर पति मौज करता हो , साथ ही पत्नी के जरूरतों पर ध्यान ना देता हो, दोनों के मध्य आपस में विवाद होता ही रहे। तो पत्नी को किसी भी एंगल से अपने प्रति प्रेम, पति का नहीं दिखाई  पड...